पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट आफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स ने 10 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये के बीच के वार्षिक कारोबार करने वाले शहरों में नैनो उद्योग को लेकर एक सर्वेक्षण किया है। इस रिपोर्ट में 500 से अधिक नैनो उद्योग के नतीजे शामिल किए हैं। इस सर्वेक्षण में खास तौर पर बुटीक, कैटरिंग और फूड स्टॉल के साथ बेकरी, सैलून, फार्मेसियों और ऑटो मरम्मत की दुकानों को शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पुणे में छोटे व्यवसायों की गिनती भारत में सबसे अधिक है, लेकिन उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए नैनो उद्योग और सिस्टम के बीच अलगाव को कम करने के लिए बिजनेस एफिनिटी समूह बनाने की आवश्यकता है। इस सर्वेक्षण में इस पर भी प्रकाश डाला गया है कि निम्न आय, स्व-रोजगार और ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों को छोटे- नेटवर्क द्वारा सेवा प्रदान की जाती है, जबकि छोटे उद्योग क्षेत्र का ऊपरी खंड बैंकों को जाता है। छोटे उद्योगों के साथ देखा गया है कि लगातार बढ़ते रहने के उनके संघर्षों के बाद भी मध्य-स्तरीय, सूक्ष्म उद्यमियों की आवाजें नहीं सुनी जाती हैं। उन पर ध्यान की कमी के कारण उनके लिए असुरक्षा का वातावरण पैदा हो जाता है। सूक्ष्म उद्योग सिमट कर रह जाते हैं। वे कभी-भी अपना दायरा बड़ा नहीं पाते हैं। वाकई, इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट इस तरफ इशारा कर रही है कि कैसे सूक्ष्म उद्योग अपनी पहचान को बरकरार रखने के लिए शहरों में संघर्ष कर रहे हैं, जो कि भारत के आर्थिक विकास के लिए चिंता का विषय है।
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