छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में बसे एक छोटे से गांव सिरसाखुर्द की महिलाएं इन दिनों गोबर से मूर्तियां तैयार कर रही हैं। इन मूर्तियों की खास बात यह है कि ये मूर्तियां तैयार करने के साथ-साथ बाजारों में भी उपलब्ध करा रही हैं। सिरसाखुर्द गांव की ये महिलाएं जय बजरंग स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। महिला समूह द्वारा गौतम बुद्ध, छत्तीसगढ़ का लोगो, राधा कृष्ण, गणपति और आदिवासी कलाकृति को गोबर के माध्यम से आकार दे रही हैं। गौरतलब है कि इस काम में 12 महिलाओं का समूह जुड़ा हुआ है, दिलचस्प बात यह है कि लोग अब गांव को मूर्तिकला गांव के रूप में जानने लगे हैं। इस जगह पर महिलाएं त्यौहार और पर्व में भी देवी देवताओं की मूर्तियां, दीये और शुभ लाभ जैसी कई सामग्रियां बना रही हैं। ये महिलाएं गोबर के कंडे बनाती हैं, फिर उन्हें सूखा कर कूटती हैं, इसके बाद इसे चक्की में पीस लिया जाता है। फिर इसे मुल्तानी मिट्टी का मिश्रण डाल कर पानी से गूंदा जाता है और फिर सांचे में डाल कर इसकी मूर्तियां तैयार की जाती हैं। इन महिलाओं ने नागपुर में मूर्ति बनाने का प्रशिक्षण लिया है। यह उनकी जीविका का महत्वपूर्ण साधन है। इन महिलाओं ने गोबर से बनी इको फ्रेंडली मूर्तियों को इस तरह से तैयार किया है कि यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकें।
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