हिंदी साहित्य में महिलाओं पर कई सारी प्रेरक कविताएं और शायरियां लिखी गई हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा कवियत्री और महिला शायर रही हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से नया कीर्तिमान स्थापित किया है। तो आइए जानने की कोशिश करते हैं उन लोकप्रिय महिलाओं के बारे में, जो कि अपनी लेखनी से खुद की रचनाओं और खुद के नाम को कविता और शायरी की दुनिया में अमर कर चुकी हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
महादेवी वर्मा
‘पूछता क्यों शेष कितनी रात’, ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’, ‘से किसने जगाया’, महादेवी वर्मा की यह कविता उनकी सारी रचनाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है। महादेवी वर्मा की कविता ने ऐसा जादू बिखेरा कि उन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। अपनी कविता के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ‘यह मंदिर का दीप’, ‘जो तुम आ जाते एक बार’, ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’, मैं अनंत पथ में लिखती जो, महादेवी वर्मा की लोकप्रिय कविताएं हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महादेवी वर्मा की काव्य यात्रा आज की पीढ़ी के कई लेखकों के लिए प्रेरणा है। महादेवी वर्मा की कई सारी कविताओं में से एक कविता यहां पढ़ें।
मधुबेला है आज, अरे तू जीवन-पटल फूल, आई दुख की रात मोतियों की देने जयमाल, सुख की मंद बतास खोखली पलकें देदे ताल, डर मत रे सुकुमार, तुझे दुलराने आये शूल, अरे तू जीवन-पाटल फूल, भिक्षुक सा यह विश्व खड़ा है पाने करुणा प्यार, हंस उठ रे नादान खोल दे पंखुरियों के द्वार, रीते कर ले कोष नहीं कल सोना होगा धूल। अरे तू जीवन-पाटल फूल।
सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय कविता झांसी की रानी रही है। हिंदी के सबसे लोकप्रिय कवियों में सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम सबसे पहले आता है। सुभद्रा को उनकी कविता संग्रह के लिए 1931 में सेकसरिया पारितोषिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। याद दिला दें कि उन्हें यह पुरस्कार 1932 में ‘बिखरे मोती’ कहानी संग्रह के लिए मिला। उनकी लेखनी का ऐसा प्रभाव रहा है कि भारतीय डाक ने उनके नाम पर 25 पैसे की टिकट 1976 में जारी किया। अपने कविता के सफर में उन्होंने 88 कविताएं लिखी हैं। यह भी जान लें कि सुभद्रा कुमारी चौहान और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियां रही हैं। अपने पति के साथ मिलकर सुभद्रा कुमारी महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ चुकी हैं और राष्ट्र प्रेम के लिए कई सारी कविताएं लिखी हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान कई सारी कविताओं में से एक कविता यहां पढ़ें।
जलियांवाला बाग में बसंत कविता
यहां कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। कलियां भी अधखिली, मिली हैं कंटक- कुल से, वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं, अथवा झुलसे। यह सब करना, किंतु यहां मत शोर मचाना, यह है शोक, स्थान बहुत धीरे से आना।
अनामिका
अनामिका एक समकालीन भारतीय लेखक होने के साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। बिहार की रहने वालीं अनामिका में लिखने और पढ़ने का शौक बचपन से ही था। उनका पूरा परिवार साहित्य में रुचि रखता था। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘गलत पत्ते की चिट्ठी’ को 1978 में प्रकाशित किया गया। उनकी प्रमुख कविताओं के नाम इस प्रकार है- ‘बीजाक्ष’र, कविता ‘मैं औरत खुरदरी हथेलियां’ और दूब-धान आदि। ज्ञात हो कि उनकी कविताओं का अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में भी हुआ है। उन्हें राजभाषा परिषद पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। अनामिका ने अपनी कविताओं में घर की रसोई में काम करने वालीं महिलाओं के साथ खेती का हिस्सा रहीं महिलाओं के जीवन का भी वर्णन बखूबी किया है। साल 2021 में उन्हें ‘टोकरी में दिगंत’ नामक काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया। अनामिका की कई सारी कविताओं में से एक कविता यहां पढ़ें।
स्त्रियां
पढ़ा गया हमको, जैसा पढ़ा जाता है कागज, बच्चों की फटी कापियों का, चनाजोर गर्म के लिफाफे बनाने के लिए, देखा गया हमको, जैसे की कुफ्त हो उनींदे, देखी जाती है कलाई घड़ी अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद,सुना गया हमको यों ही उड़ते मन से, जैसे सुने जाते हैं फिल्मी गाने, भोगा गया हमको बहुद दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह, एक दिन हमने कहा, हम भी इंसान है।
सैयदा परवीन शाकिर
परवीन शाकिर उर्दू अदब की लोकप्रिय शायरा हैं। मुशायरों में उनकी शायरी ताली की गूंज के बीच और भी असर दिखाती है। परवीन शाकिर की शायरी का केंद्र बिंदु स्त्री रहा है। उनके शेरों में लोकगीत की सादगी और लय भी है। सैयदा परवीन शाकिर की लोकप्रिय शायरी की बात करें, तो ‘खुली आंखों में सपना’, ‘खुशबू’, ‘सदबर्ग’, ‘इंकार’ और ‘माह-ए-तमाम’ आदि शामिल है। यह भी बता दें कि सैयदा परवीन शाकिर ने उर्दू शायरी के एक युग का प्रतिनिधित्व करती रही हैं। सैयदा परवीन शाकिर की कई सारी शायरी में से एक शायरी यहां पढ़ें।
कमनिगाही भी रवां भी शायद, आंख पाबंदे- हया भी शायद, सर से आंचल तो न ढलका था कभी, हां, बहुत तेज हवा भी शायद, एक बस्ती के थे राही दोनों, राह में दीवारे-अना थी शायद, हमसफर थे तो वो बिछड़े क्यों थे, अपनी मंजिल भी जुदा थी शायद।
हमीदा शाहीन
उर्दू गजलें हमीदा शाहीन की विशेषता रही है। हमीदा शाहीन की शायरी में मिट्टी की खुशबू झलकती रही है। इसके साथ ही उन्होंने स्त्री के जीवन के रहस्यों और खूबियों को भी अपनी शायरी में शामिल किया है। अपनी छोटी कविताओं से भी उन्होंने खुद की रचनाओं को वर्तमान में भी जीवित रखा है। हमीदा शाहीन की कई सारी रचनाओं में से एक शायरी यहां पढ़ें कि कौन बदन से आगे देखे औरतो को, सब की आंखें गिरवी हैं इस नगरी में।