अमूमन, जब भी किसी भी तरह की ड्राइविंग की बात आती है, तो दिमाग में पहले यही बात आती है कि चलाने वाला हो, वाली नहीं। कई बार लोगों को फ्लाइट में भी मजाक बनाते सुना है, अगर उन्हें पता चलता कि उस दिन की फ्लाइट में दो महिलाएं पायलट हैं। वह आपस में बात करते नजर आते हैं कि सेफ लैंड हो जाये बस, क्योंकि यह सोच है कि महिलाएं इस काम में पुरुषों की तुलना में कम होती हैं। लेकिन लगातार इस क्षेत्र में, महिलाओं ने कदम रखे हैं और इसी क्रम में लोको पायलट के रूप में भी महिलाओं की संख्या पहले की तुलना में बढ़ रही है और उनके इस कदम में साथ दे रहा है, उत्तर पश्चिम रेलवे।
जी हां, अब तक लोको पायलट के रूप में अधिकतर संख्या पुरुषों की ही हुआ करती थी। लेकिन अब उत्तर पश्चिम रेलवे ने महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए एक सार्थक पहल की है। जी हां, अब उत्तर पश्चिम रेलवे ने 40 महिला सहायक लोको पायलटों की भर्ती की है, जिन्हें कुछ वर्षों की सेवा के बाद लोको पायलट के पद पर पदोन्नत किया जाएगा। ये सहायक लोको पायलट जयपुर, जोधपुर, अजमेर और बीकानेर में काम करेंगी।
इस बारे में उत्तर पश्चिम रेलवे के सीपीआरओ कैप्टन शशि किरण ने कहा कि रेलवे अधिक से अधिक महिलाओं को इस क्षेत्र में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। आमतौर पर लोको पायलट पदों पर पुरुषों का ही दबदबा होता है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को इससे जोड़ने की कोशिश की जा रही है।
शशि किरण ने आगे कहा कि महिलाएं शिक्षण, इंजीनियरिंग और चिकित्सा जैसे व्यवसायों को चुनती हैं, लेकिन वे लोकोमोटिव उद्योग में भी अब वे प्रवेश कर रही हैं और यह काफी अच्छी शुरुआत है। इसे सकारात्मक रूप से लिया जाना चाहिए।
जयपुर की लोको पायलट ममता ने इस बारे में मीडिया से बातचीत में अपने अनुभव शेयर करते हुए कहा कि वह शादीशुदा हैं और आसानी से अपने जीवन और काम में संतुलन बिठा पा रही हैं, उन्हें इस काम को करने में काफी मजा आ रहा है। ममता चाहती हैं कि अधिक महिलाएं सहायक लोको पायलट के रूप में कार्यबल में शामिल हों। दिलचस्प बात यह भी है कि न केवल वह बल्कि 55 वर्षीय सुरेखा यादव भारत की पहली लोको पायलट बनीं। उन्होंने विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मुंबई-लखनऊ स्पेशल ट्रेन चलायी।
खास बात यह है कि पहले सुरेखा को दो या चार पहिया वाहन चलाने का पूर्व अनुभव नहीं था। लेकिन उन्होंने यह सबकुछ सीखा और उन्होंने रूढ़ियों को तोड़ा और पीढ़ियों को प्रेरित करती रहीं, ऐसे में अब और भी महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। वाकई, यह एक अच्छी पहल है, महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए और इस सोच को बदलने के लिए कि महिलाएं तकनीकी क्षेत्र में आना पसंद नहीं करती हैं।