केरल में दीदी की रसोई नाम से एक रसोई की शुरुआत हुई थी, वर्ष 2018 में। अब ठीक इसी तर्ज पर वर्ल्ड बैंक द्वारा समर्थित बिहार ट्रांसफॉर्मेटिव डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में की गई थी और इसे बिहार के जीविका द्वारा फिर से आगे बढ़ाया जा रहा है और इसका उद्देश्य राज्य के सभी जिला और ब्लॉक अस्पतालों में भोजन केंद्रों को स्थापित और संचालित करना है। दरअसल, जीविका ने भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक की पटना शाखा के लिए उच्च कोटि के भोजन स्थापित किये गए हैं और अब किओस्क जैसे बाजार आधारित मॉडलों से प्रेरणा लेकर अधिक भीड़ वाले इलाकों में भी उद्यम को संचालित कर रही हैं। दिलचस्प बात है कि अब वे फूड डिलीवरी ऐप के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाश रहे हैं। गौरतलब है कि बिहार के बाग्मंझुआ गांव की लीला देवी अपने घर का सारा काम निबटा कर अस्पताल के किचन ‘दीदी की रसोई’ में काम करती हैं। खास बात यह है कि रसोई में सुबह साढ़े छह बजे से शुरू हो जाता है। लीला सुबह से ही मरीजों और कर्मचारियों के लिए नाश्ता और दोपहर का खाना बनाने में जुट जाती हैं। इस कैंटीन में हर रोज 250 से अधिक लोग खाना खाते हैं और इसका पूरा काम 26 महिलाएं संभालती हैं, जो दो पारी में यानी शिफ्ट के अनुसार काम करती हैं। यहां की महिलाओं का मानना है कि दीदी की रसोई ने उन्हें आत्म सम्मान की भावना दी है। साथ ही आत्म-निर्भर बनाया है। वर्तमान में, बिहार के सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, स्कूलों, बैंकों एवं अन्य संस्थानों में ऐसे 83 से ज्यादा केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। करीब 1200 से अधिक महिला उद्यमी और 150 पूर्णकालिक कर्मचारी इन केंद्रों से जुड़े हुए हैं और इन्हें होटल प्रबंधन और खानपान में अनुभवी करीब 20 सलाहकारों का भी सहयोग मिल रहा है। उल्लेखनीय है कि बिहार के सभी 38 जिलों में ऐसे केंद्रों की स्थापना की गयी है। साथ ही यह दिलचस्प बात है कि इस कैंटीन से महिलाओं को 15 प्रतिशत शुद्ध लाभ के साथ महीने में औसतन 2.5 लाख रुपए की आमदनी होती है।
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