जीवन में किया गया कोई भी नया काम आपको कोई न कोई सीख जरूर देकर जाता है। क्या आप जानती हैं कि किसी भी चीज को सीखने की ललक आपके अंदर नया उत्साह भी लेकर आती है। इसी वजह से लोग अक्सर अपने मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए डांस, स्वीमिंग, पेंटिंग जैसी कई सारी हॉबीज को समय देना जरूर समझते हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं कि लैग्वेंज कोर्स भी आपको किसी बड़े फोबिया या फिर परेशानी से बाहर निकालने में पूरी सहायता कर सकता है। स्किल लाइव लैंग्वेज कोर्स की फाउंडर एवं शिक्षक उषा साहू ने ऐसे ही एक फोबिया से बाहर आने के लिए लैग्वेंज कोर्स का सहारा लिया। उषा साहू साल 2007 में कैंसर फोबिया का शिकार हो गयी थीं। ऐसे में उन्होंने यह फैसला किया कि लैंग्वेज कोर्स के जरिए वह कैंसर फोबिया से खुद को आजाद करेंगी। आइए जानते हैं विस्तार से कि कैसे उषा साहू को लैंग्वेज कोर्स ने नई जिंदगी दी है।
कैंसर फोबिया से घबराहट
उषा साहू बताती हैं कि 2007 में मैंने कैंसर बीमारी के कारण अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया थी। मुझे कैंसर बीमारी से डर लगने लगा था। अगर मैं कैंसर बीमारी से जुड़ी कोई खबर पढ़ लेती थी या फिर कोई वीडियो देखती थी, तो मुझे घबराहट होने लगती थी। घबराहट या फिर एंग्जायटी (बेचैनी/घबराहट) के लिए कोई दवा नहीं बनी है। इसका इलाज सेल्फ काउंसलिंग हैं। हमें ऐसा कुछ करना होता है ताकि हम खुद ही घबराहट और परेशानी की लगातार हो रही समस्या से बाहर आ सकें। साल 2007 में मैंने यह तय किया कि मुझे नयी भाषा सीखनी है। मेरे लिए नई भाषाएं सीखना नए अनुभव की तरह रहा है। नई भाषा सीखने के बाद धीरे-धीरे वक्त के साथ मैं घबराहट और परेशानी वाले अहसास से बाहर आ पाई हूं।
लैंग्वेज कोर्स ने ऐसे दूर किया फोबिया
उषा बताती हैं कि कैसे नई भाषा ने उन्हें फोबिया की कैद से बाहर जाने का रास्ता दिखाया है। वह कहती हैं कि नई भाषा सीखने के दौरान हर दिन कुछ नया सीखना, उस चुनौती को पूरा करना, इससे दिमाग में हैप्पी हार्मोन डोपामाइन का संचार होता है। हमारा ध्यान नकारात्मक चीजों से भटक जाता है। लैंग्वेज कोर्स की सारी प्रक्रिया को पूरा करना नई सीख और उत्साह को जन्म देता है। इसलिए लगातार दिमाग नेगेटिव विचारों की तरफ नहीं जाता है।
नकारात्मक सोच अलविदा
उषा बताती हैं कि मेरे अनुभव के अनुसार नई भाषा सीखना एक अच्छा और सुखद अहसास देता है। नई भाषा सीखना नकारात्मक सोच को सकारात्मक विचार बना देता है। भाषा के जरिए नए लोग और नई सभ्यता के बारे में भी पता चलता है। यह सारे बदलाव मानसिक सेहत को संभालता है। साल 2007 में ही मैंने लैंग्वेज कोर्स के जरिए खुद में बदलाव लाया है। मैंने खुद को बिजनेस वुमन बनाया।मैं शिक्षक बन गई और खुद लैंग्वेज लर्निंग स्कूल की स्थापना की। मेरे लिए फिलहाल कैंसर फोबिया मेरे जीवन की मात्र एक घटना बन कर रह गई है।
महिलाओं की मानसिक सेहत के लिए उपयोगी
एक शिक्षक होने के नाते उषा साहू कहती हैं कि कई सारी महिलाएं मेरे पास आती है और मैं उनसे हमेशा यही कहती हूं कि नई भाषा सीखने से जीवनशैली में बदलाव के साथ मानसिक सेहत को भी बेहतर परिस्थिति में लाया जा सकता है। साथ ही यह किसी के लिए एक बेहतरीन करियर पर्याय भी बन सकता है। मुझे भरोसा है कि जिस तरह नई भाषा सीखना मेरे लिए मददगार साबित हुआ है, वैसे दूसरों के लिए भी यह सहायक होगा।
बच्चों के मानसिक विकास में सहायक
उषा बताती हैं कि मेरे पास चाल से पांच साल के बच्चे भी लैंग्वेज कोर्स सीखने के लिए एडमिशन लेते हैं। मैंने देखा है कि जो बच्चे ज्यादा बात करना पसंद नहीं करते हैं। कुछ दिन नई भाषा के क्लास लेने के बाद यह अनुभव हुआ है कि बच्चे पहले से ज्यादा बातचीत करने लगे हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। नई चीजें सीखने से उनका मानसिक विकास होता है। सोशल एंग्जायटी से भी बाहर आते हैं। आत्मविश्वास मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है।
घरेलू महिलाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक
उषा महिलाओं के मानसिक परेशानी को लेकर कहती हैं कि घरेलू महिलाएं अपने घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। घरेलू महिलाएं परिवार के लिए अपना पूरा वक्त दे देती हैं। जब घरेलू महिलाएं नई भाषा सीखती हैं, तो उन्हें लगता है कि वे कुछ नया काम खुद के लिए कर रही हैं। आत्मविश्वास भी बढ़ता है। उन्हें ऐसा लगता है कि वह पहले से बेहतर हो रही हैं उनके पास नए करियर के पर्याय होते हैं। कामकाजी महिलाओं को भी लैंग्वेज कोर्स के कारण तनाव से ब्रेक मिलता है। कई बार तनाव इस बात का भी होता है कि हम खुद के लिए कुछ अच्छा नहीं कर रहे हैं। महिलाओं को नई भाषा सीखना हमेशा से ही उनके आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए उनका मानसिक विकास करता है।