यह एक सकारात्मक बदलाव है कि भारत में पहले की तुलना में ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर में हुई वृद्धि हुई है। जहां यह वर्ष 2018-19 में 19.7 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2020-21 में यह बढ़ कर 27.7 प्रतिशत हो चुका है। यह बात वर्ष 2023 के आर्थिक सर्वेक्षण से सामने आई है। गौरतलब है कि कोविड के बाद या दौरान स्वयं सहायता समूहों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है और कई ग्रामीण महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित किया है। इसकी वजह से कई महिलाएं सामने आई हैं और उन्होंने अपनी पहचान बनाने की कोशिश की है। रिपोर्ट के अनुसार 1.2 करोड़ स्वयं सेवी संस्थानें हैं, जिसमें कुल महिला स्वयं सेवी संस्थानों का 88 प्रतिशत शामिल हैं, जो सेवा प्रदान करता है। सर्वेक्षण बताता है कि 75 प्रतिशत ग्रामीण महिला श्रमिक कृषि के क्षेत्र में रोजगार हासिल किया है। इससे स्पष्ट है कि कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के और अधिक कौशल को बढ़ाने और रोजगार को सृजित करने की आवश्यकता से है, जैसे फूड प्रोसेसिंग करने वाले क्षेत्र।
ऐसे में स्वयं सेवी संस्थान ने महिलाओं को आगे बढ़ने में काफी मदद की है। सर्वेक्षण के अनुसार समग्र ग्रामीण विकास की सुविधा के लिए स्वयं सहायता समूह ने काफी अच्छी भूमिका निभाई है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि स्वयं सेवी संस्थानों ने ग्रामीण महिलाओं के पूर्ण रूप से विकास की सुविधा को ध्यान में रखा है और लगातार इसमें परिवर्तन लाने की कोशिश कर रहे हैं और लंबे समय तक इसका विकास हो, इसके लिए पूर्ण रूप से कदम उठाये जा रहे हैं। साथ ही लघु उद्योग की शुरुआत करने के लिए भी कई महिलाओं को प्रेरित करने की कोशिश है और यह भी दर्शाता है कि कैसे स्वयं सेवी संस्थानों ने महामारी के दौरान लोगों तक पहुंचने के प्रयासों का समर्थन किया, और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उन्होंने मास्क, सैनिटाइजर और सुरक्षात्मक गियर को लेकर लोगों में जागरूकता फैलायी और कम्युनिटी किचन चला कर, महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए और आय के स्रोत तय करने की कोशिश की।
बता दें कि स्वयं सेवी संस्थानों में मास्क का उत्पादन उल्लेखनीय रूप से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सेवी संस्थानों द्वारा 16.9 करोड़ मास्क का उत्पादन किया गया है।