एनसीईआरटी ने एक नई पहल की है और स्कूलों को दिए गए अपने दिशा-निर्देशों में उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि एक मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार पैनल की स्थापना करना, स्कूल-आधारित मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और छात्रों की मानसिक विकास को बढ़ावा देने के लिए शैक्षणिक सहायता और अभिभावकों को शामिल करना आवश्यक है।
गौरतलब है कि यह दिशा निर्देश स्कूली बच्चों के बीच मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के बाद किए गए हैं। इसके बाद ही राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा "स्कूल जाने वाले बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रारंभिक पहचान और हस्तक्षेप" के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। पिछले हफ्ते शुरू की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्कूली छात्रों में तनाव और चिंता के प्रमुख कारकों में परीक्षा, परिणाम और साथियों द्वारा दिए गए दबाव जैसे कारण माने गए हैं।
इस दिशा निर्देश में उल्लेख किया गया है कि "स्कूलों को आम तौर पर ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है, जहां छात्रों के समुदायों को एक सुरक्षित वातावरण में विकसित होने की उम्मीद की जाती है। भारत में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्कूलों में स्कूल प्रबंधन, प्रिंसिपल, शिक्षक, अन्य कर्मचारी और छात्र सभी एक दिन का लगभग 1/3 और वर्ष में लगभग 220 दिन बिताते हैं। आवासीय विद्यालयों के लिए, विद्यालय समुदाय में एक छात्र द्वारा बिताया गया समय और भी अधिक होता है। इसलिए, स्कूलों और छात्रावासों में सभी बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और बेहतर जीवन सुनिश्चित करना स्कूल की जिम्मेदारी है ।
इस दिशा निर्देश के अनुसार, हर एक स्कूल या स्कूलों के समूह को एक मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार पैनल स्थापित करना चाहिए। यह भी कहा गया है कि "इसकी अध्यक्षता प्राचार्य द्वारा की जानी चाहिए और इसमें शिक्षक, माता-पिता, छात्र और पूर्व छात्र जो स्कूल का हिस्सा रह चुके हैं, वे भी सदस्य के रूप में होने चाहिए। यह जागरूकता पैदा करेगा। साथ ही आयु और लिंग-उपयुक्त वार्षिक स्कूल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की योजना भी लागू भी करेगा। इन जरूरतों पर भी प्रकाश डाला गया है कि स्कूलों में व्यवहार की पहचान करने के लिए, डिप्रेशन, विकास को लेकर जो चिंताएं हैं, प्राथमिक स्वास्थ्य चर्चा और उचित रेफरल यानी सही सलाहकार की जरूरत है तो उनको दिखाया जाना । यह देखते हुए कि अधिकांश समय ऐसा होता है कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे जीवन के प्रारंभिक चरण में सामने आते हैं, क्योंकि सभी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में से आधे व्यक्ति 14 वर्ष की आयु और 25 वर्ष की आयु तक तीन-चौथाई हो जाते हैं, एनसीईआरटी ने इस बात की तरफदारी की है कि परिवार के अलावा और माता-पिता, शिक्षकों को शुरुआती दौर के लक्षणों के बारे में बताया जाना जरूरी है।
इसमें यह भी कहा गया है कि शिक्षकों को किसी छात्र से लगाव के मुद्दे या फिर अलगाव की चिंता, स्कूल जाने से इनकार, संचार मुद्दों, चिंता पैटर्न, डिप्रेशन की मनो:स्थिति, आचरण संबंधी मुद्दों, अत्यधिक इंटरनेट उपयोग, अति सक्रियता, बौद्धिक अक्षमता और सीखने की अक्षमता के लिए छात्रों में शुरुआती संकेतों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
मैनुअल ने यह कहा, "शिक्षकों को कक्षा में अगर कोई किसी का मजाक बना रहा है, तो उस मामलों पर भी ध्यान देना जरूरी हैं। इस तरह के मामलों के बारे में बात करनी चाहिए और छात्रों को डराने-धमकाने के बारे में शिक्षित करके उन्हें सशक्त बनाना चाहिए। उन्हें छात्रों को किसी भी घटना की रिपोर्ट करने के लिए एक गोपनीय तरीका प्रदान करना चाहिए, जो उन्हें इन चिंताओं से दूर रखें।