यह कहानी सुन कर आपको फिल्मी लग सकती है या यूं कहें, एक सेकेण्ड में बनने वाली रील्स से लोकप्रियता हासिल करने वाली भी कोई इंस्टा स्टोरी लग सकती है कि दुनिया की चकाचौंध से दूर, कहीं एक ऐसा कपल है, जिनके लिए उनके 20 बच्चे ही उनकी पूरी दुनिया हैं। इन बच्चों से उनका कोई खूनी रिश्ता नहीं, बल्कि रिश्ता है इंसानियत का। जी हां, धरा पांडे और उनके पति निखिल दवे रियल जिंदगी के ऐसे कपल हैं, जो अनजान बच्चे, जो हुनरमंद हैं और जिन्हें किसी की साथ की जरूरत हैं, उनके लिए एक हाथ बने हैं, और अपनेपन के साथ उन्होंने हाथ बढ़ाया है और ये दोनों कोशिश कर रहे हैं कि कुछ बच्चों को हाथ पकड़ कर, उनकी मंजिल तक पहुंचाया जा सके। आइए, विस्तार से जानें इनके बारे में।
शादी की है, तो अपने बच्चे तो पैदा करने ही होंगे। वरना समाज के ताने कौन सुनेगा। इसमें कोई शक नहीं कि हमारे समाज में शादी होने के दूसरे दिन से नवविवाहित दंपति पर लगातार परिवार और समाज का दबाव बनता ही है और इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि मां बनना तो किसी महिला के जीवन का सबसे सुंदर पल होता है, लेकिन मां बनने की तो बस एक ही जरूरी शर्त होनी चाहिए न, वह है ‘ममता’। हरेक महिला के लिए मां बनना उनकी अपनी चॉइस होनी चाहिए, न कि किसी का दबाव। तो आइए, हम आपको एक ऐसी ही मां से मिलवाते हैं, जो सोशल मीडिया के बेबी शॉवर वाली दिखावटी दुनिया से कहीं दूर, जरूरतमंद बच्चों के लिए एक अलग ही ‘वृंदावन’ बसा रखा है, जहां वह ‘यशोदा मां’ की तरह ही, कई बच्चों पर ममता की बौछार कर रही हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं इंदौर में रहने वालीं धरा पांडे की और निखिल दवे की, जिन्होंने अपने बच्चे नहीं करने का फैसला लेकर, उन 20 बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी ली है, जो बेहद जरूरतमंद हैं। दोनों ही मिल कर, न सिर्फ इन बच्चों पर प्यार लुटा रहे हैं, बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा भी दे रहे हैं।
धरा शिक्षण के क्षेत्र से ही जुड़ी हुई हैं और निखिल व्यवसाय करते हैं। दोनों ने ‘क्राफ्टिंग फ्यूचर’ नाम से अपना यह नेक काम शुरू किया । ऐसे में दोनों की कोशिश यही होती है कि वह जहां भी जाएं, वहां के जरूरतमंद और हुनरमंद बच्चों के साथ जुड़ें। ऐसे में मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाके में जब आदिवासी बच्चों में प्रतिभा देखी, तो वह हैरान रह गए और उन्हें लगा कि इन्हें जरूर पढ़ाया जाना चाहिए। वर्ष 2014 में दोनों ने मिल कर, यहां के बच्चों को गोद लिया। पहले तो उनके पेरेंट्स तैयार नहीं थे। लेकिन बाद में मशक्क्त के बाद सभी तैयार हुए। धरा बताती हैं ‘यह आसान निर्णय नहीं था, क्योंकि हम दो लोग इस काम को अंजाम नहीं दे सकते थे, फिर हमें हमारे काफी दोस्तों ने भी मदद करना शुरू किया। हम सबने आपस में ही मिल कर जिम्मेदारियां बांटी। उनके दोस्तों ने राशन से लेकर, स्कूल में दाखिले, पुस्तक और ऐसे कई जरूरी इंतजाम, जो इन बच्चों को चाहिए थे, सबने मिल कर बंदोबश्त किया।
धरा बताती हैं कि पहले बच्चों की संख्या लगभग 15 थी, जो अब 20 से भी ज्यादा हो गई है। धरा ने यह भी बताया कि नॉर्थ ईस्ट के काफी बच्चे हैं, जिन अभिभावकों के लिए बच्चों को पढ़ाना-बढ़ाना संभव नहीं हैं, उनके लिए हम दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा देते हैं। त्रिपुरा से आये कई बच्चे हैं, जो काफी गरीब घर से ताल्लुक रखते है, इन बच्चों में कई शरणार्थी शिविरों में रहने वाले बच्चे भी शामिल हैं, जिनके ‘कल’ का कोई ठिकाना नहीं है। मिजोरम के भी बच्चे हैं, ऐसे बच्चे जहां शिक्षा क्या कोई भी सुविधा नहीं पहुंच पाती है, धरा और निखिल ऐसे बच्चों का जीवन संवारने में लगे हुए हैं। धरा कहती हैं कि उन्होंने एक अहम जिम्मेदारी उठाई है और इनमें से जितने ज्यादा से ज्यादा बच्चों का भविष्य बन जाएगा, वह समझेंगी कि उन्होंने जीवन में कुछ पा लिया है।
धरा कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि हमारे लिए यह काम आसान होता है, हमें बच्चों के माता-पिता को मनाने से लेकर कई सारी चीजों को साथ लेकर चलना पड़ता है, लेकिन इन सबके बावजूद, हमें एक अद्भुत संतुष्टि मिलती है इन बच्चों के साथ, जो हमें हमेशा हमारे पेरेंट्स होने का एहसास कराते रहते हैं और हम भी एक जिम्मेदार पेरेंट्स की तरह ही कोशिश करते हैं कि इसका निर्वाह कर सकें। धरा कहती हैं कि बच्चों को विनम्र होना और अच्छा इंसान बनाना, यह सब हमारी ही जिम्मेदारी है और हम इसमें विफल न हो, हमारी कोशिश तो यही रहती है।
धरा बताती हैं कि ऐसा नहीं है कि उन्हें घर-परिवार या करीबियों से इस बारे में नहीं पूछा गया है कि वह अपने बच्चे कब करेंगे, लेकिन उनके लिए तो यह सारे उनके ही बच्चे हैं और उनकी छोटी सी भी तरक्की, धरा और उनके पति के चेहरे पर मुस्कान लाती है। मां का दिल तो इसे ही कहते हैं।
वाकई, धरा और उनके पति निखिल दवे एक ऐसी मिसाल हैं, जो यह दर्शाते हैं कि आप अगर वाकई में कुछ करने की चाहत रखते हैं, तो आपको कदम उठाने पड़ते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर इससे अच्छी प्रेरणादायी कहानी और क्या होगी, जहां हम एक ऐसी मां को देख रहे हैं, जो एक नहीं, बल्कि कई बच्चों की यशोदा मां बनी हैं और अपनी मां से भी बढ़ कर, वह सारी जिम्मेदारियां निभा रही हैं। ऐसी कहानियां वाकई प्रेरित करती हैं और एक उम्मीद की किरण भी जगाती हैं कि ममता किसी खूनी रिश्ते की मोहताज नहीं, बल्कि यह इंसानी रिश्ते की जज्बात है।