न्यायमूर्ति आरएन मंजुला फैमिली कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ रिवीजन पेटिशन सुन रही थीं, जिसमें एक महिला को उसके पति की याचिका पर विवाह न करने का हवाला देते हुए उसका मेडिकल परीक्षण करने का निर्देश दिया गया था। अनियमित माहवारी के फैक्ट्स को याचिकाकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया था।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि हार्मोनल असंतुलन अनियमित मासिक धर्म से जुड़ा है। याचिकाकर्ता स्वयं पहले ही एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास जा चुकी है और जांच की है और अपने काउंटर में उन फैक्ट्स के बारे में बताया भी है। इसलिए कोर्ट के आदेश पर उसे मेडिकल जांच के लिए कहना अनावश्यक है।
इसमें कहा गया है कि यदि पति ने एक्टिव सेक्स लाइफ के लिए अपनी पत्नी, याचिकाकर्ता के सहयोग न करने के कारण मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर विवाह भंग करने के लिए याचिका दायर की होती, तो यह एक अलग स्थिति होती। हालांकि, उन्होंने हार्मोनल असंतुलन और अनियमित पीरियड्स के आरोपों को रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश की भी और आलोचना की, जिसमें न्यायाधीश ने महिला याचिकाकर्ता पर यह साबित करने का भार डाला था कि वह यौन संबंध बनाने और एक बच्चे को गर्भ धारण करने के लिए उपयुक्त है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जो लोग यौन संबंध बनाने के लिए फिट हैं वे भी बच्चे पैदा नहीं कर सकते हैं।
जब दम्पति खुद को समझें, चिकित्सक की राय लें और डॉक्टरों की सलाह मानें तो ही समस्या का समाधान हो सकता है। यह देखते हुए कि मुख्य याचिका खुद आदेश देने के लेवल पर थी, अदालत ने फैमिली कोर्ट को यह स्वतंत्रता दी कि वह पुष्टि करने के लिए केवल याचिकाकर्ता को चिकित्सा परीक्षण के लिए जाने का निर्देश देने के बजाय रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित करे। न्यायमूर्ति आरएन मंजुला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हार्मोनल असंतुलन या अनियमित मासिक धर्म को फीमेल इम्पोटेंसी नहीं माना जा सकता और यह नहीं कहा जा सकता कि वे सेक्स के लिए फिट नहीं है।