बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कई अभियान लगातार भारत में हो रहे हैं, ताकि कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सके और लड़कियों को बढ़ावा दिया जा सके, ऐसे में एक नयी रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कई दिलचस्प पहलू निकल कर सामने आये हैं। आइए जानें विस्तार से
पंजाब और हरियाणा भारत के उन दो राज्यों में से एक रहे हैं, जहां सबसे अधिक कन्या भ्रूण हत्या होती रही हैं। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि अभी जो नया अध्यन्न सामने आया है, वह एक सकारात्मक संकेत दे रही है। जी हां, अमेरिकन थिंक टैंक प्यू रिसर्च से जो बात सामने आयी है, वह चेहरे पर कुछ हद तक मुस्कान तो लाती है, क्योंकि इस रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात में सबसे अधिक सुधार हुआ है। पूरे भारत में ‘बेटे को प्राथमिकता देने की चाहत ' में भी उल्लेखनीय रूप से गिरावट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में प्रत्येक 100 लड़कियों के लिए पैदा होने वाले लड़कों की संख्या 2019 -21 से घट कर 111 (पंजाब) और 112 (हरियाणा) में हो गई है और 2001 में दोनों राज्यों में यह लगभग 127 थी।
रिपोर्ट से यह बात भी सामने आई है कि कुल मिलाकर, भारत भी इस अंतर को कम करने में सक्षम रहा है और इसके लिए और अधिक कोशिश कर रहा है। और 2001 की तुलना में 110 से 2019-21 में प्रत्येक 100 लड़कियों का अनुपात में पैदा हुए 108 लड़कों की संख्या कम हो गई है।
हालांकि भारत में जन्म के समय लिंगानुपात को प्रति 1000 महिला जन्मों पर पुरुष जन्मों की संख्या के आधार पर परिभाषित किया गया है, लेकिन इस सर्वेक्षण में अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली का उपयोग किया गया है, जिसके अंतर्गत अनुपात को प्रत्येक 100 महिलाओं के लिए पैदा हुए पुरुषों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है। रिपोर्ट यह बात साफ दर्शा रहा है कि भारत के उत्तरी राज्यों में सबसे अधिक सुधार देखा गया है, लेकिन दक्षिणी राज्यों के साथ-साथ पूर्व में भी गिरावट आई है। इस रिपोर्ट में भारत सरकार की भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए उठाये गए कदम के लिए सराहना की गई है। खासतौर से लिंग चयन पर अंकुश लगाने के प्रयासों के लिए श्रेय दिया जाता है। इन प्रयासों में लड़कियों को बचाने के लिए कई विज्ञापन अभियान और मुहिम ने भी लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा की है। अध्ययन में यह भी कहा गया है, "नए आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय परिवारों में बेटियों के बजाय बेटों के जन्म को लेकर लेकर, जिस तरह से गर्भपात कराये जाते थे, अब वह संभावना कम होती दिखाई दे रही है।
इस अध्यन्न में भारत को भौगौलिक आधार पर छह क्षेत्रों में विभाजित करके आंकड़े एकत्रित किये गए हैं। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि उत्तर में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं - जहां जन्म के समय लिंग अनुपात हर 100 लड़कियों के लिए 2019-21 में औसतन 111 लड़कों तक सीमित रहा है। जबकि 2001 में यह 118 लड़कों तक था। वहीं दूसरी तरफ,पांच दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में अनुपात और बढ़ा है। जहां 2019-21 में प्रत्येक 100 लड़कियों के लिए 108 लड़के का अनुपात है, जबकि 2001 में यह 106 था।
वहीं भारत के पूर्वी क्षेत्र जैसे बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में यह बुरा होता जा रहा है। जहां यह 2001 में 107 था, यह 2019-2021 में बढ़ कर 109 हो गया है। हालांकि भारत के बाकी क्षेत्रों में इसमें सामन्य रूप से ही बेहतरी हुई है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह 106 हुआ है, ( प्रत्येक 100 लड़की पर लड़के का अनुपात), गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा जैसी जगहों में यह पहले 116 था, अब घटकर 108 हुआ है।
वहीं भारत के उत्तर-पूर्वी इलाकों, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम में यह 105 से 104 हो गई है।
रिपोर्ट के ही अनुसार, भारत के दक्षिणी और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में लगातार लिंग अनुपात प्राकृतिक संतुलन के करीब रहा है, हालांकि दक्षिण में लिंगानुपात हाल ही में पुरुषों की ओर कम होना शुरू हुआ है। दक्षिण भारत में, जन्म के समय लिंगानुपात अब 108 है।
खास बात यह भी है कि इस अध्ययन ने एनएफएचएस सर्वे का उपयोग किया है। इन सर्वेक्षणों में महिलाओं से पूछा गया है कि "यदि आप उस समय में वापस जा सकती हैं, जब आपके कोई बच्चे नहीं थे और आप अपने जीवन में बच्चों की संख्या चुन सकती थीं, तो वह कितने होते ? कितने बेटे? कितनी बेटियां ?"। उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर, सर्वेक्षण बेटियों की तुलना में बेटों को पसंद करने वाली महिलाओं की संख्या का अनुमान प्रदान करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 1998-99 में 33 फीसदी, हर तीन में से एक महिला चाहती थी कि उनके पास बेटियों से ज्यादा बेटे हों। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संख्या 2019-21 से घट कर अब 15 फीसदी रह गयी है
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पहले गर्भपात के लिए अल्ट्रासॉउन्ड का इस्तेमाल महिलाएं अधिक करती थीं, लेकिन अब वह सोच भी बदली है। इसमें विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि ऐसा लगता है कि भारतीय महिलाएं लिंग चयन की सुविधा के बजाय, विशेष रूप से चिकित्सा उद्देश्यों के लिए अल्ट्रासाउंड परीक्षणों का उपयोग कर रही हैं। गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड के उपयोग के बाद जन्म के समय लिंगानुपात अब प्रति 100 लड़कियों पर 109 लड़के हैं, जो कि 2005-06 में एनएफएचएस में यह 118 थी, इसलिए यह भी एक सकारात्मक बदलाव माना जा रहा है।