ग्रामीण भारतीयों को जलवायु के मुश्किल हालात से निपटने में अब वित्तीय सेवाएं सहायता कर सकती है। जी हां, हाल ही में इसे लेकर Scientific Reports ( साइंटिफिक रिपोर्ट्स) जनरल ने एक अध्ययन किया है, जो यह बताता है कि कैसे बैंकों और अन्य वित्तीय समाधानों के जरिए वित्तीय समावेश कुछ तरीकों से संपत्ति रखने की जरूरत को कम करता है, जैसे सोना और पशु धन को तुरंत नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है। एक नए अध्ययन में यह जानकारी सामने आयी है कि बैंक खातों जैसे वित्तीय सेवाओं तक पहुंचकर भारतीय ग्रामीण परिवारों को जलवायु जोखिम से सुरक्षा मिलेगी। इसे लेकर हाल ही में एक विश्लेषण भी किया गया है। इसमें 1,082 ग्रामीण परिवारों को शामिल किया गया है। ज्ञात हुआ है कि 59 प्रतिशत परिवारों ने कम से कम पांच सालों में जलवायु में बदलाव के झटके को अनुभव किया है, वहीं 13 प्रतिशत लोगों ने 2 साल में अधिक समय तक जलवायु के जोखिम का सामना किया है। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि 633 परिवारों में से 57 प्रतिशत लोगों ने जलवायु के परिवर्तन का सामना किया और इस मामले से निपटने के लिए अपनी बचत का उपयोग किया है। यह भी पाया गया है कि परिवार के इस क्रम में रिश्तेदारों के रिश्तेदार, दोस्त, ग्रामीण समुदायों के साथ साहूकार भी बैंकों से वित्तीय सहायता पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि औसतन परिवारों के पास उनकी संपत्ति का 15.6 प्रतिशत संपत्ति तरल रूप में मौजूद है, लेकिन जो लोग बैंकों का इस्तेमाल कर रहे हैं उनके पास जलवायु जोखिमों के संपर्क में आने के बाद तरल संपत्ति 1 से 13 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इस अध्ययन में यह भी माना गया है कि उच्च जलवायु जोखिम वाले क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन उन संसाधनों को कम कर देगा, जिन परिवारों को संपत्ति तरल रूप में रखने की आवश्यकता होती है। इसके लिए एक ऐसा सिस्टम बनाना होगा, जो कि ग्रामीण भागों में जाकर वित्तीय मामले को लेकर एक सशक्त तरीके पर काम करने का रास्ता निकालें।
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