दिवाली के पर्व को हर कोई पूरे उत्साह के साथ मना रहा है। पूरे भारत के आज रौशनी है। घरों में दिए जल रहे हैं और गलियों में रौशनी ही रौशनी। सबके चेहरे भी आंगन की रंगोली के रंगों की तरह खिली हुई है। देश भर में कैसे लोग तरह-तरह से इस त्यौहार के जश्न में लगे हुए हैं और महिलाओं के लिए कैसे यह आत्मनिर्भरता का जरिया बना है, आइए जानें विस्तार से
प्रयागराज
प्रयागराज शहर और उसके आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों की ग्रामीण महिला कलाकारों का एक समूह इस दिवाली पर्यावरण की रक्षा के लिए काम कर रहा है। ये ग्रामीण महिलाएं दिवाली पर पूजी जाने वाले देवी-देवताओं की इको फ्रेंडली मूर्तियां बनाने में जुटी हैं। वे गाय के गोबर का उपयोग करके भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और अन्य देवताओं की मूर्तियां बना रही हैं। प्रयागराज में स्थित बायोवेड रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (बीआरआईएटी) के मार्गदर्शन में ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे इन पर्यावरण के अनुकूल प्रोडक्ट्स की न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि नई दिल्ली और कोलकाता में भी काफी मांग है। इन शहरों के कई थोक विक्रेताओं ने इन मूर्तियों को दक्षिण-एशियाई देशों और यहां तक कि अमेरिका को भी निर्यात किया है।
दिल्ली
वैसे, आपने रंगों वाली रंगोली देखी होगी, कुछ लोग फूलों और कुछ लोग रंग चढ़े चावल से भी रंगोली बनाते हैं, लेकिन हम जिसके बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उन्होंने कीलों और धागों की सहायता से खूबसूरत रंगोली बनाकर सभी को चौंका दिया है। जी हां, दिल्ली की रहने वाली मुस्कान राजपूत ने अपनी सी खास किस्म की रंगोली को दो दिनों में पूरा किया है। वह लंबे समय से, इस दिवाली के लिए कुछ असाधारण आईडिया खोज रही थी और उन्हें विश्वास था कि यह स्ट्रिंग कला सबको बहुत पसंद आएगी। बता दें कि मुस्कान इस तरह की कई चीजें बनाती हैं और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर इनके तस्वीर और वीडियो पोस्ट करती रहती हैं।
रायपुर
त्यौहार सीजन अपने साथ घरों में खर्चे भी लेकर आता है, ऐसे में रायपुर के पावर हब जिले कोरबा में स्थानीय स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की 350 से अधिक महिला सदस्यों ने भारत एल्युमिनियम द्वारा शुरू की गई पहल में अपना पहला कदम उठाया है। अपनी सामुदायिक विकास परियोजना, 'उन्नति' के तहत यहां की महिलाओं ने दिए, कंदील, मोमबत्तियां जैसे विभिन्न प्रोडक्ट्स को बेचने की योजना बनाई है। प्रतिभागियों ने पहले इन प्रोडक्ट्स को बनाने का कौशल हासिल किया है और अब इन्हें अपने हाथों से बनाकर बेचने वाले हैं।
वाकई में इस बार दिवाली सबके चेहरे पर उम्मीद की एक किरण लेकर आई है, क्योंकि कोविड महामारी की मार के बाद, पूर्ण रूप से इस बार दिवाली की रौनक पूरे भारत में हैं।