इन दिनों, डिजिटल दुनिया की बात की जाए, तो हर तरफ क्रांति की बात हो रही है, माना जा रहा है कि भारत का युवा वर्ग कई घंटे डिजिटल दुनिया पर बीता रहा है, लेकिन इसके बावजूद जब बात महिलाओं की आती है, तो आश्चर्यजनक बात सामने आती है कि भारत और दुनिया में डिजिटल को लेकर महिला और पुरुष में जो अंतर रहा है, वह एक प्रमुख अध्ययन का केंद्र बिंदु रहा है, इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि डिजिटल क्रांति को महिला सशक्तिकरण के लिए अच्छी ताकत माना जाता है। हालांकि, हाल के एक अध्ययन के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय महिलाएं अभी भी इस दौड़ में पीछे हैं और अब भी वह इस अंतर को मिटाने में कोसों दूर हैं। ऐसे में डिजिटल समावेशन पर काम करने वाले वैश्विक संगठन जीएसएमए द्वारा मोबाइल जेंडर गैप के वर्ष 2022 के रिपोर्ट के अनुसार, कोविड 19 महामारी के पिछले दो वर्षों ने "स्टार्क डिजिटल विभाजन को उजागर किया" जो भारत जैसे देशों के लिए चिंतन का विषय है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2021 में 49 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में केवल 26 प्रतिशत वयस्क भारतीय महिलाओं के पास स्मार्टफोन थे। इसके अलावा, केवल 30 प्रतिशत भारतीय महिलाओं के पास मोबाइल इंटरनेट की सुविधा थी, जबकि 51 प्रतिशत पुरुष मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करते थे। पिछले वर्षों की रिपोर्टों के अनुसार, आंकड़े और अधिक चौंकाने वाले हैं, क्योंकि वर्ष 2019 के बाद से बमुश्किल कोई सुधार देखा गया है। लेकिन जीएसएमए के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 में, केवल 14 प्रतिशत महिलाओं के पास स्मार्टफोन तक पहुंच थी और एक संख्या जो 2020 में बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई, लेकिन अगले वर्ष तक मुश्किल से 1 प्रतिशत सुधार दर्ज किया गया। इसी तरह, 2019 में केवल 21 प्रतिशत महिलाओं की मोबाइल इंटरनेट तक पहुंच थी, जो 2020 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई और 2021 में उस औसत पर बनी रही। इसका मतलब है कि अब भी भारत में अब भी वित्तीय लेन-देन के लिए डिजिटल दुनिया का इस्तेमाल महिलाएं कम कर रही हैं। यह बात भी गौरतलब है कि फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म अपवर्क के एक सर्वेक्षण के अनुसार, कोविड -19 महामारी ने रिमोट वर्किंग अब एक सामान्य रूप से काम करने का तरीका हो गया है। लेकिन जानकार यह भी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जब तक भारत की महिलाएं मौजूदा अंतर को कम करने और तेजी से आगे बढ़ने में सक्षम नहीं होंगी, तब तक यह उद्यमिता( किसी भी तरह का व्यवसाय ) के लिए पूर्ण रूप से तैयार नहीं मानी जाएंगी और इससे जुड़ी हुईं संभावनाओं से खुद को वंचित ही रखेंगी। ऐसे में होगा यही कि महिलाओं के हिस्से में कम तकनीक द्वारा संचालित व्यवसाय आएंगे और फिर कम राजस्व पैदा करने वाले क्षेत्रों जैसे खाद्य और हस्तशिल्प जैसे व्यवसाय तक यह सीमित रह जाएगा। जाहिर है कि इससे वह खुद के लिए अवसरों को भी सीमित ही करेंगी। जबकि इन दिनों, महिलाओं के लिए घर से काम यानी वर्क फ्रॉम होम या वे जहां रहती हैं, वहां से ही काफी काम के अवसर मुहैया कराये जाए रहे हैं, लेकिन डिजिटल दुनिया के ज्ञान के अभाव में पूर्ण रूप से इसका लाभ नहीं उठा पाएंगी।
महिलाओं द्वारा डिजिटल दुनिया का कम इस्तेमाल करने के पीछे जो कारण सामने आये हैं, उसमें बड़े कारणों में एक कारण यह भी है कि महिलाएं अपनी सेविंग्स या बचत या कमाई में से ही इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए खर्च करती हैं, ऐसे में वे इसे कई बार फिजूल खर्च के दायरे में भी रख देती हैं। साथ ही ग्रामीण इलाकों में शहरी महिलाओं की तुलना में महिलाएं कम फोन का इस्तेमाल करती हैं। एक बात और जो सामने आती है, जिसे जानकारों ने रेखांकित किया है कि महिलाएं शादी से पहले मोबाइल के इस्तेमाल से इसलिए भी बचती हैं कि इससे उनकी छवि पर भी असर पड़ता है, जैसे अब भी यह माना जाता है कि अधिक मोबाइल इस्तेमाल करने वाली लड़कियों के बारे में गलत अवधारणा बना ली जाती है।
इस संदर्भ में जो एक और बात कुछ समय पहले सामने आई थी कि टाइम यूज सर्वे में यह पाया गया है कि भारत में महिलाएं बता दें कि कुछ समय पहले ही 299 मिनट, या दिन में लगभग पांच घंटे, घरेलू काम पर बिताती हैं और 97 मिनट के तीन गुना से अधिक या पुरुषों द्वारा सिर्फ एक घंटे और आधे से अधिक ही मोबाइल पर बिताती हैं, इससे महिलाओं के पास खुद सीखने और घर से बाहर वेतन के लिए काम के लिए बहुत कम समय बचा है।
वाकई में जो आंकड़े सामने आये हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं साक्षर होने के मिशन में आगे हैं, लेकिन डिजिटल दुनिया में उन्हें और भी तेजी गति से चलने की जरूरत है और यह संभव जरूर हो सकेगा।
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