बेटियां तो मांओं की रानियां हैं, जिन घरों में भी बेटियां होती हैं, उस घर में रौनक होती है, बड़े-बड़े आंकड़ों पर न जाएं, अपने इर्द-गिर्द भी देखें, तो वे मांएं बेहद खुद को खुशनसीब समझती हैं, जिनकी बेटियां होती। राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर आइए जानें, बेटियों की मां क्यों शान से कहती हैं कि हां, मुझे बेटियों पर गर्व है।
हर सुख दुःख का बनती हैं हिस्सा : स्वाति श्रीवास्तव, वाराणसी
स्वाति कहती हैं कि उनकी दो बेटियां हैं इशू और अंशू, दोनों ही उनकी आंखों की तारा हैं। स्वाति का मानना है कि बेटियां बेटों से अधिक इमोशनल होती हैं और अपने मां की परेशानी उन्हें नजर आती है, कभी जब स्वाति थक हार कर आती हैं, तो बड़ी बेटी जहां उन्हें चाय बना कर देती हैं, तो छोटी वाली सिर सहला देती हैं। साथ ही किसी भी पर्व त्यौहार में हमेशा घर की मिठाइयां बनाने में और घर की साफ-सफाई में भी हाथ बटा देती हैं। और कभी उनकी तबियत खराब हो, तो हर तरह से सपोर्ट करती हैं।
मेरी चार मजबूत स्तम्भ हैं बेटियां : इंदु सिन्हा, रांची
इंदु कहती हैं कि मेरी चार बेटियां हैं, जिन्हें मैंने बेहद प्यार से और नाज से पाला है। चारों बेटियां अपनी फील्ड में कामयाब हैं और उन्होंने मुझे कभी कमी किसी भी तरह की महसूस नहीं होने दी। वे बाहर के काम भी फटाफट करती हैं, ड्राइविंग स्किल से लेकर हर तरह के काम में माहिर हैं और घर में भी वे कभी सबकुछ करती हैं। चारों बहन में जबरदस्त बॉन्डिंग है। मैं खुद को खुशनसीब मानती हूं कि उनका साथ मुझे मिला है। बचपन में लोग बड़ी बेचारगी जताते थे, लेकिन मेरा वह नजरिया कभी नहीं रहा, मैंने कभी कोई भेदभाव नहीं किया और उन्हें अच्छी परवरिश देने की कोशिश की।
मेरी परी है मेरी बेटी : सृष्टि श्रेया, देहरादून
सृष्टि मानती हैं कि बेटियां कम उम्र से ही मां की परेशानियों को समझने लगती हैं और छोटी-छोटी बातों में ही उनकी वह बात झलकती है, जैसे मेरी बेटी बिना कहे, अगर मैं किसी दिन देर से उठी, तो समझ जाती है कि मां को तकलीफ है और फिर वह आकर मेरा हाल चाल लेगी, मेरे पैर दबाने लगेगी। हद से ज्यादा फ़िक्र करेगी, उस दिन कहीं खेलने नहीं जाएगी। सो, मेरा मानना है कि एक बेटी होने से आप भी भावनाओं को अच्छे से समझने लगती हैं और आप एक अच्छी इंसान भी बनती हैं।
पूरे घर में गूंजती है बस उसकी ही हंसी : सुप्रिया, बोकारो स्टील सिटी
सुप्रिया कहती हैं कि उनकी एक ही बेटी हैं और जो खूब बातूनी है और पूरे घर में दिन भर उसकी गूंज सुनाई देती है और फिर वह खूब खेलती रहती है। सुप्रिया कहती हैं कि कभी-कभी वह ऐसी बातें कह जाती है कि मेरी आंखें भर आती हैं, वह कहती हैं कि उसे पता चल जाता है कि मैं किसी तकलीफ में हूं। साथ ही मुझे ऐसा लगता है कि बेटियां आपकी जिंदगी से मायूसी को हटा देती है, वे मां के साथ अधिक इन्वॉल्व होती हैं, जबकि लड़के खेलने में माहिर होते हैं और बाहर रहना पसंद करते हैं।
बेटियां हैं तो सबकुछ है : रिंकी, कटिहार
मेरी तीन बेटियां हैं और तीनों ने ही मेरे घर की जिम्मेदारी पूरी तरह से संभाली है, वह जानती हैं कि मां को अकेले नहीं छोड़ना है, तो तीनों ने आपस में ही अपनी जिम्मेदारी को बांट रखा है, मेरे लिए तीनों ही सहारा बन कर खड़ी रहती हैं। यही मेरे लिए बड़ी बात है।