सीईडीए पेपर की लेखिका ध्रुविका धमीजा ने इस बारे में अपने पेपर में अवलोकन किया है कि पूरे भारत में 1.6 लाख महिला श्रमिकों में से, 0.68 लाख (43 प्रतिशत) अकेले तमिलनाडु के कारखानों में काम कर रही थीं। वास्तव में, उद्योगों में काम करने वाली सभी महिलाओं में से लगभग तीन-चौथाई (72 प्रतिशत) चार दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में कार्यरत थीं। यहां इस बारे में भी विस्तार से बताया गया है कि लिंग अंतर राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न होता है। गौरतलब है की मणिपुर एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वालों के बीच लैंगिक संतुलन है। इस राज्य में वर्ष 2019-20 में महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी 50.8 प्रतिशत थी। मणिपुर के बाद केरल यह 45.5 प्रतिशत रही, तो कर्नाटक में यह 41.8 प्रतिशत है और तमिलनाडु में यह प्रतिशत 40.4 है।
ध्रुविका धमीजा के अनुसार, छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक लिंग-विषम औद्योगिक कार्यबल था, जिसमें महिलाएं राज्य की विनिर्माण इकाइयों में काम करने वालों की सिर्फ 2.9 प्रतिशत थीं। इसके बाद दिल्ली का स्थान रहा, जहां महिलाओं की संख्या 4.7 प्रतिशत थी, और जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल, जहां महिलाएं कुल निर्माण कार्यबल का सिर्फ 5.5 प्रतिशत थीं। विनिर्माण क्षेत्र में महिला श्रमिकों का प्रतिशत भारत के सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्यों में अलग-अलग है, जहां महाराष्ट्र में यह 12 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 5.7 प्रतिशत और गुजरात में यह 6.8 प्रतिशत है। तमिलनाडु में 40.4 प्रतिशत है और आंध्र प्रदेश में यह 30.2 प्रतिशत है। साथ ही 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में औद्योगिक कर्मचारियों के बीच महिलाओं की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से कम थी। वहीं प्रमुख उद्योगों की बात करें, तो जिनमें 50 हजार कर्मचारी या उससे अधिक कार्यरत थे। महिलाओं की संख्या केवल तंबाकू इंडस्ट्री में पुरुषों से अधिक थी और उन्हें कपड़ों के उद्योग में कम, लेकिन बाकी में काफी अधिक संख्या में थे। दिलचस्प बात यह है कि 22 प्रमुख उद्योग समूहों में से पांच में, जैसे कि खाद्य उत्पाद, रसायन और कंप्यूटर, महिलाओं के रोजगार में 2009-2019 के दशक में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गयी।