कई अध्ययन और योजनाएं हैं, जो महिला उद्यमियों के लिए ऋण की पहुंच में सुधार लाने पर केंद्रित हैं। यह योजनाएं महिलाओं की सुविधाओं के लिए एक सही ढांचे को तैयार कर रही हैं। सरकार, बैंकों और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट के लिए एक एकजुट होकर आगे आने की आवश्यकता है, जो भारत में फाइनेंस की पहुंच से जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए डेटा-आधारित दृष्टिकोण प्रदान करता है, विशेष रूप से महिलाओं के लिए। इसके अलावा, पिछले मौजूदा अध्ययनों से पता चला है कि स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के अधिकारियों द्वारा एकत्र किए गए डेटा के साथ देश में फाइनेंस से जुड़ी पहुंच में सुधार लाया जा सकता है।
महिला उद्यमियों के 2022 मास्टरकार्ड इंडेक्स ने दिखाया कि भारत महिला उद्यमिता के लिए दुनिया में सबसे कम रैंक वाले देशों में से एक है। विशेष रूप से कोविड के बाद की अवधि में महिला उद्यमिता के संबंध में डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना पहले से कहीं अधिक दबाव वाला है। विश्व बैंक और कई अन्य संगठनों की हालिया रिपोर्टों के अनुसार महामारी के दौरान महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसाय गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। व्यक्तिगत चुनौतियों जैसे पर्सनल चैलेंज, जिनमें काफी हद तक घर की देखभाल की जिम्मेदारियां शामिल हैं, जो महिलाओं को अपना व्यवसाय चलाने में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आए। महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों के वित्तीय प्रदर्शन पर व्यापक डेटा की कमी भी उन्हें जोखिम में डाल सकता है। हाल में किए गए एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि 60.5% मालिकों को क्रेडिट एक्सेस मुश्किल लगता है। इसके अलावा 47.7% मालिकों ने कहा कि एक महिला के रूप में ऋण प्राप्त करना कठिन था।
भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान को सीमित इंडिकेटर्स के साथ खराब तरीके से मापा जाता है, जो निर्णय लेने की सही जानकारी नहीं दे सकते हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम प्रतिनिधि डेटासेट मौजूद हैं, जिन्होंने राज्यों में महिलाओं के स्वामित्व वाले विभिन्न प्रकार के उद्यमों के प्रदर्शन को ट्रैक किया है। फाइनेंस इंस्टीट्यूट्स को एक सहायक संरचना की आवश्यकता होती है,जो उन्हें महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के क्रेडिट जोखिम प्रोफाइल मूल्यांकन करने की अनुमति देता है।
ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट द्वारा फीमेल एंटरप्रेन्योरशिप इंडेक्स जैसे मौजूदा स्कोरकार्ड के बावजूद, महिलाओं के लिए व्यावसायिक क्षमता बहुत ही सिमित है। महिलाओं के लिए भारतीय इकोसिस्टम को नापने के लिए कोई मौजूदा विधि नहीं है।
इसके अलावा, मौजूदा योजनाओं में कस्टमाइज व्यू नहीं है, जो ग्रामीण महिला उद्यमियों की जरूरतों को दर्शाता है। 2019 में अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि बैंक सेविंग्स रखने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है, ग्रामीण भारत में 80.7% और शहरी भारत में 81.3% महिलाओं के पास बैंकों में जमा राशि है। हालांकि, इसके परिणामस्वरूप क्रेडिट तक पहुंच नहीं हो पाई है।
आज, महिलाओं को वैकल्पिक माध्यमों से ऋण तक पहुंच प्रदान करने और ग्रामीण क्षेत्रों में जोखिम कवरेज की धारणा को बदलने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, बैंकों, फाइनेंशियल सेक्टर्स और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के अधिकारियों के बीच रणनीतिक सहयोग होना जरूरी है, जो पूरे देश में महिला उद्यमियों को ऋण वितरित करने में मदद कर सकते हैं।