देश के विभिन्न इलाकों में मौजूद महिलाएं समूह बनाकर पर्यावरण को बचाने की सीख दे रही हैं। इन महिलाओं ने अपनी इस योजना के जरिए न केवल यह बताया है कि कैसे पर्यावरण को सुरक्षित रखना चाहिए, बल्कि वे पर्यावरण को बचाने के अभियान में सतत अपनी भागीदारी भी दिखा रही हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि कैसे पर्यावरण को बचाने के लिए महिलाओं ने अपने कदमों को आगे बढ़ाया है। वे सभी महिलाएं लगातार पर्यावरण से जुड़ी कोई न कोई गतिविधियां करके पर्यावरण को जीवित रखने का संदेश दे रही हैं।
पर्यावरण को बचाने के लिए मिसाल बनीं ये महिला, किया अनोखा काम
उत्तराखंड के चमोली जिले के थिरपाक गांव की लक्ष्मी रावत ने पर्यावरण को बचाने के लिए एक अनोखी और मजबूत पहल की है। दिलचस्प है कि लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने एक साथ मिलकर उत्तराखंड के 10 जिलों में पौधा रोपण करने का काम सतत करते हुए आ रही हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि चमोली की महिलाएं पर्यावरण को हर मुमकिन कोशिश के जरिए बचाने की कोशिश लगातार करती आ रही हैं। फिर चाहे वह फैक्ट्री बनाने के लिए पेड़ों को बचाने का काम चिपको आंदोलन के जरिए क्यों न हो। चमोली जिले की महिलाओं ने हमेशा से पर्यावरण को अपने जीवन का खास हिस्सा माना है। इस बीच लक्ष्मी साल 2003 से लगातार स्वयं सहायता समूह से जुड़कर 50 हजार से अधिक पेड़ लगा चुकी हैं। खासतौर पर उन्होंने रीठा, तेजपत्ता और शहतूत के पौधे लगाए हैं। लक्ष्मी का मानना है कि जंगलों में लगने वाली आग से पेड़ जल जाते हैं। ऐसे में लगातार पेड़ लगाकर लगाकर वह पर्यावरण को बढ़ावा दे रही हैं।
पर्यावरण के लिए तैयार किया बॉल
मध्य प्रदेश के बैतूल में पहाड़ी क्षेत्रों में पौधे रोपण के दुष्कर काम को आसान बनाने के लिए महिलाओं ने सीड बॉल तैयार किया है। वे इस सीड बॉल को जंगल और पहाड़ वाले इलाके में फेंक रही हैं। इस इलाके के विश्वकर्मा महापंचायत महिला मोर्चा की महिलाएं बारिश शुरू होन के साथ सीड बॉल तैयार करती हैं। इस बॉल को तैयार करने के लिए आम, जामुन और कटहल के बीज को इकट्ठा करके उसमें खाद मिलाया जाता है और उस मिट्टी की बॉल बनाकर तैयार किया जाता है। बारिश होने पर सीड बॉल को पहाड़ और जंगल के इलाकों में फेंका जाता है, जहां पर ये बॉल जाकर गिरते हैं, तो उस पर बारिश का पानी पड़ता है और वे अंकुरित हो जाते हैं। इससे बॉल पहले पौधे बनते हैं और फिर पेड़। ज्ञात हो कि पौधा रोपण करने का लक्ष्य कई बार अधूरा रह जाता है, सीड बाॅल के माध्यम से पौधे लगाने का काम कम खर्च में और जल्दी हो जाता है।
छत्तीसगढ़ में इको फ्रेंडली पेंसिल
छत्तीसगढ़ की महासमुंद जिले के भेलसर गांव की महिलाएं इको फ्रेंडली पेंसिल के जरिए पर्यावरण के लिए एक अनोखा योगदान दे रही हैं। इस जिले की महिलाओं ने बीते कुछ सालों से गोबर और गोमूत्र से कई तरह के प्रोडक्ट बना रही हैं। इस बीच इन महिलाओं ने नया प्रोडक्ट ईजाद किया है, जिसकी चर्चा सबसे अधिक हो रही है, वो है इको फ्रेंडली पेंसिल। इसे बनाने के लिए यह महिलाएं बाजार से 5 रुपए में कागज से बनी पेंसिल खरीदी और पेंसिल के अंतिम हिस्से पर कैप्सूल के सहारे आम, गुलमोहर और बरगद के साथ कुछ सब्जियों के बीज टेप से चिपका दिए हैं और स्टिकर लगा दिया है। इन महिलाओं को इस पेंसिल को बनाने में लगभग 7 रुपए का खर्च हो रहा है और इसे 10 रुपए में बेचा जा रहा है। पर्यावरण में इस पेंसिल का इस्तेमाल इस तरह होगा कि इस्तेमाल करने के बाद इस पेंसिल को जहां फेंका जाएगा। वहां वह बीज का हिस्सा मिट्टी के संपर्क में आने से पौधे का रूप ले लेगा। वाकई, महिलाओं द्वारा किया गया कार्य पर्यावरण बचाने की दिशा ने सराहनीय कार्य है।
कबाड़ को नया रूप देकर पर्यावरण को सुरक्षित करने का कार्य
उत्तर प्रदेश की झांसी में पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक अनोखा कार्य हो रहा है। झांसी की नीलम सारंगी लंबे समय से कबाड़ को नया रूप देकर पर्यावरण को सुरक्षित करने का कार्य कर रही हैं। बेकार पड़ी हुईं बोतलों, पुराने कपड़े और टायर को एक अनोखा आकार देकर उसे नए रूप में तैयार कर रही हैं। नीलम का कहना है कि नए पेड़ को लगाने के साथ कूड़े को लेकर भी सभी को एकजुट होकर आकर इसके लिए नई योजना तैयार करनी चाहिए। उनके हिसाब से सूखे कचड़े को फिर से इस्तेमाल करने पर जोर देना चाहिए। दिलचस्प है कि नीलम सारंगी ने झांसी नगर निगम के साथ मिलकर 15 से अधिक कूड़ाघरों को सेल्फी पॉइंट में बदल दिया है।
ट्री वीमेन ऐसे बचा रही हैं पर्यावरण को
बिहार के जुमई जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र खैरा प्रखंड के मंझियानी गांव की 53 साल करी चिंता देवी बीते दो दशक से वन्य जीवन को बचाने का काम कर रही हैं। चिंता देवी को इस इलाके में ट्री वीमेन के नाम से भी पहचान मिली है। साल 2000 से चिंता देवी 20 से अधिक महिलाओं के साथ मिलकर पेड़ों को बचाने का कार्य कर रही हैं। चिंता देवी ने महिलाओं का गश्ती दल बनाया है। यह दल एक साथ मिलकर जंगल को जंगली जानवर और पेड़ों की कटाई होने से रोकता है। बता दें कि चिंता देवी को उनके इस कार्य के लिए 8 से अधिक बार पुरस्कार भी मिल चुका है।