महिलाओं के लिए ऐसे दौर में जब हर तरफ यही चर्चा होती रहती है कि वे वर्कफोर्स पर बेहतर कर रही हैं, एक नयी खबर सामने आई है, जिसके अनुसार नौकरी छोड़ने के बाद फिर से काम पर जब जाने की बात आती है, तो पुरुषों की संख्या महिलाओं से कहीं अधिक होती है और यह एक बड़ी वजह बनता है, जिससे लैंगिक असमानता होती ही है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय( नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस द्वारा जारी किए गए पेरोल डेटा से पता चलता है कि जून में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में फिर से शामिल होने और फिर से सदस्यता लेने वालों में से केवल 18.67 प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि अप्रैल में 18 प्रतिशत से थोड़ा सुधार हुआ है और मई में केवल 17.7 प्रतिशत में मामूली सुधार हुआ है। यह आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में अनुपात में सुधार तो हुआ है, लेकिन धीमी गति से ही सुधार हुआ है।
इसकी तुलना में, जून में ईपीएफ के नए ग्राहकों में 26.6 फीसदी महिलाएं हैं, जो इस बात का संकेत है कि महिला फ्रेशर्स के पास नौकरी के बाजार में प्रवेश करने का बेहतर मौका है, जो दोबारा से नौकरी में आना चाहती हैं। जून में नए ईपीएफ ग्राहकों की बात करें तो, महिला अनुपात "35 वर्ष से अधिक" आयु वर्ग में सबसे अधिक, 31.29 प्रतिशत है, जबकि यह 18-25 समूह में सबसे कम, 23.47 प्रतिशत है। नेट पेरोल में महिलाओं की हिस्सेदारी की बात की जाए, जिसकी गणना जो नए लोग जुड़े हैं, जो छोड़ कर गए हैं और पुराने ग्राहकों की वापसी को ध्यान में रखते हुए की जाती है, मई में 19.94 प्रतिशत के मुकाबले जून में 22.08 प्रतिशत थी।
यह आंकड़ा ऐसे वक्त पर सामने आया है, जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में श्रम मंत्रियों के 44 वें राष्ट्रीय सम्मेलन में महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी बढ़ाने के साधन के रूप में घर से काम करने और लचीले काम के घंटों ( फ्लेक्सिबल टाइमिंग) जैसी दूरस्थ कार्यस्थल सुविधाओं की उपयोगिता की बात की है।
मुमकिन है कि आने वाले समय में प्रधानमंत्री की इन बातों पर कंपनियां गौर करेंगी, जिससे कि महिलाओं को वर्क फोर्स में शामिल करने में आसानी होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस टिप्पणी का महत्व इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत दुनिया में सबसे कम महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में से एक है।
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो, यह बताते हैं कि जनवरी-मार्च 2022 तिमाही के लिए उपलब्ध नवीनतम तिमाही आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2011 में प्रतिशत की बात करें तो यह प्रतिशत ईपीएफ पेरोल पर महिला ग्राहकों की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि के बावजूद, महिलाओं के लिए अनुमानित एलएफपीआर 25.1 के मुकाबले 20.4 प्रतिशत रहा।
कई दशकों से महिला श्रम बल की भागीदारी लगभग 20 प्रतिशत रही है। इससे पहले, यह वित्त वर्ष 2020 में 22.8 प्रतिशत था, वित्त वर्ष 2019 में 18.6 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2018 में 17.5 प्रतिशत की धीमी वृद्धि रही रही है। 2021 अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन डेटाबेस के अनुसार, यह बांग्लादेश (35 प्रतिशत) और श्रीलंका (31 प्रतिशत) में महिला श्रम बल की भागीदारी से काफी कम है।