पिछले कुछ समय से अगर गौर किया जाए, तो हिमाचल प्रदेश की महिलाओं की यही कोशिश रहती है कि वे खुद को आत्मनिर्भर बनाएं और वह भी प्रकृति से जुड़ कर, कुछ ऐसा ही मंडी की महिलाएं कर रही हैं। वे खुद को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रही हैं और चीड़ की पत्तियां इसका माध्यम बन रही हैं। इतना ही नहीं, वे इस क्रम में यह भी कोशिश कर रही हैं कि जंगल को बचा कर रखा जा सके। दरअसल,चीड़ ( pine leaves) की पत्तियां, जो कि जंगलों की आग का मुख्य कारण बनती हैं और ये उन पत्तियों का कुछ ऐसे इस्तेमाल किया जा रहा है कि जंगल भी सुरक्षित बच रहे हैं और इससे उनकी आमदनी भी हो रही है। यह काम जाईका परियोजना के तहत हो रहा है, और इससे जंगलों से चीड़ की पत्तियां कम हो रही हैं और जिसकी वजह से जंगलों में आग लगने का खतरा भी कम हो रहा है, जिससे जंगल सुरक्षित बच रहे हैं। निश्चित तौर पर जाईका परियोजना आज न सिर्फ जंगलों के सही रख रखाव के लिए कारगर साबित हो रही है, बल्कि इससे ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वरोजगार भी मिल रहा है।
गौरतलब है कि ग्रामीण महिलाएं जंगलों में गिरी चीड़ की पत्तियों को एकत्रित करके या तो उनके उत्पाद बनाती हैं या फिर उन्हें बेच देती हैं। खास बात यह है कि चीड़ की पत्तियों के काफी सारे उत्पाद बनाये जा रहे है, इन उत्पादों में प्रमुख रूप से छोटी टोकरियां, फ्लावर पॉट, चपाती बॉक्स, पैन स्टैंड, कोस्टर सेट और फ्रूट ट्रे जैसी जरूरत की चीजें हैं, ये महिलाएं इसे बना कर बिक्री कर रही हैं और इससे उन्हें काफी मुनाफा हो रहा है। बता दें कि फिलहाल पूरे मंडल में 28 कमेटियों का गठन किया गया है और ग्रामीण स्तर पर महिलाओं और अन्य लोगों को जंगलों और इस काम के साथ जोड़कर स्वरोजगार भी दिया जा रहा है और साथ ही साथ वनों के संरक्षण को लेकर भी कई प्रयास किये जा रहे हैं।
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