देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को आमदनी का रास्ता दिखाने का काम बीते कई सालों में दीदी नाम के ब्रांड ने किया है। जी हां, कई ऐसे शहर हैं, जहां पर महिलाओं के हुनर को कभी ‘दीदी की रसोई’, तो कभी ‘दीदी कैफे’ के जरिए आर्थिक विकास के रास्ते पर चलाया जा रहा है। गांव में ग्राम पंचायत और सरकार के तरफ से की गई इस पहल से महिलाएं बड़ी संख्या में जुड़कर महिला सशक्तिकरण की परिभाषा लिख रही हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
‘दीदी की रसोई’ से मिला महिलाओं को रोजगार
भारत के पूर्वी प्रदेश बिहार के बाघमनझुआ गांव की लीला देवी के साथ कई ऐसी महिलाएं हैं, जो कि दीदी की रसोई में काम करती हैं। दीदी की रसोई के जरिए बिहार की कई ग्रामीण महिलाओं के हुनर को आर्थिक बल मिला है। कई सारी ऐसी महिलाएं हैं, जो कि ‘दीदी की रसोई’ में काम कर रही हैं। ‘दीदी की रसोई’ में काम कर रहीं 26 महिलाएं हर दिन 250 लोगों का खाना बनाती हैं। गांव में आर्थिक समस्या का सामना कर रहीं, ये सभी 26 महिलाओं को इस बात से प्रोत्साहन मिल रहा है कि कैसे उनके खाना बनाने के हुनर को ‘दीदी की रसोई’ के जरिए पहचान मिली है और इसके साथ ही इस रसोई के जरिए मिले रोजगार के कारण वे अपने परिवार का पालन-पोषण भी कर पा रही हैं। इन महिलाओं का कहना है कि ‘दीदी की रसोई’ के जरिए वह आत्मनिर्भर भी बनी हैं और साथ ही उनका आत्मसम्मान भी बढ़ा है।
छत्तीसगढ़ में भी दीदी की रसोई का बोलबाला
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में ‘दीदी की रसोई’ के जरिए महिलाओं ने सफलता की नई कहानी लिखी है। धमतरी जिले के भटगांव में दीदी की रसोई का संचालन शारदा महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कर रही हैं। ग्राम पंचायत कार्यालय में ‘दीदी की रसोई’ शुरू करने से इन महिलाओं का लगातार आर्थिक फायदा हो रहा है। इस इलाके के कई मजदूर और ग्रामीण लोग भी ‘दीदी की रसोई’ से स्वाद भरा खाना लेते हैं। हर महीने छ्त्तीसगढ़ की ‘दीदी की रसोई’ को लगभर 8 हजार के करीब की आय होती है। वाकई, बिहार और छत्तीसगढ़ में शुरू ‘दीदी की रसोई’ कई महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बनी है। दिलचस्प है कि कई दूसरे शहरों और ग्रामीण इलाकों की महिलाएं भी ‘दीदी की रसोई’ कांसेप्ट के जरिए खुद को लगातार आत्मनिर्भर बना रही हैं।
दीदी पुस्तकालय बना शिक्षा का जरिया
‘दीदी की रसोई’ के बाद दीदी का पुस्तकालय भी ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का बड़ा माध्यम बना है। बिहार सरकार की तरफ से कई ग्रामीण क्षेत्रों में दीदी पुस्तकालय की स्थापना की गई है। इस पुस्तकालय का उद्देश्य यह है कि ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों के विकास के लिए उन तक जरूरी किताबों का पहुंचाना है, ताकि भविष्य में यह किताब उनके विकास का जरिया बन सके। दीदी की पुस्तकालय को सरकार ने बड़े स्तर पर बनवाया है। ‘दीदी की पुस्तकालय’ के लिए बड़े भवन की स्थापना की गई है, जिसमें तकरीबन 40 लोग के करीब लोग बैठकर पढ़ाई कर सकते हैं। दीदी की पुस्तकालय के तहत 63 पुस्तकालय की स्थापना की भिन्न स्थानों पर की गई है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में शिक्षा की तरफ बढ़ाया हुआ यह कदम देश के विकास में सहायत होगा।
दीदी की दुकान पर पर मिलेगा सारा सामान
झारखंड के दुमका में ‘दीदी की दुकान’ पर मिलेगा ढेर सारा सामान। जी हां, ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए झारखंड के ग्रामीण इलाकों में ‘दीदी की दुकान’ की शुरुआत की गई है। ठीक इसी तरह अमेठी में भी ‘दीदी के दुकान’ का आगाज कर महिलाओं ने खुद के लिए रोजगार खोज लिया है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अमेठी के कई गांव में दीदी किराना स्टोर भी शुरू किए गए हैं। ग्राम पंचायतों के जरिए गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने करे लिए दीदी के किराने से कई महिलाएं लगातार जुड़ कर खुद के परिवार का पालन कर रही हैं।
दीदी कैफे ने दी आर्थिक मजबूती
मध्य प्रदेश में भी ‘दीदी कैफे’ के जरिए महिलाओं ने मिसाल कायम की है। रीवा की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने मिलकर दीदी कैफे को शुरू किया। दिलचस्प है कि 14 महिलाओं ने मिलकर रीवा में 2 अलग-अलग कैफे शुरू किए हैं। गांव में कैफे की सभ्यता के साथ महिलाओं ने खुद के लिए प्रगति का रास्ता बनाया है। बता दें कि विधायक निधि से इस कैफे की शुरुआत की गई है। इस ‘दीदी कैफे’ में खान-पान से जुड़ी सारी सामग्री मिलती है, जो कि ग्रामीणों की पहली पसंद बन गई है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के इस हौसले की प्रशंसा की जा रही है, क्योंकि वे दूसरे शहर और गांव की महिलाओं के लिए मिसाल बनी हैं।
दीदी बर्तन बैंक
‘दीदी बर्तन बैंक’ के जरिए एक तरफ जहां महिलाएं प्लास्टिक न इस्तेमाल करने की सीख दे रही हैं, वही इसके महिलाओं को बर्तन के काम से रोजगार भी मिला है। छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर में मौजूद दीदी बर्तन बैंक में 800 लोगों को भोजन कराने का सारा सामान मौजूद है। शादी और त्योहारों के समय ‘दीदी बर्तन बैंक’ की मांग बढ़ गई है साथ ही प्लास्टिक के इस्तेमाल में भी कमी देखी जा रही है। वाकई, महिलाओं की कमाई का यह तरीका पर्यावरण को सुरक्षित करने का भी संदेश दे रहा है।