ग्रामीण इलाकों में पशुओं की सेवा का काम डॉक्टर दीदियां संभाल रही हैं। देखा जाए, तो गांव में पशुओं को लेकर लोगों के बीच जागरूकता पहले से ही व्याप्त है। इसकी वजह यह है कि पशुओं के जरिए दूध व्यवसाय, खेती उनके रोजगार का बड़ा जरिया है। महिलाएं पशुओं की सेवा के लिए घर की चारदीवारी से बाहर आ रही हैं। झारखंड की आदिवासी महिलाएं इसका बड़ा उदाहरण हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
आदिवासी महिलाएं हैं डॉक्टर दीदी
झारखंड की आदिवासी महिलाएं डॉक्टर दीदी बनने की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। इस वजह से गांव के लोग उन्हें दीदी कहकर बुलाते हैं। इन महिलाओं का काम है कि जानकारी मिलने के साथ पशुओं की देखभाल में जुट जाना। ये दीदियां एक समूह में आकर पशुओं के स्वास्थ्य, दूध उत्पादन, पशु से जुड़े हुए व्यवसायों के जरिए किसानों की आय को बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रही हैं।
घरों में पशुओं की देखभाल का कार्य
उल्लेखनीय है कि पशुओं की देखभाल के जरिए उनकी आमदनी भी हो जाती है, जो कि आर्थिक तौर पर उन्हें बल प्रदान कर रहा है, जो कि उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ा रहा है, क्योंकि डॉक्टर दीदी बनने वाली आदिवासी महिलाएं पहले अपने घरों में पशुओं की देखभाल का कार्य करती थीं, लेकिन अब घर से बाहर आकर अपनी जिम्मेदारी को कार्य का रूप देने पर उन्हें झारखंड में पशुपालन क्षेत्र के विकास से भी सहायता मिल रही है।
पशुओं से जुड़े व्यवसाय में ग्रामीण इलाकों में तेजी
ज्ञात हो कि बीते कुछ सालों में पशुओं से जुड़े व्यवसाय में ग्रामीण इलाकों में तेजी आयी है। इसके फलस्वरूप पशुओं की देखभाल को पहले से अधिक तरजीह दी जा रही है। देश-विदेश में डेयरी उत्पादन की मांग बढ़ी है। दूध, दही, छाछ, दूध की मिठाई और पनीर के साथ दूध जरूरी बन गया है, जिसके लिए पशुओं पर निर्भर रहना पड़ता है।
महिलाओं का योगदान 70 प्रतिशत
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट अनुसार पशुधन उत्पादन का काम झारखंड में किसानों ने संभाल कर रखा है। खासतौर पर इसमें महिलाओं का योगदान 70 प्रतिशत तक पहुंची है। अक्सर देखा गया है कि कई गांवों में पशुओं के स्वास्थ्य की हालत गंभीर हो जाती है और उन्हें ठीक समय पर इलाज नहीं मिलता है। ऐसे में पशु सखी गांव की जरूरत का बड़ा हिस्सा बन चुकी हैं, जो कि गांवों में मौजूद रहती हैं। अधिकतर यही ध्यान दिया जा रहा है कि पशु सखी के कार्य से जुड़ी महिलाओं की नियुक्ति उन्हीं के गांवों में की जाती है, ताकि वह जरूरत के वक्त तुरंत मौजूद रहें।
पशु सखी बनने पर इतनी कमाई
पशु सखी से जुड़ी महिलाओं का काम पूरी तरह से पशुओं की देखभाल और उनके स्वास्थ्य से जुड़ी हर जानकारी से संबंधित है। वह कई बार पशुओं में होने वाली गंभीर बीमारी का इलाज भी करती हैं और सही समय पर उन्हें टीका भी लगाती हैं। इन महिलाओं की जिम्मेदारी गांव में मौजूद हर पशु की देखभाल करना है। गाय, भैंस के अलावा बकरी, मुर्गी और सुअर जैसे पशुओं के सेहत का भी ध्यान देना है। पशु सखी गांवों में जाकर दूसरी महिलाओं को भी पशु सखी बनने के लिए प्रेरित करते हुए आत्मनिर्भर बनने की सलाह देती हैं। पशु सखी से जुड़ी महिलाओं की आमदनी महीने में 20 से 25 हजार के करीब होती है। अपने गांव में रहकर वह एक बड़ी कमाई कर रही हैं, वहीं दूसरी महिलाओं को पशु सखी की ट्रेनिंग देने पर डॅाक्टर दीदीयों को 400 से 500 रुपए दिए जाते हैं।
उत्तर प्रदेश में मोबाइल पशु चिकित्सा क्लीनिक
झारखंड के तरह उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में भी पशु सखी के मॉडल पर काफी समय से काम चल रहा है। कई महिलाएं पशु सखी समूह का हिस्सा बनी हैं।बिहार में भी पशुओं की सुविधा और देखभाल के लिए मोबाइल पशु चिकित्सा क्लीनिक की शुरुआत काफी समय पहले की गई है। इस वाहन में पशु रोगों के निदान, उपचार के साथ आपातकाल में सामान्य सर्जरी की भी सुविधा दी गई है। यह भी रिपोर्ट मिली है कि गांवों में इस पशु उपचार गाड़ी को घुमाया जाएगा, ताकि लोग इससे अवगत होकर सही समय पर अपने पशुओं का इलाज कर सकें।
हर गांव में मौजूद रहेगी पशु देखभाल गाड़ी
उत्तर प्रदेश में भी केंद्रीय मत्स्य पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशु उपचार पशुपालकों के जरिए एक नई योजना की शुरुआत इसी साल की है। इसके लिए पशुपालकों को अपने पशुओं के इलाज के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि खुद चिकित्सक पशुपालकों के घर पहुंचकर पशुओं का इलाज करेंगे। उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद से इस योजना की शुरुआत की गई है। इसके लिए जिले में 5 मोबाइल वेटरनरी गाड़ी दी गई है। हर गाड़ी में डॉक्टर के साथ दवाई और अन्य जरूरी सुविधा जरूर मौजूद होगी। इस पशु गाड़ी से संपर्क करने के लिए 1962 सार्वजनिक नंबर भी उपलब्ध है। फोन पर पशुओं की बीमारी के बारे में जानकारी देकर आप गाड़ी के साथ डॉक्टर को अपने घर पर इलाज के लिए बुला सकती हैं। इसके लिए 5 से 10 रुपए का पंजीकरण शुल्क रखा गया है, साथ ही दवाई मुफ्त में दी जाएगी।
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