15 अगस्त 1947 को हमें जब आजादी मिली, इस आजादी के लिए हमारे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानी दी और फिर आजादी हासिल की, लेकिन यह सब कुछ आसान नहीं था, ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने अपनी निजी जिंदगी में सारी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया और देश को आजादी दिलायी। तो आइए आजादी के 76 वर्ष पूरे होने के अवसर पर उन महिलाओं के बलिदान के बारे में विस्तार से जानते हैं।
विजय लक्ष्मी पंडित
image courtesy : yourcoimbatore.com
विजय लक्ष्मी पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं। इनका जन्म 1900 में हुआ था। 1935 में भारत सरकार अधिनियम लागू हुआ और उसके तहत 1937 में कई प्रांतों में कांग्रेस की सरकारें बनीं और विजय लक्ष्मी पंडित को संयुक्त प्रान्त का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। विजय लक्ष्मी पंडित अंग्रेजों के राज में किसी कैबिनेट पद हासिल करने वालीं प्रथम महिला थीं। वह 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनीं और इस पद पर आने वालीं वह विश्व की प्रथम महिला बनीं। वह स्वतंत्रता के बाद भी वे राजनायिक सेवाओं का हिस्सा बनीं। आजादी के महत्वपूर्ण आंदोलन असहयोग आंदोलन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने गांधी और नेहरू के साथ कई महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी। उन्हें इस वजह से कई बार जेल जाना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं खींचे।
ऊदा देवी
ऊदा देवी ने 1857 के भारतीय विद्रोह में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ीं। ऊदा देवी और अन्य महिला दलित प्रतिभागियों को इहितास में सन 1857 के भारतीय विद्रोह के योद्धाओं या ‘दलित वीरांगना’ के रूप में याद किया जाता है। ऊदा देवी ने अपनी पति की अंग्रेजों द्वारा मृत्यु हो जाने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ी और सफलता हासिल की। इन्होंने अपनी अंतिम सांस चलने तक अंग्रेजों को मारा था।
चन्द्रप्रभा सैकियानी
चन्द्रप्रभा सन 1930 में असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनीं और जेल भी गयीं। वे सन 1947 तक कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर काम करती रहीं, उन्होंने असम में चली आ रही पर्दा प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभायी और उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया और 13 साल की उम्र में प्राइमरी स्कूल खोला।
दुर्गावती देवी
image courtesy : @ yourcoimbatore.com
दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के नाम से भी जाना जाता है, वह आजादी की हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनीं। इन्होंने जरूरत के लिए बम भी बनाये, इन्हें आयरन लेडी भी कहा जाता है, दुर्गावती भारत की आजादी और ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर भगाने में सशस्त्र क्रांति में सक्रिय भागीदार थीं। वह भगत सिंह के दल का भी हिस्सा थीं और कई महत्वपूर्ण योजनाओं को उन्होंने भगत सिंह के साथ मिल कर अंजाम दिए।
उषा मेहता
image courtesy : @ filmfare
उषा मेहता के बारे में कम लोगों को जानकारी होगी, लेकिन भारत के गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी होने के लिहाज से वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक भूमिगत गुप्त रेडियो स्टेशन का संचालन शुरू किया। वह कम उम्र से ही गांधीजी के विचारों से प्रभावित हो गई थीं और उन्होंने ठान लिया कि वह अपने देश के लिए कुछ करेंगी, फिर उन्होंने सारी सुख सुविधाओं को छोड़ कर देश की आजादी के लिए कदम बढ़ाये। यह उल्लेखनीय है कि केवल आठ वर्ष की आयु में उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में हिस्सा लिया था, उनका यह नारा ‘साइमन वापस जाओ’ काफी लोकप्रिय हुआ।
*Image picture is only for representation of the story