चंद्रयान-3 का 'विक्रम लैंडर' चांद की सतह पर लैंड करने के साथ भारत की शान विश्व के साथ अंतरिक्ष में भी स्थापित कर रहा है। चंद्रयान-3 के चांद पर पहुंचने की हकीकत के साथ पूरे देश इस वक्त गर्व का अनुभव कर रहा है। यह ऐतिहासिक है कि चंद्रयान-3 के मिशन के पूरा करने के पीछे ISRO से जुड़ी हुई 54 महिला इंजीनियरों ने दिन-रात मेहनत की है। चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचने के इस सपने को पूरा करने के लिए कैसे महिला इंजीनियर और वैज्ञानिकों की टीम महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
चंद्रयान की सफलता के पीछे महिलाओं की मेहनत
चंद्रयान-3 का लक्ष्य चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग करने के साथ चंद्रमा की सतह की खोज करना है। हाल ही में यह जानकारी सामने आयी थी कि चंद्रयान-3 को कामयाब करने के लिए तकरीबन 54 महिला इंजीनियर और वैज्ञानिकों ने विभिन्न केंद्रों के जरिए कार्य किया है। यह सभी महिलाएं चंद्रयान-3 के लिए काम करने वाली विभिन्न प्रणालियों की सहयोगी होने के साथ उप परियोजना की निदेशक भी रही हैं। ज्ञात हो कि इससे पहले चंद्रयान-2 के समय डायरेक्टर एम वनीता और मिशन की डायरेक्टर ऋतु करिधल श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई थी।
जानिए कौन हैं चंद्रयान-3 की रॉकेट वुमन ऋतु करिधाल
दिलचस्प है कि चंद्रयान-3 के जरिए भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश होगा। इसके साथ सॉफ्ट लैंडिंग करने में भारत ने अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश है। जाहिर सी बात है कि चंद्रयान-3 ने इतिहास रचा है और इसके पीछे बहुत बड़ी भूमिका ऋतु करिधाल की है, जिन्हें भारत की रॉकेट वुमन के नाम से संबोधित किया जाता है। नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक रखने वाली ऋतु करिधाल ने एयरोप्सेपस में इंजीनियरिंग में मास्टर की डिग्री हासिल की है। चंद्रयान की रॉकेट वुमन बनने के लिए ऋतु करिधाल ने अपने करियर के कई पड़ाव पार किए हैं। साल 1997 में पहली दफा इंजीनियर के तौर पर इसरो में शामिल हुईं।
चंद्रयान-3 की साइंटिस्ट ऋतु करिधाल के बारे में दिलचस्प जानकारी
इसरो (ISRO) साइंटिस्ट ऋतु करिधाल चंद्रयान-3 की मिशन डायरेक्टर हैं। इससे पहले वह इस मिशन की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रह चुकी हैं। ऋतु ने अंतरिक्ष विज्ञान में महारत हासिल की है। उनकी प्रतिभा और होशियारी को देखते हुए उन्हें इसरो में नौकरी मिली। इसके साथ ही साल 2007 में उन्हें युवा साइंटिस्ट का अवार्ड भी मिला। केवल चंद्रयान ही नहीं, बल्कि उन्होंने देश के कई अंतरिक्ष से जुड़े मिशन में अहम भूमिका निभाई है। इस वक्त चंद्रयान 3 ने उनके करियर की शान में चार चांद लगा दिए हैं।
क्यों विफल हो गया चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 के सामने सबसे बड़ी मुश्किल लैंडिंग बन गया था। पिछली दफा चंद्रयान-2 को चांद की सतह पर पहुंचने से पहले कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। 7 सितंबर 2019 को भारत के चंद्रयान-2 का संपर्क विक्रम लैंडर से टूट गया और लैंडर चांद पर क्रैश हो गया,वहीं इस बार चंद्रयान 2 के दौरान की गई गलतियों को नहीं दोहराया गया। कई सारे बदलाव किए गए। खासतौर पर चंद्रयान-2 के लैंडर की संरचना में बदलाव किया गया।
चंद्रयान-2 की असफलता के बाद चंद्रयान-3 में जरूरी बदलाव
चंद्रयान-2 की असफलता के बाद कई सारे जरूरी बदलाव चंद्रयान-2 के लिए किए गए। चंद्रयान-3 के लिए अतिरिक्त फ्यूल की भी व्यवस्था की गई। इससे पहले चंद्रयान के लिए केवल एक इंजन की व्यवस्था थी, वहीं अब 2 इंजन के साथ लैंडिंग को सफल करने की योजना बनाई गयी। पिछली बार चंद्रयान-2 तेज लैंडिंग के कारण विफल हुआ था। चंद्रयान-3 के लिए रफ्तार पर भी काम किया गया है। इस बार 3 मीटर प्रति सेकेंड टचडाउन की स्पीड तय की गई है। साथ ही एक नया तरीका अपनाया गया है, जिसकी वजह से चंद्रयान-3 से जुड़ी सारी जानकारी की जांच की जा सकती है।
चंद्रयान-3 से जुड़ी दिलचस्प जानकारी
चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का परिवर्तन मिशन है। साथ ही इसे चंद्रयान-2 की अपेक्षा कम लागत के साथ बनाया गया है। माना जा रहा है कि इस मिशन के लिए 615 करोड़ का खर्च हुआ है। 40 दिन की यात्रा के बाद चंद्रयान-3 चांद के करीब पहुंच पाया है। चंद्रयान-3 को साल 2021 में चांद पर भेजा जाना था, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे आगे के लिए टाल दिया गया है। फिर इसे 14 जुलाई 2023 को लांच किया गया। चांद पर पहुंचने के अपने मिशन को पूरा करने के बाद चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में लैंडिंग करने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट बन जाएगा। चांद पर चंद्रयान केवल एक दिन ही रहेगा, क्योंकि चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। यह भी जान लें कि चांद पर पिछले सात दशकों में 111 मिशन भेजे गए हैं। इसमें 41 फेल हुए हैं और 66 सफल हुए हैं। 8 को आंशिक यानी की थोड़ी सी ही सफलता मिली है। साल 1990 से लेकर 2023 तक अमेरिका, जापान, चीन, भारत और इजरायल को मिलाकर 21 चांद मिशन हुए हैं।
चंद्रयान-3 कल्पना चावला को याद करना जरूरी
भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भारत की पहली महिला थी, जो कि स्पेस में जाकर इतिहास रच दिया है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कल्पना चावला ने साल 1988 में नासा के लिए काम करना शुरू किया। साल 1994 में उन्हें स्पेस मिशन के लिए चुना गया। उन्होंने 19 नवंबर से 5 दिसंबर 1997 में अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी। साल 2003 में भी अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरने के बाद 16 दिन बाद यान दुर्घटना का शिकार हो गया और 6 अंतरिक्ष यात्रियों के साथ कल्पना चावला का भी निधन हो गया। उनका योगदान आज भी भारत के अंतरिक्ष में पहुंचने की गौरव की गाथा सुनाता है।