एक तरफ जहां चंद्रयान-3 के साथ भारत चांद पर पहुंचा है, तो वहीं खेल के क्षेत्र में भी हर साल भारतीय खिलाड़ी विश्व पटल पर भारत की गरिमा में चार चांद लगा रहे/ रही हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर भारत माता की गोदी में ऐसे अनगिनत खेल के रत्न हैं, जिनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ सकती। ऐसे में 29 अगस्त यानी कि राष्ट्रीय खेल दिवस के दिन उन महिला खिलाड़ियों को याद करना बेहद जरूरी है, जो कि भविष्य में भारत की पहचान बनेंगी। तो आइए विस्तार से जानते हैं भारतीय महिला खिलाड़ियों के बारे में भी।
क्या है राष्ट्रीय खेल दिवस का इतिहास
भारत के हॉकी टीम के स्टार रहे मेजर ध्यानचंद की जयंती पर 29 अगस्त 2012 को पहला राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने की शुरुआत की गयी। उन्होंने अपने करियर में 185 मैच खेले और 570 गोल किए हैं। साल 1956 में उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। इसी के साथ राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने के पीछे यह भी वजह थी कि देश में खेल के प्रति जागरूकता फैलाने और खेलों के जरिए राष्ट्रीय एकता और बल के संदेश का प्रचार करने के लिए राष्ट्रीय खेल दिवस को विशेष माना गया है।
कम उम्र की भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी
भारत की मिट्टी में खेल के अनमोल हीरे मौजूद हैं, जो कि शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों से अपने हुनर की आवाज को देश तक पहुंचा रहे हैं। ऐसे में कई ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जो कि कम उम्र में देश का नाम विश्व पटल पर सुनहरे अक्षरों में लिखा चुकी हैं। भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ियों में स्नेहा दीप्ति सबसे कम उम्र की भारतीय खिलाड़ी हैं। स्नेहा ने जब अपना डेब्यू किया, तो उनकी उम्र महज 16 साल की थी। ठीक इसी तरह एक नाम स्मृति मंधाना का भी है, जो कि केवल 16 साल की उम्र में टी-20 क्रिकेट की बेस्ट बल्लेबाज रही हैं। वहीं इनके अलावा, देविका वैद्य, राधा यादव और ललिता कुमारी ने भी 17 साल की उम्र में टी-20 क्रिकेट से अपने खेल करियर की शुरुआत की।
अदिति स्वामी विश्व तीरंदाजी चैंपियन
गौरतलब है कि हाल ही में भारत की 17 साल की अदिति स्वामी विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप के कंपाउंड महिला फाइनल में मेक्सिको की एंड्रिया बेसेरा को हराकर सबसे कम उम्र में सीनियर विश्व चैंपियन बनी हैं। महाराष्ट्र के सतारा जिले की 12वीं की छात्रा अदिति ने इसी साल जुलाई में भी लिमरिक में युवा चैंपियनशिप में अंडर-18 का खिताब जीता था। अदिति ने इससे पहले क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड की सान्ने डी लाट को भी शिकस्त दी है।
गांव की 'खिलाड़ी बेटी' ने विश्व में बनाई पहचान
मेरठ के दौराला इलाके के इकलौता गांव की निवासी पारुल चौधरी ने देश की शान अपने हुनर के कारण बढ़ाई है। उनके पिता कृष्ण पाल सिंह किसान हैं। अपनी मेहनत और काबिलियत के बलबूते पारुल देश की नंबर 1 धावक में से एक हैं। उन्होंने बीते साल लॉस एंजिल्स में 3 हजार मीटर की दौड़ में नेशनल रिकॉर्ड बनाया था। साथ ही 3000 मीटर स्पर्धा में नौ मिनट से कम समय लेकर पारुल देश की पहली एथलीट बनीं। तो वहीं भारतीय बॉक्सर स्वीटी बूरा ने महिला वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। किसान की बेटी स्वीटी खेतों में ट्रेनिंग किया करती थीं। फिर अपने करियर के लिए वे हरियाणा से बाहर आयीं और कड़ी मेहनत की। साल 2009 में उन्होंने चार महीने के अंदर अपनी कड़ी मेहनत से गोल्ड मेडल जीता और साल 2023 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी गोल्ड जीता।
17 साल की अंतरा धुर्वे प्रोफेशनल फुटबॉल खिलाड़ी
ठीक इसी तरह पहली प्रोफेशनल फुटबॉल खिलाड़ी मोहगांव की 17 साल की अंतरा धुर्वे बनी हैं। बीते 4 साल से अंतरा फुटबॉल का प्रशिक्षण ले रही हैं। अपने शहर केरल के साथ, वह इस वक्त पूरे देश की लड़कियों के लिए प्रेरणा बनी हैं। मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के छोटे से गांव रायबिड़पुरा की बेटी कल्पना गुर्जर ने वर्ल्ड ब्रिज चैंपियनशिप में अंडर-26 महिला वर्ग में भारत के लिए गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी हैं।
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