भारत के संविधान में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission Of India) की भूमिका सबसे अहम है। 18वीं लोकसभा का चुनाव साल 2024 में अप्रैल से मई के बीच होने की उम्मीद की जा रही है, वहीं हाल ही में मेघालय, नागालैंड, कर्नाटक और त्रिपुरा में विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं। आगामी महीने में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना में साल 2023 के अंत तक विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद की जा रही है। हर साल महिलाएं चुनाव में सबसे बड़ी भूमिका निभाती हैं। महिला वोटरों को लुभाने के लिए कई तरह की योजनाएं और अभियान चलाए जाते हैं। सबसे जरूरी है जागरूकता। मतदान पर सभी भारतीयों का हक है। इसलिए जरूरी है मतदान दिवस का उत्सव मनाते हुए हर महिला को घर से बाहर आकर समाज, परिवार और खुद के लिए वोटिंग के अधिकार का उपयोग करें, हालांकि भारतीय निर्वाचन आयोग से जुड़ी हुईं कई अहम जानकारियां हैं, जिनके बारे में महिलाओं को अवगत होना जरूरी है। साथ ही मतदान को लेकर महिलाओं का इतिहास क्या रहा है, आइए जानते हैं विस्तार से।
महिलाएं हमेशा रही है मतदान में आगे
आगामी लोकसभा चुनाव में महिला वोटर सरकार बनाने में एक खास भूमिका निभायेंगी। पिछली बार साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान महिलाओं ने मतदान करने के मामले में पुरुषों को 0.17 प्रतिशत से पीछे छोड़ दिया था। भारत 90 करोड़ से अधिक मतदाताओं वाला देश है। यह भी जान लें कि देश के पहले आम चुनाव में सामाजिक परेशानियों के कारण 28 लाख के करीब महिलाओं ने मतदान नहीं किया था, जो कि हैरान करने वाला आंकड़ा रहा है। हैरान करने वाली बात यह भी थी कि महिलाएं तब पति का नाम नहीं लेती थी और न ही मतदान की अहमियत और उपयोगिता का उन्हें ज्ञान था। इसलिए जब निर्वाचन आयोग ने घर-घर जाकर महिलाओं की जानकारी हासिल करने की कोशिश की, तो उन्हें सही से जानकारी नहीं मिली।
महिला मतदाताओं की गिनती से बढ़ने लगे महिला उम्मीदवार
एक महिला दूसरी महिला पर पुरुषों के मुकाबले सबसे अधिक भरोसा करती हैं। यही वजह है कि महिला उम्मीदवारों की संख्या साल 2019 तक लगभग 78 तक पहुंच गई है। देखा जाए, तो पहले महिलाओं को मतदान देने का अधिकार भी नहीं मिला था। सबसे पहले पूरे विश्व में 20 जुलाई 1906 को फिनलैंड में महिलाओं को मतदान देने का अधिकार मिला। फिनलैंड की महिलाएं यूरोप में मतदान देने के बाद पहली महिला मतदाताएं बनीं।
आजादी के बाद महिलाओं ने समझी मतदान की अहमियत
भारत में मिला महिलाओं को मतदान देने का अधिकार आजादी के साथ महिलाओं को मतदान देने का अधिकार साल 1947 में मिला। इसके लिए सरोजिनी नायडू, हीराबाई दादा, राजकुमारी अमृत कौर के साथ कई अन्य महिलाओं ने लगातार मतदान पर महिलाओं का भी हक जैसे कई अभियान चलाएं और याचिका भी दायर की। इसके बाद साल 1935 में महिलाओं के पास मतदान के अधिकार आएं। इसके तहत पुरुष मतदाता की पत्नी या फिर विधवा और शिक्षित महिलाओं को ही मतदान के अधिकार दिए गए, लेकिन महिलाओं का ध्यान मतदान से अधिक देश की आजादी पर था। आजादी के बाद महिलाओं ने मतदान को अहमियत दी, खासकर तब महिलाओं की गिनती अधिक बड़ी, जब यह कहा गया कि मतदान में जाति और शिक्षा जरूरी नहीं है। 18 साल की उम्र के बाद हर किसी को मतदान देने का अधिकार है। हैरानी है कि रोम के वेटिकन सिटी में महिलाओं को वर्तमान में भी मतदान करने का अधिकार नहीं है।
महिलाओं को जागरूक करने के लिए अभियान
जिस तरह हर बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय मतदाताओं को जागरूक करने के लिए टीवी और अखबारों में विज्ञापन निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जाते हैं, ठीक इसी तरह 1957 के दौरान भी महिलाओं में मतदान जागरूकता का अभियान शुरू किया। गांव और शहर मतदान क्यों है जरूरी की जानकारी लाउड स्पीकर पर बाजारों में सुनाई गयी । घर-घर पर्चे बांटे गए। इसके साथ ही महिलाओं से यह कहा गया कि उन्हें हर जगह खुद का नाम बताना चाहिए। वक्त लगा, लेकिन धीरे-धीरे सरकार के गठन में महिलाओं की संख्या हर चुनाव के दौरान लगातार बढ़ती गई और महिलाओं में जागरूकता भी पैदा होती गयी। भारत शासन अधिनियम 1919 के वक्त भारत में पहली बार महिलाओं को मतदान यानी कि वोट देने का अधिकार दिया गया। ज्ञात हो कि वक्त के साथ चुनाव प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका में लगातार इजाफा ही देखा गयया है, तभी तो, कर्नाटक की 8 वीं राज्यपाल वीएस रमादेवी 26 नवंबर 1990 से लेकर 11 दिसंबर 1990 तक भारत की 9वीं मुख्य चुनाव आयुक्त बनने वाली पहली महिला रही हैं।
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