कृष्ण जन्माष्टमी और दही हांडी के मौके पर देश में एक बार फिर से मथुरा की चर्चा हो रही है। इसकी वजह यह है कि कृष्ण नगरी मथुरा में जन्माष्टमी का रंग हर घर में छाया रहता है। कृष्ण जन्माष्टमी से पहले ही पर्यटक मथुरा में यात्रा करने की योजना बनाते हैं। मथुरा शहर की एक नहीं, बल्कि कई सारी खूबी है, जो कि इस शहर को कृष्ण रंग में पूरी तरह से रंग देती है। मथुरा अपने लोकप्रिय स्थलों और खान-पान के कारण भारत और दुनिया के सभी तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। मथुरा में कई जगह पर फैली हुई झांकियां इस शहर को और भी खूबसूरत और रंगीन बना देती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
क्या है मथुरा शहर का इतिहास
भारत के सात प्राचीन शहरों में से एक मथुरा है। पौराणिक साहित्य में इस शहर को शूरसेन नगरी, मधुनगरी और मथुरा भी कहा जाता है। मथुरा दिल्ली के दक्षिण-पूर्व में 145 किमी और आगरा के उत्तर-पश्चिम में लगभग 58 किमी की दूरी पर स्थित है।
पर्यटन की दृष्टि से मथुरा
मथुरा में कृष्ण-राधा मंदिर के साथ कई ऐसे स्थल हैं, जो कि मधुरा को पर्यटन की दृष्टि से लाजवाब शहर बना देती है। इसकी शुरुआत गोवर्धन हिल से होती है। गोवर्धन हिल मथुरा से 22 किमी दूर वृंदावन में मौजूद है। इस पहाड़ी का उल्लेख आपको कई सारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिल जाएगा। इसके पहाड़ी को लेकर एक पौराणिक कथा लोकप्रिय है कि मथुरा को खतरनाक बारिश से बचाने के लिए कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ को अपनी एक उंगली पर उठा लिया था। इसके बाद यह पर्वत लोगों की आस्था का हिस्सा बन गयी।
मथुरा संग्रहालय
इस संग्रहालय का निर्माण साल 1847 में किया गया था। इस संग्रहालय को मथुरा का धरोहर भी माना जाता है। इस संग्रहाल का प्रमुख आकर्षण केंद्र अनोखी वास्तुकला और कलाकृतियां हैं, जिसे सबसे अधिक पसंद किए जाता है। मथुरा के इस संग्रहालय की लोकप्रियता का इतना असर है कि भारत सरकार के डाक टिकटों पर भी मथुरा संग्रहालय की तस्वीर है।
मथुरा का कुसुम सरोवर
कुसुम सरोवर मथुरा में पर्यटकों के लिए सबसे जरूरी जगहों में से एक है। यह सरोवर गोवर्धन और राधा कुंड के मध्य में स्थित है। दिलचस्प है कि इस सरोवर का निर्माण राजसी बलुआ पत्थरों से किया गया है। इस जलाशय में तालाब तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां लगी हुई है। यह जगह तैराकी के लिए भी काफी पसंद की जाती है। गर्मी के मौसम में यहां पर पर्यटकों की भीड़ जमा होती है। इसके साथ स्थानीय लोग भी कुसुम सरोवर पर बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं। वैसे यह माना गया है कि गर्मी के मौसम से अधिक बारिश और ठंडी के मौसम में आपके लिए मथुरा जाने की योजना बनाना सही होगा। इसके साथ कंस किला और विश्राम घाट भी आपको अपने मथुरा घूमने की लिस्ट में जरूर शामिल करना चाहिए।
मथुरा के घाट और किला
कंस किला प्राचीन स्मारक और वास्तुकला से बना हुआ एक किला है। विश्राम घाट यमुना नदी के तट पर स्थित है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मथुरा में कुल मिलाकर 25 घाट मौजूद है। माना जाता है कि कृष्ण के जन्म के समय से ये सारे घाट यहां पर मौजूद हैं। चक्रतीर्थ घाट, कृष्ण गंगा घाट, गौ घाट, असकुण्डा घाट, प्रयाग घाट, बंगाली घाट, स्वामी घाट,सूरज घाट और ध्रूव घाट पर्यटन की नजर से अहम माने जाते हैं।
मथुरा का 400 साल पुराना पेड़ा
जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा की मिठाई और पेड़े की मांग बढ़ जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मथुरा के पेड़े का जिक्र 18 वीं शताब्दी की एक पांडुलिपि अकलनामा चक्कता में भी आता है, जिससे यह ज्ञात होता है कि मथुरा का पेड़ा उस दौर से लोकप्रिय है। मथुरा के वृंदावन बनखंडी महादेव मंदिर के पास राम स्वीट्स की दुकान पर बीते 100 सालों से पेड़े और कई तरह की मिठाई तैयार की जाती है। ताजे दूध और मावे के साथ इस मिठाई को तैयार किया जाता है। इस स्वाद से भरपूर मिठाई को बनाने में 4 से 5 घंटे का समय लगता है। इसके अलावा कचौड़ी-जलेबी, खास्ता कचौड़ी, घेवर, ठंडाई और माखन मिश्री आपको मथुरा के हर गली के कोने में जरूर मिलेंगे। इन सभी पकवानों का स्वाद निराला है।
दही हांडी हो तो मथुरा जैसी
दही हांडी का उत्सव देश के कई शहरों में मनाया जाता है, लेकिन सबसे अधिक दही हांडी का नजारा देखने का उत्साह केवल मथुरा में ही आता है। खासतौर पर मथुरा-वृंदावन में भव्य तरीके से कृष्ण जन्माष्टमी के बाद दही हांडी की धूम दिखाई देती है। मुंबई और पुणे में भी महिला और पुरुष गोविंदा पथक दही हांडी को फोड़ने के लिए पूरे शहर के चक्कर लगाते हैं। इस बार सबसे अधिक चर्चा महिला टोली की हो रही है। इस महिला गोविंदा पथक में 10 साल की उम्र से लेकर 45 साल की उम्र की महिलाएं शामिल हैं। इन महिलाओं का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार की मटकी को फोड़ना है।