याद आती है क्या आपको, वो टीचर जो सुबह-सुबह प्यारी सी मुस्कराहट लिए आपके क्लास में आती थी, जिसका स्वागत आप अपने अलसाए शब्दों ‘गुड मॉर्निंग टीचर’ कहकर करती थीं, फिर भी वो अपनी पर्सनल लाइफ में चलने वाले सारी जद्दोजहद को ब्लैक बोर्ड पर लिखे पुराने अक्षरों की तरह मिटा देती थी और लिखती थी आज की तारीख - 5 सितंबर। सालों हो गए होंगे आपको स्कूल छोड़े, लेकिन इस तारीख को आप अपनी टीचर को जरूर याद करती होंगी। शिक्षक दिवस, इस दिन स्कूल में बड़ी चहल-पहल होती थी और हर टीचर को कोई गिफ्ट देता था, तो कोई फूल। आज के इस दिन खास दिन पर, हमने ऐसी ही एक खास टीचर से बात की है, जो खास बच्चों को खास शिक्षा प्रदान करती हैं। मिलिए, मिस शहाना अरब से, जो काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट है और पिछले तीन सालों से स्पेशल बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही हैं।
शहाना, मुंबई की रहने वाली एक आम-सी लड़की हैं, लेकिन जिनके काम ने उन्हें खास बना दिया। इनके काम ने उन्हें भीड़ से अलग लाकर खड़ा कर दिया। शहाना से हुई हमारी पूरी बातचीत से पहले हम आपको बताएंगे कुछ खास शब्द, जो उन्होंने इस पूरे इंटरव्यू में बार-बार दोहराई हैं और हर बार यह हमारे दिल को छू गई, ये लाइन है - स्पेशल चाइल्ड को पढ़ाना भी काफी ‘स्पेशल’ होता है।
जब आप किसी बच्चे को पढ़ाते हैं, तो आपको पता चलता है कि ये बच्चा आपकी बात समझ रहा है या नहीं, लेकिन स्पेशल चाइल्ड को पढ़ाते समय ऐसा नहीं लगता। ऐसे बच्चे जो नॉर्मल पढ़ाई करने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिए पढ़ाई का पैटर्न बहुत ही अलग होता है। नॉर्मल क्लास की तरह सिर्फ एक पैटर्न फॉलो नहीं किया जाता हैं, बल्कि हर बच्चे की सक्षमता को ध्यान में रखते हुए हर बच्चे की पढ़ाई का पैटर्न तय किया जाता है, जो कि काफी मुश्किल है। स्पेशल बच्चों को पढ़ाने और इस के दौरान आने वाले मुश्किलों के बारे में बात करते हुए शहाना ने हमें बताया, ‘हर एक बच्चे का समझने का, सोचने का और चीजें सीखने का तरीका अलग होता है। क्लास में अगर 20 बच्चे हैं, तो उनके लिए 20 अलग-अलग पैटर्न और मेथड तैयार करने होते हैं। हमारे लिए मुश्किलें तब भी आती हैं, जब प्राइवेट स्कूल में हमें, स्लॉट बुक करने होते हैं। हमें हमारे बच्चों को नॉर्मल क्लास में भी सेशन दें होते हैं और ऐसे में मुश्किलें शुरू होती हैं। अन्य बच्चों के साथ उन्हें भी बैठाना, अन्य बच्चों का उनके प्रति व्यवहार, इन सभी चीजों का बहुत ध्यान देना होता है। स्लॉट बुकिंग करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है।”
सिनेमा ने भी निभाई है सकारात्मक भूमिका
शहाना बताती हैं कि पेरेंट्स का सपोर्ट भी मिलना बहुत जरूरी है। उन्होंने देखा है कि पिछले कुछ सालों में पेरेंट्स का व्यवहार काफी बदल गया है। पहले लोग अपने स्पेशल बच्चों पर, उनकी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। हालांकि, जब बात आती है होम प्रोग्राम की, जो बच्चों को घर पर उनके पेरेंट्स को कराया जाना चाहिए। वह अब भी कई जगह नहीं होता। शहाना ने कहा, ‘यहां बॉलीवुड फिल्मों ने भी बड़ा रोल अदा किया है। तारे जमीन पर, के बाद लोगों में जागरूकता आ गई है। पहले स्कूल में ऐसे बच्चों के लिए कोई अलग डिपार्टमेंट नहीं हुआ करता था, बल्कि उनका अलग ही स्कूल होता था। पर अब ऐसा नहीं होता, कई प्राइवेट स्कूल के पास अलग डिपार्टमेंट है जहां, मेरी जैसी कई टीचर्स है।’
और मेरी जिंदगी बदल गई
यहां हमरे जहन में एक सवाल आया कि आखिर शहाना ने स्पेशल चाइल्ड को पढ़ाना ही क्यों चुना? इस बारे में बात करते हुए शहाना ने कहा, “मुझे टीचिंग करना था, यह मैं बहुत पहले से जानती थी। जब मैं कॉलेज में थी तो मेरी एक दोस्त बनीं जरला शाह जिसे सेरिब्रल पॉलजी था। इस बीमारी में जन्म के समय या पहले हुए ब्रेन डैमेज के कारण हाथ और पैरों पर नियंत्रण नहीं होता और यह उम्र के साथ यह नियंत्रण खोना और भी बढ़ जाता है। जरला ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी। वहीं थ, जिन्होंने मुझे बताया कि हमारे कॉलेज में एक अलग डिपार्टमेंट है, जहां स्पेशल बच्चों का सेशन होता है। मैंने वो ज्वाइन किया, उसके बारे में पढ़ा और समझा और तब मुझे लगा कि काश ! ऐसा कुछ मेरी स्कूल में भी होता, तो कितने बच्चे पढ़ पाते।”
और उनके खुशी के आंसू में छुपी थी मेरी खुशी
इसी के साथ शहाना ने हमें अपने एक यादगार पल के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि वो एक ऑटिस्टिक बच्चे का सेशन ले रही थी। एक बच्चे को लोगों के बीच बोलने में, सोशल होने में काफी तकलीफ होती थी। लेकिन, धीरे-धीरे उसमें काफी सुधार आने लगा। फिर एक दिन…शहाना ने कहा, “ फिर एक दिन उसके पेरेंट्स आए और उन्होंने बहुत ही इमोशनल होकर मुझे धन्यवाद कहा। वो रोने लगे और उन्होंने कहा कि उनके बच्चे में काफी सुधार आया है। उनके खुशी के आंसू देख कर, मेरा दिल भी पसीज रहा था। इस पल मैं बहुत खुश थी कि मेरी वजह से किसी को इतनी खुशी मिली है। मैं इस पल को कभी नहीं भूल सकती, स्पेशल बच्चों को पढ़ाना भी स्पेशल होता है।”
मेरे पेरेंट्स ने किया सपोर्ट
शहाना ने बताया कि उनके पेरेंट्स भी उनका बहुत सपोर्ट करते हैं। जब वह पढ़ रही थीं, तो उन्हें लगा था कि पेरेंट्स की तरफ से इतना सपोर्ट नहीं मिलेगा। लेकिन, यह बात गलत साबित हुई। शहाना ने कहा, ‘मेरे पेरेंट्स ने कभी मुझसे कहा नहीं, लेकिन उनके एक्शन्स मुझे बताते थे कि मैं जो भी कर रही हूं, उससे वे बहुत खुश हैं। हमारे घर में एक ही कंप्यूटर था और वो मेरे पिता अपने काम के लिए इस्तेमाल करते थे। वो कई बार अपनी कुर्सी से उठकर कुर्सी मेरे लिए खाली छोड़ दिया करते थे, ताकि मैं कंप्यूटर से पढ़ाई कर सकूं। आसपास के लोग भी अब मुझसे सवाल-जवाब करते हैं और दुआएं देते हैं तो मैं अपने पेरेंट्स की आंखों में गर्व का सितारा चमकते हुए देखती हूं।”
शिक्षा पर है सबका हक
शहाना का मानना है कि बेसिक शिक्षा का हक सभी को है। जब इंसान इस दुनिया में आता है तो वो भले, अमीर हो या गरीब, उसका धर्म कोई भी हो, वो नॉर्मल हो या स्पेशल चाइल्ड, पढ़ाई सबका हक है। शहाना ने बताया कि जैसे मेरे पेरेंट्स ने मेरा साथ दिया है, मैं भी मेरे हर स्टूडेंट का साथ देती हूं और आशा करती हूं ज्यादा से ज्यादा पेरेंट्स अपने स्पेशल बच्चों को स्पेशल मानें और उन्हें भी नॉर्मल बच्चों की तरह महत्त्व दें, क्योंकि सच में ‘स्पेशल चाइल्ड को पढ़ाना काफी स्पेशल होता है।’
वाकई, ऐसे गुरु मिसाल हैं, जो हर बच्चे को एक नजर से देखते हैं और एक तरह से ही सम्मान देने की कोशिश करते हैं। शहाना जैसे लोगों का दुनिया में बने रहना बेहद जरूरी है, ताकि किसी भी बच्चे को दुनिया से सिर्फ मिले तो प्यार और प्यार।