क्या साड़ी परिधान भी किसी के लिए अस्तित्व की पहचान बन सकती है, क्या साड़ी किसी की सफलता की कहानी लिख सकती है ? कल्पना करके थोड़ी हैरत हो सकती है, लेकिन यही सच है कि केरल में कुछ महिलाओं के लिए अस्तित्व का विषय बन गई है ये साड़ियां। जी हां, केरल के प्रसिद्ध चेंदामंगलम बुनाई क्लस्टर से महिला बुनकरों द्वारा बनाई गई, महिला वकीलों की साड़ियां वहां की बुनकर महिलाओं के काम को पुनर्जीवित करने की कोशिश है। एक ऐसे काम को बचाने की कोशिश सेव द लूम द्वारा की जा रही है, जो धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। दरअसल, हाल ही में एक महिला वकील अमांडा ने अपने सोशल मीडिया से एक पोस्ट शेयर की है, जिसमें वह सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ग्रे रंग और जिसमें काले रंग का घेरा और सफेद स्ट्रिप्स है, जो उन्होंने ब्लैक जैकेट के अंदर पहनी है, उसकी एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि मेरे लिए यह एक यादगार दिन है, जब मैं अपनी जड़ों का सम्मान कर रही हूं, मेरे प्रवासी (पलायन) अभिभावक की कड़ी मेहनत का सम्मान कर रही हूं और करघा को बचाने की कोशिश कर रही हूं। सेव द लूम भी एक केरल में स्थित एजेंसी है, जो सामाजिक दायित्व और प्रभावों पर काम करती हैं और उनकी ही साड़ी अमांडा ने पहनी हैं। खास बात यह है कि सेव द लूम की उषा साड़ियां जो कि विधि कलेक्शन के नाम से सामने आयी है। यह 15 हैंडलूम साड़ियां हैं, जो कि महिला वकीलों के लिए बनायी गई हैं। सेव द लूम ने एक लेटर जारी करते हुए लिखा है कि वह बुनकर महिलाओं को आगे बढ़ने, एक अच्छा काम का माहौल देने और उन्हें सही मेहनताना देने की तरफ अग्रसर है। खास बात यह है कि महिलाओं की यह कोशिशों का नतीजा है। जस्टिस केके उषा, जिनका देहांत हो चुका है, वह पहली केरल हाई कोर्ट की मलयाली चीफ जस्टिस रहीं, उन्होंने अपने कार्यकाल में महिलाओं से जुड़ीं समस्याओं को लेकर काफी लड़ाइयां लड़ी हैं। वहीं, महिला वकील अमांडा ने यह खरीदी तो, प्रीति आरके, जो कि करघा बुनकरों में से एक हैं, उन्होंने 16 घंटे काम करके इस काम को अंजाम दिया है। इन दोनों ही कामों में यह एक सूत्र है कि वकालत और बुनकरों का काम दोनों में ही पहले पुरुषों की संख्या अधिक थी। लेकिन जुलाई 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 15 . 3 प्रतिशत महिलाएं वकालत में आई हैं, जबकि भारत में 1923 से लीगल प्रोफेशन को महिलाओं के लिए शुरू किया गया था। वहीं केरल के एर्नाकुलम जिले में 92 से 96 प्रतिशत अब महिलाएं ही हैं, जो बुनकरों का काम कर रही हैं, जब से पुरुषों ने इस काम को छोड़ दिया है।
बता दें कि सेव द हैंडलूम की शुरुआत रमेश मेनन ने की थी, उन्होंने 2018 में केरल में आये भीषण बाढ़ में हुई त्रासदी के बाद, फिर से लोगों को काम और जीविका मुहैया कराने के लिए इसकी शुरुआत की थी और हैंडलूम के काम को बढ़ावा देने की कोशिश की थी।
केरल में हथकरघा उद्योग बुजुर्गों के लिए भी रोजगार मुहैया करने के विकल्प के रूप में साबित हो रहा है। जी हां, 85 प्रतिशत बुनकर 45 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और वे न्यूनतम दैनिक वेतन 150 रुपये कमाते हैं, जैसा कि तब सरकार द्वारा निर्धारित किया गया था। गौरतलब है कि बुनकर ज्यादातर दुर्गा पूजा, दीपावली, ओणम, विशु और बैसाखी जैसे पारंपरिक त्योहारों पर निर्भर होते हैं, ऐसे मौके जब पारंपरिक परिधानों की उच्च मांग से हथकरघा की बिक्री आसमान छूती है। लेकिन 2018-19 केरल बाढ़, उसके बाद 2020-21 महामारी ने उत्सवों पर विराम लगा दिया। तब बाजार में नई पैठ बनाने, युवा खरीदारों को आकर्षित करने और बुनकरों के लिए बेहतर वेतन सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत थी। और महिला वकीलों के एक समूह ने उस दरवाजे को खोल दिया।
यह भी महिला बुनकरों के काम को बढ़ावा देना है कि नौ महिला बुनकर डिजाइन की विधी रेंज बुनती हैं, जिनका नाम महिला जजों के नाम पर रखा गया है, इनमें कॉर्नेलिया सोराबजी है, जो भारत की पहली महिला वकील हैं, न्यायमूर्ति लीला सेठ, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की पहली मुख्य न्यायाधीश, कई बाधाओं को पार करने वाली जस्टिस सुजाता वी मनोहर, और स्वर्गीय न्यायमूर्ति उषा, बीवी और चांडी का नाम शामिल हैं । पुराने जमाने की ये महिला वकील सभी हथकरघा साड़ियों की पारखी थीं, उनके पास एक निजी लॉन्डरर थी जो यह सुनिश्चित करती थी कि साड़ियों को सही तरीके से देखभाल मिले, ऐसे में विधि कलेक्शन इन सारी बारीकियों का ध्यान रखता है।
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