राष्ट्रीय बालिका दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक प्रण है। एक वचन है खुद के साथ फिर चाहे आप महिला हो या पुरुष इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ होने वाले अपराध और उनकी सुरक्षा देश के हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है, हालांकि हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस के जरिए हम सभी को यह याद दिलाने और एहसास दिलाने की कोशिश की जाती है कि कितना जरूरी है एक बेटी, एक बहन, एक मां और देश की हर महिला और बालिकाओं की रक्षा करना और उन्हें सुरक्षित महसूस कराना। यही उद्देश्य राष्ट्रीय बालिका दिवस का भी है, जो कि इस सोच के साथ मनाया जाता है कि महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से उन्हें बचाने और उनके सामने आने वाली चुनौतियों और अधिकारों के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाई जाए। इसी वजह से देश में बालिकाओं और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। ज्ञात हो कि राष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने की शुरुआत साल 2008 से हुई। भारत के महिला बाल विकास मंत्रालय ने 24 जनवरी 2008 को पहली बार राष्ट्रीय बालिका दिवस का उत्सव मनाया था। आइए जानते हैं विस्तार से।
आखिर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस
24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने के पीछे की एक बेहद खास वजह है। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, इसलिए हर साल इसी दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की कई सारी वजहे हैं। इसकी सबसे पहली और बड़ी वजह कन्या भ्रूण हत्या को रोकना माना गया है। साथ ही महिला की सुरक्षा, आत्मरक्षा और सशक्तिकरण भी इस दिवस के महत्व को बढ़ाता है। देश में अभी-भी भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज प्रथा और महिला के खिलाफ और महिलाओं से जुड़ी हुई कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस की सोच हमेशा से ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ के साथ देश को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने की रही है। दूसरी तरफ दुनिया में 11 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है। इसका आगाज सबसे पहले युनाइटेड नेशन ने साल 2011 में किया था। इस दिन का उद्देश्य भी लड़कियों के विकास के साथ महिलाओं को सम्मान और अधिकार दिलाना है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय बालिका दिवस हो या फिर अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस, इन दोनों का मकसद लड़कियों के जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों के साथ उनके अधिकारों का संरक्षण करना और उसके बारे में जागरूकता फैलाना है। खासतौर पर लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और पोषण को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है।
आइए जानते हैं कि देश में किस तरह मनाया जाता है बेटियों का जश्न
राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर देश में कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। खासतौर पर विद्यालयों और महाविद्यालयों में बेटियों के लिए कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन होता है। जैसे- एक दौड़ बेटियों के नाम, बेटियों की शिक्षा को लेकर मुहीम, नुक्कड़ और स्टेज नाटक के जरिए बेटियों को शिक्षित करने की अहमियत बताने के साथ भ्रूण हत्या, बाल विवाह, विधवा विवाह के साथ महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों पर भी बात की जाती है और समाज में जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है। देश के सभी आंगनवाड़ी में किशोरी बालिकाओं को भी शिक्षा के महत्व के साथ खुद की आत्मरक्षा करने के गुण सिखाए जाते हैं और उन्हें यह बताया जाता है कि लड़कियां विशेष हैं, देश का भविष्य हैं। कई ऐसे बड़े संस्थान हैं, जहां पर बेटियों को खुद की आत्मरक्षा की तकनीक सिखाई जाती है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह भी है कि लड़कियों को भी खुद की रक्षा के प्रति जागरूक होना चाहिए और साथ ही लड़कियों को आत्मरक्षा की जानकारी होना जरूरी है, ताकि खुद के खिलाफ हो रहे अपराध का सामना करने के दौरान उनका धैर्य और हौसला बरकरार रहे।
क्या कहती है बालिकाओं को लेकर रिपोर्ट
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट अनुसार विश्व स्तर पर बालिकाओं के जन्म के समय जीवित रहने की दर बालकों से अधिक होती है, वहीं भारत एक मात्र ऐसा देश है, जहां पर बालकों की तुलना में अधिक बालिकाओं का निधन होता है। बालिकाओं का शिक्षा स्तर बालकों के मुकाबले कम आंका गया है। कई सारी ऐसी लड़कियां हैं, जो कि आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं का सामना अपने दैनिक जीवन में करती रहती हैं। कई सारी ऐसी बालिकाएं भी हैं, जिन्हें घरेलू हिंसा, खराब शिक्षा, स्वास्थ्य और यौन शोषण के साथ अपने दैनिक जीवन में हिंसा का सामना करना पड़ता है।
एक नजर में जानें भारत की गौरवशाली बेटियों के संघर्ष की कहानी
राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर हमें उन गौरवशाली बेटियों की कहानी भी सुननी चाहिए, जो कि संघर्ष के सहारे सफलता हासिल की। हिम्मत और मेहनत के बलबूते इन बेटियों ने अपना नाम सुनहरे अक्षर में लिखवाकर देश की हर बेटी और हर बालिका के लिए प्रेरणा बनी हैं। दक्षिण बिहार का इमामगंज नक्सली इलाका है। इस नक्सल प्रभावित इलाके की बेटियों ने इतिहास रच दिया है। संजू कुमारी के पिता मजदूर हैं। इमामगंज की संजू बीएसएफ जवान बन गई हैं। उन्होंने खुद की मेहनत और काबिलियत पर भरोसा किया और इस मुकाम पर पहुंची हैं। ठीक इसी तरह आरती कुमारी का चयन भी बिहार पुलिस डिफेंस में हुआ है। खुद पर भरोसा करते हुए एशियन गेम्स 2023 में ऐश्वर्या मिश्रा ने भी अपनी सफलता का परचम लहराया है और देश का सम्मान बढ़ाया है। ऐश्वर्या के पिता सब्जी की दुकान चलाते हैं, लेकिन अपनी बेटी के पंखों को उन्होंने हमेशा उड़ान दी और इसी का नतीजा है कि उनकी बेटी ऐश्वर्या चीन के एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर आयी हैं। जयपुर की दो बेटियों ने भी शिक्षा को महत्व दिया और परिवार के साथ ने उन्हें डॉक्टर के मुकाम पर पहुंचा दिया। जयपुर के जमवारामगढ़ तहसील के नांगल तुलसीदास गांव की दो बेटियों ने घर के खराब आर्थिक हालात के बीच एक साथ नीट (NEET) क्रैक करते हुए डॉक्टर बनने की तरफ आगे बढ़ गई हैं। दोनों के परिवार का मानना था कि घर के हालात चाहे कैसे भी हो जाए, लेकिन बेटियों की शिक्षा पर इसका असर नहीं होना चाहिए। ठीक इसी तरह मुजफ्फरनगर जनपद में मंसूरपुर के गांव पुरबालियान की निवासी दिव्या काकरान ने अंतरराष्ठ्रीय स्तर पर कुश्ती में पहचान बनाई है। लोगों के विरोध के बाद भी सूरज ने अपनी बेटी दिव्या को अखाड़े में कुश्ती सिखायी। इसका नतीजा यह है कि राष्टीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई प्रतियोगिताओं में दिव्या 73 से अधिक पदक जीत चुकी हैं। इनमें 53 गोल्ड, सात रजत और 13 कांस्य पदक शामिल है।
गौरतलब है कि हमने आपको केवल देश की कुछ चुनिंदा बालिकाओं के जीवन के संघर्ष को यहां उदाहरण के तौर पर बताने की कोशिश की है, लेकिन आप अगर अपने आस-पास देखेंगे, तो कई सारी ऐसी महिलाएं आपको दिखाई देंगी, जो कि बचपन के कड़े संघर्ष से गुजर कर किसी न किसी मुकाम पर पहुंची हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर इस बार आप अपने जीवन के अपने घर की उन बालिकाओं के संघर्ष से सीखने की कोशिश करें, जिनका जीवन आपके लिए प्रेरणा हैं। फिर चाहे वह आपकी मां हो या फिर बहन या फिर आपके पड़ोस की चाची, जिन्होंने अपने बचपन को तपा कर अपने बच्चों के लिए दीपक जलाए हैं।