खुले विचारों के पंख के साथ, खुली हवा में सांस लेने की सुलझन और जीवन की भागदौड़ में ठहरने का हुनर होना हर किसी के बस की बात नहीं है। खासतौर पर एक महिला की जिंदगी, जो कि घड़ी की सुई की तरह टिक-टिक करके आगे-पीछे खिसकने में लगी होती है, रास्ते की भीड़ के बीच, तो कभी घर के किसी कोने में बैठ या फिर दफ्तर में लैपटॉप पर उंगली घुमाते हुए आपके मन में भी आजाद होने का ख्याल आता ही होगा। फिर चाहे वह 2 मिनट सुकून से बैठने की आजादी हो या फिर खुद के आत्मविश्वास को फिर से पटरी पर लाने की सोच की आजादी हो। वैसे, आजादी शब्द सुनने और बोलने के साथ ही ऐसा प्रतीत होता है कि कोई बंधन नहीं है। क्या आपने कभी सोचा है कि बिना किसी बंधन और रुकावट के जिंदगी कैसे होगी? इसका सबसे बड़े उदाहरण से हम सभी की रोज मुलाकात होती है। हम यहां पर बात कर रहे हैं, प्रकृति की। प्रकृति से बेहतर और सरल और सशक्त आजादी की मिसाल कोई दूसरी नहीं है। आइए जानते हैं विस्तार से।
पानी से सीखें आजाद बहना
प्रकृति में पानी तीन तरह से मौजूद है। समुद्र का ठहरा हुआ पानी, बहती नदी और सतत बहता झरना। पानी के यह तीनों ही स्वरूप देखने में जितने सुखद और सुंदर प्रतीत होते हैं, उससे भी बड़ी आजाद होने की सीख देती हैं। समुद्र का पानी हमें यह सिखाता है कि कैसे जीवन की उठा-पटक करती हुई लहरों के बीच कैसे खुद को संभालते हुए ठहर जाना चाहिए। ठहरना इसलिए जरूरी है, क्योंकि अक्सर कठिन हालातों में कई बार घबराहट में गलत फैसले हो जाते हैं, इस दौरान सबसे सही यही होता है कि आप खुद को समुद्र की पानी की तरह रोक कर रखने की आजाद सोच दिलाती है। नदी और झरने का बहता पानी हमें यह शांत समय में यानी कि खुशी के वक्त जब मन शांत हो, तब कैसे उस वक्त से आगे निकलकर खुद को बहाते हुए दूसरे पड़ाव की तरफ निकलना है, इस आजाद सोच के बहाव में डूब जाने की सीख देती है।
पक्षी से सीखें तिनके के सहारे खड़ा होना
बचपन की वो कहानी आपको याद है, जब अपने बच्चे को उड़ना सिखाने के लिए मां उसे घोंसले से धक्का देती है। कैसे चिड़िया खुद हवा के झोंकों के बीच खुद को संभालते हुए अपने पंखों की खूबी से परिचित होती है और आजाद उड़ती है। फिर चाहे वह किसी तिनके के सहारे बैठे या किसी पेड़ की डाल पर, ठीक इसी तरह पक्षी हमें सिखाते हैं कि जीवन के हर मजबूत और कमजोर तिनके पर कैसे खुद को मजबूती से खड़ा रखना है। खुद को गिरने नहीं देने की आजादी, खुद के पंख खोलकर उड़ने की आजादी, आजादी खुद को आजाद उड़ते हुए देखनी की।
पहाड़ों से सीखें ऊंचे कमजोर न होने की आजादी
शहरों में ऊंचे-ऊंचे पहाड़ कहां देखने को मिलते हैं, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि जब भी आप पहाड़ देखती हैं, तो कैसे आपकी गर्दन ऊंची हो जाती है। पहाड़ भी हमें आजादी दिलाता है कमजोर होने से। पहाड़ हमें हर मुश्किल हालात में कमजोर नहीं पड़ने की आजाद सोच देता है। पहाड़ हर तूफान का सामना डट कर करता है, इसी तरह हमें जीवन में भी खुद को हमेशा सकारात्मक रखते हुए अपनी आजाद सोच के साथ खड़े रहने की सीख देता है।
हवा से सीखें बंधन तोड़कर बहने की आजादी
बहती हुई हवा जब चेहरे को छूकर जाती है, आंखें बंद करवा जाती हैं, तब ऐसा सुकून मिलता है, जैसे किसी ने पल भर के लिए सही लेकिन आपको हर चिंता से मुक्त कर देती है। भले ही बहती हुई हवा हमारे कदमों को कुछ देर के लिए रोक देती है, लेकिन वह इस बात की तरफ इशारा भी देती है कि जीवन में कभी भी ठहरना नहीं चाहिए। हवा हमें सिखाती है कि सुख हो या दुख खुद को एक जगह रोकर रखना बंधन है। हवा हमें बताती है कि चाहे आप सफलता के शिखर पर हो या फिर जमीन रूपी संघर्षों के साथ हो, खुद को किसी भी हालात में जकड़ कर न रखें। अपनी सोच को हमेशा हवा की तरह खुली हवा की तरह आजाद रखें।
आजाद हैं हम?
आज भले ही हम चांद पर पहुंच चुके हैं, घर की जिम्मेदारी हो या फिर खुद पर खर्च करने की बारी, महिलाएं जीवन के हर पड़ाव और हर मुश्किल पर पूरे जज्बे और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं, लेकिन फिर भी कुछ न कुछ है, जो हमें एक कदम पीछे होने पर मजबूर करता है और इससे ही आजाद होने की जिद्द हम सभी को करनी है और खुद से यह पूछना है क्या आजाद हैं हम?