बाल विवाह अब भी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, खासतौर से इसके ग्रामीण इलाकों के लिए अब भी यह एक गंभीर मुद्दा है, ऐसे में ओडिशा में एक अलग ही पहल हुई है और इसमें काफी महिलाएं भी शामिल हुई हैं। लेकिन खास बात यह है कि इतने महत्वपूर्ण और गंभीर मुद्दे के खिलाफ चल रहे इस अभियान में किसी भी तरह की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई है, बल्कि चार से पांच वर्षों में सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन लाने के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया है और इसमें उनके साथ सरकार भी पूर्ण रूप से सहयोग कर रही है। दरअसल, सरकार ने बाल संरक्षण के व्यापक संदेश के साथ गुस्सा दिखाने की बजाय जागरूकता फैलाने के लिए पुलिस को शामिल करने की कोशिश की है और इसके लिए महिलाएं काफी संख्या में इस अभियान से जुड़ रही हैं और वे शांति से बाल विवाह के खिलाफ अपनी सोच को जाहिर करती हैं और लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रही हैं। गौरतलब है कि इसके अंतर्गत यहां सभी जिले स्कूलों और गांवों में लड़कियों की अनुपस्थिति को ट्रैक करते हैं, फिर इन नंबरों की रिपोर्ट जिला प्रशासन को देते हैं, जो फिर परामर्श के लिए प्रतिनिधि भेजते हैं। 'अद्विका-एवरी गर्ल इज यूनिक' 10 से 19 साल तक की लड़कियों को ध्यान में रख कर शुरू की गई सभी योजनाओं को जोड़ने वाला यह एक अनोखा मंच है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक गांवों को बाल-विवाह मुक्त घोषित करने के लिए दिशानिर्देश लेकर आए हैं। विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के लिए मौद्रिक रूप से भी प्रोत्साहन लेकर आये हैं , इसके साथ ही साथ इस समस्या से अलग-अलग जिले समस्या से निपटने के अपने तरीके लेकर भी सामने आये हैं।
यह वाकई उल्लेखनीय है कि ओडिशा ने बाल विवाह के प्रसार में अद्भुत रूप से गिरावट दर्ज की है। अगर आंकड़ों की तरफ गौर करें तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 21.3% से एनएफएचएस-5 में 20.5% तक गिरावट हुई है । हालांकि, नबरंगपुर के दक्षिणी ओडिशा जिले में यह एक तत्काल चुनौती थी, ऐसे में आंकड़े इस ओर संकेत देते हैं कि नबरंगपुर में राज्य की औसत 20.5% और राष्ट्रीय औसत 23.3% की तुलना में 18 वर्ष से कम आयु में 39.4% लड़कियों की शादी हुई थी। और जिले की केवल 15.5% महिलाओं ने 10 साल या उससे अधिक स्कूली शिक्षा पूरी की थी। ऐसे में बाल विवाह की उच्च घटनाओं के आधार पर कम से कम 50 पंचायतों को संवेदनशील के रूप में चिन्हित किया गया था।
गौरतलब है कि इस पूरी स्थिति को पुलिस के ध्यान में लाया गया था, इसके बाद ही थाने के प्रभारी निरीक्षकों को पंचायत, माता-पिता और बच्चों के प्रतिनिधियों के साथ स्कूल छोड़ने और बाल विवाह पर चर्चा करने के लिए समुदाय में मासिक बैठक आयोजित करने का काम सौंपा गया था। लगातार इस बात पर जोर देना शुरू किया गया कि पुलिस थानों को चाइल्ड फ्रेंडली( बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखने वाले) बनाया गया, ताकि लड़कियां खुद को पुलिस के पास जाने के लिए सशक्त महसूस कर सकें। इसके तहत इस बात पर मुख्य रूप से कुछ बातों को केंद्र में रख कर बातचीत शुरू की गई, जिनमें शिक्षा के नुकसान, किशोर गर्भधारण के साथ स्वास्थ्य के मुद्दों और स्वयं किशोर लड़कियों के सशक्तिकरण से जुड़ीं बातें अहम मुद्दा बनीं। इसके बाद अनोखी पहल यह हुई कि पुलिस ने पिछले साल 'किशोरी जागृति सप्ताह' (किशोर संवेदीकरण सप्ताह) भी चलाया था, जिसके अंतर्गत झारसुगुड़ा में पुलिस ने इसी तरह के मॉडल का पालन किया, जहां उन्होंने 44 गांवों को गोद लिया।
बताते चलें कि ओडिशा के नबरंगपुर जिले के पुजारीपारा गांव के लोगों की जागरूकता की वजह से आज यह गांव बाल विवाह मुक्त घोषित है। वाकई, बाल विवाह को रोकने के लिए ऐसी ही जागरूक पहल की जरूरत है, जिनमें आम लोगों का साथ में जुड़ा बेहद अनिवार्य है। ऐसे में ओडिशा की महिलाओं, प्रशासन और पुलिस प्रशासन के ये कदम उल्लेखनीय प्रयास माने जाएंगे।
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