कार्यस्थल पर महिलाओं के सेहत और काम करने के माहौल को लेकर हाल ही में कई जरूरी अध्ययन किए गए हैं। यह सभी अध्ययन इन बातों को ध्यान में रख कर किए गए हैं कि कार्यस्थल का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है और उनकी सेहत किस तरह से निजी और प्रोफेशनल जिंदगी के उतार- चढ़ाव का सामना करती आयी हैं। आइए विस्तार से जानते हैं उन 5 अहम अध्ययन के बारे में, जो कि कामकाजी महिलाओं के बेहतर जिंदगी के लिए प्रमुख माने गए हैं।
कार्यस्थल में कामकाजी महिलाओं की गिनती बढ़ी
जॉब्स फॉर हर ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट तैयार की। इसके अनुसार जनवरी 2022 से जनवरी 2023 के बीच भारत में मौजूद 300 कंपनियों पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद अध्ययन में यह सामने आया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत रही है, वहीं साल 2021 में महिलाओं की गिनती में 17 प्रतिशत की बढ़त आयी है। यह भी जान लें कि महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या के पीछे की वजह यह है कि 70 प्रतिशत कंपनियों के पास नियुक्ति में जेंडर डाइवर्सिटी पर अधिक ध्यान दिया गया है। इस अध्ययन में शामिल 80 प्रतिशत कंपनियों के अनुसार महिलाएं अपने काम में बेहतर हैं।
महिलाएं हो रही हैं लाइफस्टाइल बीमारियों की शिकार
एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की एक अध्ययन के अनुसार 68 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और तनाव से पीड़ित हैं। यह सर्वे 21 साल की उम्र से लेकर 52 साल की महिलाओं के बीच किया गया है। यह भी सामने आया है कि अधिक घंटों तक काम करने के कारण 75 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। इस रिसर्च में यह भी सामने आया है कि महिलाएं खुद का ध्यान नहीं रख पाती हैं, ऐसे में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह भी नतीजा सामने आया है कि 70 फीसदी से अधिक महिलाओं को 50 की उम्र तक फाइब्रॉएड होने का खतरा बढ़ जाता है। वाकई, महिलाओं के लिए किया गया यह रिसर्च चौंकाने वाला है।
महिलाएं जीवन में अहम फैसलों के लिए पुरुषों पर निर्भर नहीं
हाल ही में किए वर्किंग स्त्री के एक अध्ययन के अनुसार भारत में 70 फीसदी कामकाजी महिलाएं घर खर्च में अपना पूरा योगदान देती हैं। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि दिल्ली में 67 प्रतिशत से अधिक कामकाजी महिलाएं अपने वेतन से घर के खर्च की जिम्मेदारी उठा रही हैं, इसके साथ 31 फीसदी महिलाएं अपनी आधी सैलरी घर पर जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपना खर्च संभालती हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि देश में मौजूद कामकाजी महिलाएं अपने वित्तीय फैसले के लिए परिवार में मौजूद पति, पिता या फिर भाई पर निर्भर नहीं रहती हैं। वाकई , महिलाओं में आत्मविश्वास के लिए वित्तीय आजादी सबसे अहम है।
पीरियड्स के दौरान छुट्टी
दो महीने पहले महिलाओं से जुड़े एक सफाई ब्रांड ने मासिक धर्म को लेकर एक सर्वेक्षण किया। इसमें ज्ञात हुआ कि 71 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म की छुट्टी का भुगतान नहीं चाहती हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि महिलाओं का डर है कि अगर उनके पीरियड्स की छुट्टी का भुगतान किया गया, तो उन्हें नौकरी मिलने में काफी परेशानी होगी। याद दिला दें कि इस अध्ययन में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और पुणे के साथ लखनऊ और पटना में मौजूद 18 से 35 साल की 10 हजार महिलाओं ने भाग लिया था। दूसरी तरफ लगभग 73 प्रतिशत महिलाएं यह चाहती हैं कि कंपनियां उन्हें पीरियड्स की छुट्टी की अनुमति दें, लेकिन वे इसका भुगतान नहीं चाहती हैं।
महिलाएं काम के लिए इन शहरों को मानती हैं सुरक्षित
कुछ दिन पहले 100 से अधिक शहरों की 780 के करीब महिलाओं के साथ एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में महिलाओं को पूछा गया है कि वह काम के हिसाब से किस शहर को खुद के लिए बेहतर मानती हैं, जो कि सुविधा और सुरक्षा के आधार पर सही है। महिलाओं ने टॉप 10 शहरों चेन्नई, पुणे, बैंगलोर, हैदराबाद, मुंबई, अहमदाबाद, विशाखापट्टनम, कोलकाता, कोयम्बटूर और मदुरई को शामिल किया है, वहीं महिलाओं की पसंद के टॉप शहरों की बात की जाए, तो शिमला, मंगलुरु और सेलम के अलावा कई अन्य शहरों के नाम शामिल हैं। ज्ञात हो कि यह सारे सर्वे इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि महिलाएं शहरों को कामकाज के हिसाब से सुरक्षित मानती हैं।
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