आप किसी हाई वे से गुजर रहे हैं और वहां आपकी गाड़ी पंचर हो जाये, तो जाहिर है कि आपकी जुबां पर यही बात आएगी कि अब ‘पंचर वाला’ को ढूंढना पड़ेगा। हमारे जेहन में कभी यह बात आ ही नहीं सकती कि ‘पंचर वाली’ को ढूंढें, क्योंकि पंचर बनाने जैसे तकनीकी काम करते हुए हम कहां सोच पाते हैं कि यह काम लड़कियां भी कर सकती हैं, लेकिन इस पूरी सोच को जयपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर देवथला गांव की लक्ष्मी बानो ने बदल कर रख दिया है। वह कई सालों से अपने पापा की पंचर की दुकान चला रही हैं और अपना और अपनी मां का जीवन निर्वाह कर रही हैं, आइए जानें उनके बारे में विस्तार से।
पिताजी करते थे हर मजहब से प्यार
लक्ष्मी बानो, नाम सुन कर चौंक गई होंगी न मैडम, लक्ष्मी ने मुझसे बातचीत के दौरान बड़े यकीन से यह बात पूछी, क्योंकि लक्ष्मी ने बताया कि उनके बारे में जो भी यह सुनता है चौंकता है। लेकिन फिर लक्ष्मी ने इसके पीछे की अपने पिताजी की सोच के बारे में बताया। लक्ष्मी ने बताया ‘ मेरा जन्म दीपावली के समय हुआ था और मेरे पापा हर धर्म से प्यार करते थे, उन्हें हर मजहब से प्यार था, उनके कई दोस्त हर मजहब से थे, ऐसे में पिताजी ने मुझे ही यही समझाया कि हर धर्म एक समान होता है और इसलिए उन्होंने मेरा नाम लक्ष्मी रखा कि घर में बेटी आई है। मेरे पापा ने कभी फर्क नहीं किया, लड़के या लड़की में, लड़के वाले जो अमूमन काम होते हैं, मुझे वह सब सिखाए। मेरे पापा की पंचर की दुकान शुरू से रही है और मैं उनके साथ दुकान पर जाया करती थी, तो बस देख-देख कर यह काम सीख लिया था।
लोगों का काम है कहना...
लक्ष्मी कहती हैं, मेरे पिताजी से भी सभी कहते थे कि बेटी हुई है, अफसोस की बात है, लेकिन उन्होंने कभी इस बात का अफसोस नहीं किया, बल्कि फक्र किया, लक्ष्मी कहती हैं कि मेरा और पिताजी दोनों का सपना था कि मैं कुछ पढ़ लिख कर बन जाऊं, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर रहा। मेरे पिताजी का देहांत बहुत पहले हो गया और फिर घर की जिम्मेदारी मुझ पर आयी, तो मैंने पंचर की दुकान संभालनी शुरू की। हालांकि पिताजी बीमार रहते थे, उस वक्त से ही मैंने काम करना शुरू कर दिया था, क्योंकि उनका बदन काम करना बंद कर दिया था, उठने-बैठने में उन्हें काफी तकलीफ होने लगी थी। फिर मैंने ही तय किया कि उनका सपोर्ट करूंगी। वह आगे बताती हैं मेरी शादी हुई थी, सफल नहीं रही, कई बातें थी, मैं लेकिन उस पर बातचीत अधिक नहीं करना चाहती हूं। अब भी कुछ लोग मुझ पर हंस कर जाते हैं और कुछ वाहवाही देते हैं। लेकिन मुझे खुद पर गर्व है कि मैं कोई भीख भी नहीं मांग रही, न ही चोरी-चकारी कर रही हूं, मेहनत से मेरा घर चला रही हूं। लक्ष्मी ने बताया कि बड़ी मुश्किल से आमदनी होती है, एक गाड़ी का लोग कितना ही देंगे। 200 से लेकर 300 प्रतिदिन की कमाई है लक्ष्मी की।
कई बार बुरी तरह हुई हूं जख्मी
लक्ष्मी बताती हैं कि पंचर या गाड़ी मरम्मत का काम आसान नहीं है, एक बार तो एक बड़ी गाड़ी का टायर उनके पैर पर चढ़ गया था, तो फ्रैक्चर हुआ। हर दिन कहीं न कहीं चोट तो लगी ही रहती है। कभी हाथ छील जाते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद, लक्ष्मी हिम्मत नहीं हारती हैं और वह लगातार काम करती रहती हैं। वह पिछले 15 सालों से यह काम कर रही हैं और शायद ही कभी ऐसा कोई दिन रहा हो, जब उन्होंने आराम किया हो। वह कहती हैं, मेरी मां घर का सब काम संभालती है। लक्ष्मी कहती हैं कि हमारे मकान की हालत ठीक नहीं है, मरम्मत कराने के लिए बहुत पैसे नहीं हैं। लक्ष्मी ने बताया कि मेरे गांव वाले काफी अच्छे हैं, कभी ताने नहीं कसे, बल्कि हमेशा मेरा हौसला ही बढ़ाया है, लेकिन अनजान लोग ही कभी-कभी बातें सुना जाते हैं, तो थोड़ी तकलीफ तो हो ही जाती है। लक्ष्मी का कहना है कि उनका साथ उनके सगे-संबंधी बहुत अधिक नहीं देते हैं।
लक्ष्मी दूसरों के लिए हौसला हैं, लेकिन वह यह भी कहती हैं कि हर लड़की का सपना पूरा हो और किसी को यह काम करने की जरूरत न पड़े, लेकिन लक्ष्मी साथ ही यह भी कहती हैं कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता है।
वाकई, लक्ष्मी बानो जैसी महिलाएं, उन तमाम महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं, जो जिंदगी से काफी निराश रहती हैं और शिकायती अंदाज में रहती हैं, लक्ष्मी शिकायत पर नहीं, बल्कि खुद के कदम पर काम करना पसंद करती हैं और उनके जज्बे को वाकई में सलाम किया जाना चाहिए।