‘लोगों को यह सोच बदलनी चाहिए कि लड़कियां दिमाग से नहीं दिल से सोचती हैं ‘
हिंदी फिल्मों में हमने जासूसों वाली कहानियां खूब देखी है, किसी भी बात की तह तक पहुंचने का दमखम रखने वाले ही इस क्षेत्र में कुछ बेहतर कर सकते हैं। अमूमन जासूसों की बात आते, जेहन में कोई रुआबदार पुरुषों की ही छवि आती है। कम से फिल्मी दुनिया में यह छाप कई सालों तक दिखाई जाती रही है। लेकिन बॉबी जासूस जैसी फिल्में आने के बाद, एक सोच तो सामने आई है कि महिलाएं इस क्षेत्र में भी आ सकती हैं। ऐसे में रजनी पंडित जैसी महिलाएं, जो भारत की प्रथम महिला जासूस के रूप में मानी जाती हैं, उन्होंने अपनी बुद्धिमता से जो मुकाम हासिल किया है, वो अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। देवी दुर्गा भी बुद्धि की देवी मानी जाती हैं, खासतौर से उनके पांचवें स्वरूप स्कंदमाता भी इसी की प्रतीक मानी जाती हैं। ऐसे में नारी शक्ति को नमन करते हुए आइए जानते हैं रजनी पंडित के बारे में, जो अपनी बुद्धिमानी से ही एक से बढ़ कर एक मसलों को सुलझाने में लोगों की मदद करती हैं।
पिताजी से मिली प्रेरणा
मुंबई के ठाणे में रजनी बताती हैं कि उन्होंने अबतक 80 हजार से अधिक केस सुलझाए हैं। उन्हें जासूसी की प्रेरणा अपने पिताजी से मिली थी, जो कि सीआईडी में थे। वह कहती हैं कि अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई खत्म करने के बाद, उन्होंने एक ऑफिस में एक क्लर्क की नौकरी कर ली थी। नौकरी के दौरान उनके ही कार्यालय में किसी के घर चोरी हुई थी। महिला को इस चोरी का शक अपनी बहू पर था। रजनी ने अपने तरीके से इस केस को सुलझाया, जिसमें पता चला कि चोरी उनकी बहू ने नहीं, बल्कि बेटे ने की थी। उस समय रजनी की उम्र 22 साल की थी। इस केस के बाद ही उन्हें समझ आ गया था कि वह इसी काम के लिए बनी हैं। और धीरे-धीरे अपने दिमाग के खेल से रजनी ने भारत में प्रथम महिला जासूस होने की उपाधि हासिल की। आलम आज यह है कि कई सारे सुप्रसिद्ध लोग उनके पास आते हैं और अपने लिए काम करवाते हैं, जासूसी करवाते हैं। रजनी बताती हैं कि यह सबकुछ काफी कॉन्फिडेंशियल होता है।
सोशल मीडिया के दौर में चुनौती
जब हमने रजनी ने यह जानना चाहा कि अब तो वह मशहूर हैं और लोग उन्हें काफी पहचानने भी लगे हैं, अब अपने काम को वह कैसे कर पाती हैं। रजनी कहती हैं कि हां, आपने सही कहा कि अब तो लोकल ट्रेन में भी जाती हूं, तो बच्चे पहचान जाते हैं, अब पहले से अधिक सतर्क रहना पड़ता है और काफी अलग तरीके से भेष बदलना पड़ता है। रजनी ने यह भी कहा कि अधिक लोकप्रिय होना भी कई बार उनके काम में अड़ंगा डालता है, लेकिन अब उन्होंने अपने साथ कई लड़कियों को भी इसमें ट्रेंड किया है, तो काफी काम वे लोग संभाल लेती हैं।
लड़कियां दिमाग से खुद को कमजोर न समझें
रजनी को अपना एक केस हमेशा याद रहता है, जब उन्होंने एक घर में काम वाली बन कर काम किया था कर छह महीने में केस को सुलझाया था, वह एक मर्डर केस था और उसको सुलझाने के बाद, कई बार उनको कई कॉल धमकियों से भरे आने लगे थे। लेकिन उन्होंने खुद को इसमें से निकाला। रजनी कहती हैं कि अमूमन लड़कियों के बारे में मान लिया जाता है कि वह दिमाग से नहीं दिल से सोचती हैं, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती हूं। मेरी तरह आज कई लड़कियां सफल जासूस हैं और मैं अपने पास ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को शामिल करती हूं, जो अपनी बुद्धि से यह काम कर रही हूं, इसलिए मैं लड़कियों को यही कहना चाहूंगी कि लोगों के बारे में न सोचें और अपनी मेहनत और सूझ-बुझ से इस क्षेत्र में आएं। आएं तो अपना 100 प्रतिशत दें। वरना न आएं।
लोगों की परवाह नहीं मुझे
रजनी कहती हैं कि शुरू में मुझे लोग कहते थे लड़की हो, कैसे कर लोगी, कुछ ऊंच-नीच हो जाएगी तो, कितना सारा खतरा है, लेकिन मैं उनसे यही कहती रही हूं कि मेरी डिक्शनरी में डर शब्द है ही नहीं, मुझे किसी बात से डर नहीं लगता है और मैं जो चाहे वह कर सकती हूं, क्योंकि मुझे खुद पर भरोसा है। रजनी कहती हैं कि लोग उन्हें जेम्स बॉन्ड, शर्लोक, तो कभी चाचा चौधरी बुलाते हैं, लेकिन रजनी कहती हैं कि उन्हें पुरुषों वाली उपाधि नहीं, महिलाओं वाली उपाधि चाहिए, संबोधन भी पुरुष से क्यों की जाती है तुलना, रजनी कुछ ऐसा ही महिलाओं के बीच संदेश पहुंचाना चाहती हैं कि उनके काम को किसी जेंडर में न बांधा जाए और लोग उनको लेडी जेम्स बांड नहीं, बल्कि ओरिजिनल किसी महिला जासूस के नाम की उपाधि दें।