यह एक चौंकाने वाली बात जो सामने आई है कि महिलाओं को कोविड के स्वास्थ्य प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, भले ही उन्हें कोविड हुआ हो या नहीं, यह एक सर्वे में पाया गया है। महिलाओं के स्वास्थ्य संगठन, जीन हैल्स के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए राष्ट्रीय सर्वे में पाया गया कि कोविड शुरू होने के बाद से महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है।
14,000 सर्वे में से लगभग आधे ने कहा कि वजन बढ़ने, फिटनेस में कमी और मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द, सबसे आम समस्याओं में से हैं, जिससे उनके शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है।
पांच में से एक शख्स ने कहा है कि उनके मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने की वजह से उनके रोजमर्रा के कार्यों और गतिविधियों में बुरी तरह से असर पड़ा है। वहीं, 17 प्रतिशत ने बताया कि पहले से मौजूदा मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पहले से और भी खराब हो गई है। मोनाश यूनिवर्सिटी ग्लोबल और महिला स्वास्थ्य निदेशक जेन फिशर ने यह भी बताया कि उन्हें लगा था कोविड के कम हो जाने के बाद ये आंकड़ें बदल जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इस सर्वे में कई स्वास्थ्य असमानताओं पर भी प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से विकलांग महिलाओं के लिए, एलजीबीटीआईक्यू और प्रथम राष्ट्र समुदायों पर। सभी महिलाओं में से लगभग 45 प्रतिशत ने कहा कि वे डॉक्टर के पास या हेल्थ सेक्टर तक जाने का जोखिम नहीं उठा सकती हैं। यही समस्या विकलांगों में 62 प्रतिशत बताई गई है। कुछ महिलाओं ने यह भी कहा है कि उन्हें अपनी भाषा में स्वास्थ्य संबंधी जानकारी नहीं मिल रही है। एथनोलिंक ट्रांसलेशन सेवाओं के संस्थापक कोस्टा वासिली ने कहा कि इस सर्वे के अनुसार ही उन्होंने सरकार और सामुदायिक संगठनों से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सूचनाओं को अधिक भाषाओं में फैलाने के लिए निवेश करने के लिए कहा था।
इस बीच, 18 से 25 वर्ष की युवा महिलाओं ने अपने मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट की रिपोर्ट की है और इस पर खुलकर बात की है। इस आयु वर्ग की लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि अन्य दिनों की तुलना में कोविड की शुरुआत के बाद से उनके मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है। नाश यूनिवर्सिटी की रिसर्चर प्रेरणा वर्मा ने कहा कि क्योंकि हमारा देश कोविड को सामान्य बीमारी के तौर पर अपनाना शुरू कर रहा है, ऐसे में युवा महिलाओं को कोविड का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने आगे कहा, "कोविड की शुरुआत में हमारे शोध से पता चला कि युवा लोगों में मानसिक स्वास्थ्य काफी खराब था और आशा है कि इसमें सुधार आए।”