चंद्रयान-3 ने चांद पर भारत का तिरंगा लहरा दिया है। चंद्रयान-3 के मिशन के पूरा होने के बाद इसरो की उस टीम की चर्चा हो रही है, जिसने चंद्रयान-3 के जरिए भारत को चांद पर पहुंचने वालों देशों की लिस्ट में चौथे स्थान पर स्थापित कर दिया है। इसरो ( भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों ने चंद्रयान-3 के जरिए भारत को मून(चांद) पर पहुंचा दिया है। 23 अगस्त शाम को 5 बजकर 45 मिनट पर चंद्रयान-3 ने चांद पर सफलता पूर्वक लैडिंग की और इसके बाद से ही उस टीम की चर्चा शुरू हो गई,जिसने चंद्रयान- 2 के विफल होने के करीब चार साल बाद अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया है। आइए जानते हैं विस्तार से इसरो की महिला वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के बारे में, जो कि अपनी काबिलियत से चांद तक का सफर कर पाई हैं।
डाॅ एम वनिता, डिप्टी प्रोजेक्टर डायरेक्टर
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ के नेतृत्व में 50 से अधिक महिलाओं ने इस मिशन के लिए कई सालों से काम कर रही हैं। मुख्य तौर पर कुछ चुनिंदा महिलाओं के नाम हैं, जो कि चंद्रयान-3 के मिशन के पूरा होने के बाद चांद पर अपने नाम का बिगुल बजा रही हैं। इसमें सबसे पहले नाम आता है, यू आर राव सैटेलाइट सेंटर में चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी प्रोजेक्टर डायरेक्टर डॉ एम वनिता का, जो कि चंद्रयान- 2 मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर रह चुकी हैं। दिलचस्प है कि डॉ एम वनिता भारत के मून मिशन का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं। वह इसरो में इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजीनियर हैं। इसके साथ उन्हें साल 2006 में सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक के पुरस्कार से नवाजा गया। इससे पहले वनिता कार्टोसैट-1, ओशनसेट-2 और मेघा ट्रॉपिक्स उपग्रहों के मिशन से जुड़े सिस्टम की सह निदेशक रह चुकी हैं। उन्हें चंद्रयान का डेटा क्वीन माना जाता है और वह इसे संभालने में माहिर हैं।
कल्पना के, चंद्रयान -3, डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर
कल्पना चावला ने जिस तरह अंतरिक्ष यात्री बनकर भारत का नाम रोशन किया था, ठीक इसी तरह कल्पना के ने भी अपने नाम को सार्थक किया है। वह बीते चार साल से दिन-रात इसी मिशन पर जुट गई हैं। उन्होंने यू आर राव सैटेलाइट सेंटर में डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर खास भूमिका निभाई है। बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद बतौर वैज्ञानिक साल 2000 में वैज्ञानिक के तौर पर वह इसरो में शामिल हुई थीं। वह चंद्रयान-2 परियोजना में शामिल रही हैं, जिसे 2019 में श्रीहरिकोटा रॉकेट सेंटर से लांच किया था। चंद्रयान-3 परियोजना की वह एसोसिएट डायरेक्टर रही हैं। चंद्रयान-3 के मिशन के पूरा होने पर उन्होंने कहा है कि हम बीते कई सालों से इस पर काम कर रहे हैं। हमने हमारा लक्ष्य हासिल कर लिया है।
ऋतु करिधाल श्रीवास्तव, मिशन डायरेक्टर
चंद्रयान-3 मिशन की डायरेक्टर रॉकेट वुमन ऋतु करिधाल रही हैं। इनकी चर्चा चंद्रयान-2 के बाद बीते चार साल से हो रही है। चंद्रयान-3 के लैंडिंग की जिम्मेदारी ऋतु करिधाल को सौंपी गई थी। लखनऊ की ऋतु करिधाल ने बेंगलुरु भारतीय विज्ञान संस्थान में सबसे पहले प्रवेश लिया। फिर उन्होंने इसरो में नौकरी की शुरुआत की। डाॅ एपीजे अब्दुल कलाम ने ऋतु करिधाल को युवा वैज्ञानिक का पुरस्कार भी दे चुके हैं। इसके साथ महिला उपलब्धि के भी कई पुरस्कार वह बटोर चुकी हैं।
अनुराधा टीके, भारतीय वैज्ञानिक
अनुराधा टीके, सेवानिवृत्त यानी कि रिटायर भारतीय वैज्ञानिक हैं, जो कि इसरो संचार उपग्रहों की परियोजना निदेशक रह चुकी हैं। अनुराधा साल 1982 में अंतरिक्ष एजेंसी में शामिल होने वाली पहली महिला निदेशक रही हैं। उन्होंने इस रुढ़िवादी सोच को तोड़ा है कि महिलाएं न केवल गोल रोटी बना सकती हैं, बल्कि अंतरिक्ष में पहुंचकर सितारों से बात भी कर सकती हैं। अनुराधा को इसरो द्वारा कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
वीआर ललितांबिका और मौमिता दत्ता, भारतीय वैज्ञानिक
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के सबसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों में से एक वीआर ललितांबिका हैं, उन्होंने अपने जीवन के 30 साल से अधिक समय को इसरो को समर्पित किया। वह 100 से अधिक अंतरिक्ष अभियानों का हिस्सा भी रही हैं। बचपन से ही उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रही है और इस रुचि को उन्होंने अपने करियर से जोड़ा और ख्याति प्राप्त की। इसके साथ मौमिता दत्ता भी इसरो से जुड़ी हुई हैं। वह एक वैज्ञानिक होने के साथ इंजीनियर भी हैं। वह मार्स ऑर्बिटर मिशन 2014 का हिस्सा रही हैं।
नंदिनी हरिनाथ रॉकेट वैज्ञानिक
रॉकेट को अंतरिक्ष तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक नंदिनी हरिनाथ की रही है। कई सालों तक इसरो की कई परियोजनाओं में उनका योगदान रहा है। इसके साथ प्रोजेक्ट मैनेजर और मिशन डिजाइनर होने के साथ, वह ऑर्बिट मिशन पर डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर थीं।
वाकई, इसरो की 54 महिलाओं ने साथ में मिलकर चंद्रयान -3 के जरिए भारत को चांद पर पहुंचा कर विश्व में इस संदेश को पहुंचाया है कि भारत की महिलाएं मां बनकर अपने बच्चे को चंदा मामा की कहानी भी सुना सकती हैं , ठीक इसी तरह वे खुद अपनी प्रतिभा और कौशल के जरिए चांद पर उड़ान भी भर सकती हैं।
*Image credit : @ISRO, twitter, instagram