पूरे माहौल में गणपति के जयकारे की धूम मची हुई है, खासतौर से महाराष्ट्र के हर कोने-कोने में भगवान गणेश की भक्ति में लोग डूबे हुए हैं। ऐसे में जैसे भगवान गणेश की पूजा बिना मोदक के भोग के पूरी नहीं होती है, ठीक इसी तरह भगवान गणेश की विदाई बिना ढोल ताशे की गूंज के संपन्न नहीं होती है। खासतौर से मुंबई में ऐसे कई ग्रुप हैं, जो ढोल ताशे के साथ बप्पा की विदाई में हिस्सा लेते हैं, इसकी तैयारी कई महीने पहले से होती है। इन सबके बीच, पिछले कुछ वर्षों में देखें, तो लड़कियों ने गणेशोत्सव भी ढोल ताशे की मंडली बनाई है और वे बढ़ चढ़ कर इसमें हिस्सा भी लेती हैं। ऐसी ही एक कलाकार हैं, मुंबई में रहने वाली 16 साल की रीना राज धनुधर्मी, जो काफी कम उम्र से इस हुनर में माहिर हैं और उनकी उपलब्धि में लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल हैं। तो आइए, गणेशोत्सव के बहाने, जानें इस होनहार कलाकार के बारे में, जिनके लिए संगीत में बसी है दुनिया।
कम उम्र में ही संगीत से हुआ लगाव
महाराष्ट्र के मुंबई शहर के बोरीवली इलाके के मागाथाने में रहने वालीं रीना कई वर्षों से गणेश पूजन में ढोल ताशा बनाने वाली मंडली का हिस्सा रही हैं। रीना के पिता राज बताते हैं कि रीना को हमेशा से ही संगीत के प्रति लगाव रहा। 9 साल की उम्र से ही ढोल बजाना शुरू कर चुकी थीं, उन्हें इसमें इस कदर मजा आने लगा कि कम उम्र में ही उन्होंने अपनी तरह और लड़कियों को इसे सिखाने के लिए एक ग्रुप शुरू किया। लगभग 14 से 15 लड़कियां इसमें शामिल हुईं। राज बताते हैं कि उनकी छोटी बेटी रिद्धि राज धनुधर्मी, जो कि साढ़े साल की उम्र की हैं और तब से वह अपनी बहन की तरह ही ढोल बजा रही हैं। रीना ने छोटी सी उम्र में ही दही हांडी में भी ह्यूमन पिरामिड में चढ़ कर दही हांडी फोड़ा था, तब उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुआ।
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पापा ने हमेशा किया बेटियों पर नाज
रीना बताती हैं कि वह खुद को बेहद खुशनसीब मानती हैं कि उन्हें अपने परिवार वालों का सहयोग और साथ मिला। पापा हमेशा कहते हैं कि बेटियां बेटों से कम नहीं है। उन्होंने हमेशा ही मुझे मेरी पसंद को समझते हुए मुझे ढोल बजाने दिया और इस कला को सीखने दिया। यही नहीं मेरे लिए एक ग्रुप की भी शुरुआत की। रीना आगे कहती हैं कि मुझे और मेरी बहन की दिलचस्पी देखते हुए, मेरी मां की भी इसमें दिलचस्पी बढ़ी और उनको मैंने ही इसे बजाना सिखाया है। मुझे याद है, शुरू में मैंने जब यह करना शुरू किया था, पापा को कई लोग आकर कहते थे कि बेटी से बेटों वाले काम करा रहे हो, तब मेरे पापा सबको यही कहते थे कि मेरी बेटियों को सारी खुशियां दूंगा। राज मानते हैं कि बेटियों के रूप में उन्हें जन्नत मिली है। उनका खुशियों पर पूरा हक है।
गणेशोत्सव में रहती है धूम
रीना ने गणेशोत्सव के दौरान कई बार, ढोल ताशा बजाया है। वह कहती हैं कि सालों भर वह इस उत्सव का इंतजार करती हैं, हालांकि इस बार वह अपनी 12 वीं की पढ़ाई में व्यस्त हैं, तो वह इस बार हिस्सा नहीं ले रही हैं। लेकिन उन्होंने पिछले कई सालों में जम कर अपने इस हुनर से लोकप्रियता हासिल की है। उन्हें कई लोकप्रिय कलाकारों से सराहना भी मिली है। रीना के पिता बताते हैं कि रीना को कभी ढोल उठाने में दिक्कत नहीं हुई, वह खुद भी इस बात से हैरत में रहते हैं कि छोटी उम्र से ही उसने कैसे स्वाभाविक रूप से इसे वजनदार होते हुए भी उठा भी लिया और जम कर इसे बजाया भी। रीना ने बताया है कि वह पढ़ाई में भी हमेशा अपना सर्वोत्तम देना चाहती हैं, लेकिन संगीत प्रेम को वह कभी नहीं छोड़ेंगी। वह आगे चल कर कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहती हैं, जिसके लिए वह खूब मेहनत भी कर रही हैं।
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बड़ी उम्र की महिलाओं को भी सिखाती हैं ढोल बजाना
रीना के पिता बताते हैं कि रीना ने जो ग्रुप शुरू किया है, उसमें बड़ी उम्र की महिलाएं भी इन दिनों ढोल सीखने आती हैं, रीना उन्हें सिखाती हैं, तो कभी वे महिलाएं इसे छोटी बच्ची समझ कर ध्यान से नहीं सुनती हैं, लेकिन फिर जब वे इनका हुनर देखती है और समर्पण देखती तो सम्मान देना शुरू करती है। रीना को इस बात की खुशी है कि पहले महिलाओं की संख्या इतनी नहीं थी, लेकिन अब जब वह यह इस ट्रेंड को बढ़ते देख रही हैं, तो बेहद फक्र और खुशी महसूस करती हैं। वह दिल से चाहती हैं कि ढोल बजाने का यह हुनर पूरी दुनिया तक पहुंचे और लोग उनके काम को सराहें।
वाकई, रीना जैसी हुनरमंद लड़कियां सिखाती हैं कि हुनर को उम्र की सीमा या संसाधन की कमी में नहीं बांधा जा सकता है। अगर आपमें लगन है तो कम उम्र में भी आप ऐसी कामयाबी हासिल कर सकते हैं।