महाराष्ट्र के चंद्रपुर नामक गांव में 29 साल की मिनाक्षी वाल्के ने मेड इन इंडिया के तर्ज पर एक कमाल का काम किया है । लैम्प, बास्केट, ज्वेलरी, बारकोड स्कैनर जैसी कई बैम्बू से बने प्रोडक्ट के बाद अब मीनाक्षी ने इको-फ्रेंडली राखी बनाई हैं, जिसकी चर्चा सिर्फ महाराष्ट्र या भारत में नहीं बल्कि विदेश में भी हो रही है। मीनाक्षी अपने हाथों से बनी राखियां पिछले 3 सालों से बेच रही हैं और हर साल उनका मुनाफा पहले से ज्यादा हो रहा है।
मीनाक्षी जो प्रोडक्ट बनाती हैं उसकी कीमत 25 रुपयों से 2500 रुपयों तक है और रही बात उनकी वर्ल्ड फेमस राखियों की जो 50 रुपयों से शुरू होती है। मीनाक्षी ने अपना यह बिजनेस 4 साल पहले शुरू किया था, जिसका नाम उन्होंने अपने बेटे पर रखा था- अभिसर इनोवेटिव। अभिसर में काम करने से पहले मीनाक्षी एक होम मेकर थीं। जब उनका बेटा अभिसर दुनिया में आया, तो उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई और उन्होंने अपने हाथों से लकड़ी पर नक्काशी करने और धागों से ज्वेलरी बनाने का काम शुरू किया। इसके बाद जब उन्होंने अपनी नवजात बेटी को खोया तब उन्हें लगने लगा कि ज्यादा काम की वजह से उन्होंने अपनी बेटी को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। उनके पति ने ऐसे समय पर उनका बहुत साथ दिया और उन्हें यह समझाया कि यह काम की वजह से नहीं हुआ, बल्कि उन्हें इस सदमे से निकलने में सिर्फ काम ही मदद कर सकता है। काम करने से उनका ध्यान बंटा रहेगा।
इसके बाद उन्हें वन विभाग द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में काम करने का मौका मिला , जिसमें 70 दिनों के लिए प्रतिभागियों को बांस कला सिखाई गयी। मीनाक्षी पहले से ही लकड़ी की नक्काशी जानती थी, लेकिन उनके पास प्रोफेशनल समझ नहीं थी। उन्होंने इस वर्कशॉप में काम किया और कई बैम्बू प्रोडक्ट बनाकर बेचना शुरू किया। पहले आस-पास के लोगों और फिर पूरे महाराष्ट्र में मिनाक्षी की कला के चर्चे होने लगे। इस दौरान, उन्होंने नागपुर में सरकार द्वारा आयोजित एक मेले में भी भाग लिया, जिसमें उन्होंने देखा कि लोगों ने बांस के प्रोडक्ट्स की कितनी सराहना की, जिससे उनके काम और रचनात्मकता को और बढ़ावा भी मिला।
लेकिन उनका अब तक का सबसे ज्यादा बिकने वाला प्रोडक्ट उनकी इको-फ्रेंडली बांस की राखियां हैं। मीनाक्षी तुलसी के पत्तों और रुद्राक्ष के पत्तों का ही उपयोग किया और सजावट के लिए प्लास्टिक से दूर रहती है। उनकी राखियों का धागा भी खादी से बना होता है। उन्होंने जब शुरू में 500 राखियां बनाई थीं, वो नहीं बिकी। लेकिन आज यही राखियां उनकी पहचान बन गई हैं। पिछले साल उन्होंने कुल 10,000 राखी बेचकर 3 लाख रुपये का मुनाफा कमाया था और इस साल भी उन्होंने अब तक 6000 राखियों की बिक्री की है।
वाकई, ऐसी कई महिला जो विपरीत परिस्थिति में भी काम करना चाहती हैं, उनके लिए यह बेहद प्रेरणादायी बात है।
Image Credit: Abhisar Innovation/ Facebook