भारतीय महिलाएं लगातार विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, ऐसे में महिलाओं ने छोटी-छोटी चीजों में विज्ञान का इस्तेमाल करके नए काम किये हैं। हालांकि ऐसे कई काम भी महिला वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे हैं, जिन पर बातचीत नहीं हो पाती है या वे खबरें सामने नहीं आ पाती हैं, लेकिन खास बात यह है कि ऐसे काम आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में कई तरह के बदलाव लाते हैं, कुछ ऐसा ही कमाल तीन महिला वैज्ञानिक ने भी कर दिखाया है, जिनके नाम हैं, डॉ वीरा जयलक्ष्मी, डॉ अनीता बब्बर और डॉ ऋतु सक्सेना, जिन्होंने वर्ष 2022 की सबसे जलवायु के अनुरूप को ध्यान में रखते हुए स्मार्ट चने(काबुली) की किस्मों को बनाने में ICRISAT के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया, जो मौजूदा किस्मों के लिए एक बेहतर विकल्प प्रदान करती हैं, खासकर मध्य और दक्षिण भारत में यह काम खूब तेजी से हो रहा है।
गौरतलब है कि पूरे उत्तर भारत में नाश्ते के रूप में काबुली चने की खपत खूब होती है, पर्व और त्यौहारों में छोले मुख्य व्यंजन के रूप में बनाये जाते हैं, ऐसे में काबुली चना एक महत्वपूर्ण अनाज है। यह प्रोटीन का भी अहम स्रोत होता है, ऐसे में मौसम और जलवायु को ध्यान में रखते हुए महिला वैज्ञानिकों ने जो यह कदम उठाया है और लोगों की आम जरूरतों का ख्याल रखा है, वह अपने आप में एक अच्छी पहल है। जी हां, महिला वैज्ञानिक लगातार अनाज को लेकर संशोधन कर रहे हैं। तो महिला वैज्ञानिकों ने वर्ष 2022 चने की ऐसी किस्में उगाई हैं, जो गर्मी के मौसम के प्रति भी संवेदनशील है और जलवायु परिवर्तन को भी सहन करने में सक्षम हैं, साथ ही यह जल्दी इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है (केवल 94 दिनों मेंतैयार हो जाने वाली किस्मों में से एक) और बेमौसम बारिश से बचने के लिए त्वरित कटाई के लिए मशीन से कटाई योग्य भी है, इसकी खासियत यह भी है कि ये किस्में खतरनाक फुसैरियम विल्ट सहित कई बीमारियों के लिए भी प्रतिरोधी हैं। इन्हें हर तरह की स्थिति में उगाया जा सकता है, यही वजह है कि यह बाजार के लिए काफी उपयुक्त हैं और बाजार की उत्तम और पसंद की जाने वाली श्रेणी में खरे उतरते हैं।
डॉ वीरा जयलक्ष्मी की बात करें, तो वह क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र (आरएआरएस), नंदयाल, आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय (एएनजीआरएयू), आंध्र प्रदेश में प्रधान वैज्ञानिक हैं और उन्होंने 2012 में सूखा सहिष्णु(टॉलरेंट/ हर मौसम और खेत में स्थापित होने की स्थिति ) चने की किस्म विकसित करना शुरू किया और वर्ष 2015 में पहली मशीन-कटाई योग्य किस्म विकसित की। और लगातार कई सालों तक प्रयोग करने के बाद, वर्ष 2022 में उत्तम देसी छोला (आईसीसीवी 14108) जारी हुआ, जो फुसैरियम विल्ट के लिए प्रतिरोधी है। वहीं डॉ अनीता बब्बर, जो कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय (जेएनकेवीवी), राज्य कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में प्रधान वैज्ञानिक हैं और 20 से अधिक वर्षों से आईसीआरआईएसएटी से जुड़ी हुई हैं। इन्होंने मध्य प्रदेश में खेती के लिए उपयुक्त चने की किस्म विकसित की है। नई जारी की गई यह देसी किस्म (आईसीसीवी15118) गर्मी के दबाव (देर से रोपण की स्थिति) के प्रति सहनशील है और उपज और कई बीमारियों के प्रतिरोध के मामले में मौजूदा किस्मों से बेहतर है। बता दें कि बड़े आकार के बीजों में अच्छी पार्चिंग गुणवत्ता होती है, जो पांच मौजूदा किस्मों के लिए एक बेहतर विकल्प साबित होती है।
इनके अलावा, डॉ ऋतु सक्सेना भी एक अहम वैज्ञानिक हैं, ऋतु इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (IGKV), रायपुर, छत्तीसगढ़ में एक प्रधान वैज्ञानिक हैं और 2018 से ICRISAT से जुड़ी हुई हैं। इन्होंने ने भी चने की एक किस्म विकसित की है, जो सिर्फ 94 दिनों में इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाती है। यह विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक के चार राज्यों में बरसात के बाद (रबी) मौसम में विभिन्न फसल प्रणालियों में इसकी खेती को सक्षम बनाती है।
गौरतलब है कि भारत में, शोधकर्ता आपूर्ति की गई प्रजनन सामग्री( ब्रीडिंग मटेरियल) में से चयन करते हैं और उनमें से जो सबसे बेहतर होते हैं, उन चने (काबुली चना/छोले वाला चना ) पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) में रिलीज के लिए नामित किया जाता है। और पिछले 10 वर्षों में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और ICRISAT के सहयोग से भारत में 23 किस्में जारी की गई हैं।
यह भी बताते चलें कि ICRISAT नियमित रूप से भारत में 25 से अधिक चना प्रजनन कार्यक्रमों( ब्रीडिंग प्रोग्राम) और दक्षिण एशिया और पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में 10 से अधिक देशों के राष्ट्रीय प्रजनन कार्यक्रमों ( नेशनल ब्रीडिंग कार्यक्रम) के लिए विशेषता-विशिष्ट प्रजनन सामग्री की आपूर्ति करता है।