जहां एक तरफ लोग चांद पर पहुंच रहे हैं, वहां कुछ ऐसी जगह भी है, जहां लोगों को सामान्य शिक्षा भी प्राप्त नहीं हो रही। बिहार के चंपारण जिले के एक स्कूल की खबर सामने आई है, जिसमें 400 लड़कियों की पढ़ाई चलती है, लेकिन सिर्फ सार्वजनिक अनुदान से । इस स्कूल के पंखे, बेंच और हर एक चीज़ सार्वजनिक फंड से आई है, इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कई सालों तक तो सरकार को पता ही नहीं था कि यहां कोई स्कूल भी है।
कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय पहली बार 1986 में भितिहारवा गांव, गौनाहा ब्लॉक में खोला गया था। चम्पारण भूमि अधिकार आंदोलनों में 40 वर्षों से योगदान देने वाले एक कार्यकर्ता पंकज ने इस बारे में बताया है कि स्कूल जल्द ही बंद हो गया और यहां कुछ भी नहीं हो रहा था, क्योंकि लोग अपनी बेटियों को शिक्षित करने के लिए तैयार नहीं थे। स्कूल को फिर से चलाने के लिए कुछ कार्यकर्ता का एक समूह एक साथ आया। आज लगभग 30 लोग बिना वेतन लिए इसमें पढ़ाते हैं।
यही नहीं, प्रिंसिपल दीपेंद्र बाजपेयी ने दावा किया है कि फंड के लिए स्कूल की सभी अपीलों को नजरअंदाज किया है। उन्होंने कहा है कि इस स्कूल के फर्नीचर का हर एक टुकड़ा दान के पैसे से खरीदा गया है।
यह कैसी विडंबना है कि जिस स्कूल की हम बात कर रहे हैं उस स्कूल का नाम भारत की स्वतंत्रता कार्यकर्ता कस्तूरबा गांधी के नाम पर रखा गया था, जो महात्मा गांधी की चम्पारण यात्रा के दौरान एक आश्रम में रहती थीं। कस्तूरबा आश्रम परिसर में एक झोपड़ी में लड़कियों के लिए कक्षाएं लेती थीं और शिक्षा के महत्व पर जोर देती थीं। जिस स्कूल की नींव ही शिक्षा थी, वो आज इस हालत में है कि इसपर किसी की नजर ही नहीं है।
पंकज का कहना है कि कोई भी स्कूल नहीं चलाना चाहता था, हालांकि, गांव के सात परिवारों ने कस्तूरबा को श्रद्धांजलि देने के लिए तीन एकड़ जमीन दान में दी है। हमें आशा है कि जल्द ही यहां की बच्चियों को सही शिक्षा और सुविधाएं मिले, जो उनका हक है।
Photo Source: Down To Earth/ Deependra Bajpayee