उषा मेहता ने कम उम्र में ही इतिहास रचा था, हाल ही में उनके जीवन पर आधारित ‘ऐ वतन मेरे वतन’ फिल्म आई है। इसके बाद नयी जेनेरेशन में भी उनके बारे में जानने के लिए उत्सुकता बढ़ी है। आइए जानते हैं उनके बारे में विस्तार से।
स्वतंत्रता सेनानी थीं उषा
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उषा मेहता एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने गांधीवादी विचारों के साथ आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया था। उन्हें मुख्य रूप से सीक्रेट कांग्रेस रेडियो की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है। इस रेडियो स्टेटशन की 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में मुख्य भूमिका रही थी। खास बात यह रही थी कि इस रेडियो स्टेशन ने पूरे भारत में गुप्त रूप से सेनानियों को खबरें पहुंचाने में मदद की थी। ब्रिटिश राज्य के खिलाफ उन्होंने हमेशा एक सेनानी के रूप में खुद की पहचान बनायी।
अहम ऐतिहासिक घटना
8 अगस्त को जब गांधी जी करो या मरो का नारा दे रहे थे, उस वक्त उषा ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर तीव्रता से काम किया था। सबसे अहम अगर घटनाओं की बात की जाए, तो उन्होंने अपने शब्दों में स्पष्ट रूप से एक इंटरव्यू में कहा था कि जब प्रेस पर ताला लगा दिया जाता है और सभी समाचारों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो एक ट्रांसमीटर निश्चित रूप से जनता को घटनाओं के तथ्यों से अवगत कराने और विद्रोह का संदेश फैलाने में अच्छी मदद करता है। उनका यह कथन लम्बे समय तक याद रखा जाएगा। उस समय एक भूमिगत रेडियो की व्यवस्था करना इतना आसान नहीं था, क्योंकि उस समय जब अंग्रेजों ने देश भर में सभी रेडियो लाइसेंस को निलंबित कर दिए थे। ऐसे में उषा ने अपनी सूझ-बूझ से काम किया था।
देश के सामने परिवार नहीं
उषा मेहता के लिए जीवन में सबसे अहम देश था। उन्होंने अपने परिवार तवज्जो हमेशा अपने देश को ही दी। उनका जन्म 25 मार्च, 1920 में हुआ था। वह गुजरात के सारस से संबंध रखती थी। उनके पिता जिला स्तरीय न्यायाधीश हरिप्रसाद मेहता थे। उन्होंने कभी शादी नहीं की, क्योंकि वह देश के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर चुकी थीं। उनके पिता ने आंदोलन का हिस्सा बनने से रोका, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी और वे हमेशा आंदोलन का हिस्सा रहीं। उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अपने कदम हमेशा बढ़ाये। 8 साल की उम्र में उन्होंने सबसे पहले एक आंदोलन का हिस्सा लिया था। अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने जो पहला नारा लगाया था, वह था साइमन गो बैक। उषा ने शुरुआती दौर से ही ब्रिटिश वस्तुओं का पुरजोर विरोध किया। साथ ही नमक कर के खिलाफ भी अपनी आवाज को हमेशा बुलंद रखा। गांधी जी के इस नारे को कि या तो भारत को आज़ाद कराएंगे या कोशिश करते हुए मर जाएंगे, उषा के जीवन का उद्देश्य बन चुका था।
पढ़ाई में हमेशा अव्वल
उषा पढ़ाई में हमेशा ही अव्वल रहीं। उन्होंने पीएचडी तक शिक्षा प्राप्त की थी। साथ ही उन्होंने मुंबई ( तब बॉम्बे) विश्वविद्यालय से स्नातक किया था और फिर 30 वर्ष तक विल्सन कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में काम किया। उन्हें वर्ष 1998 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 11 अगस्त 2000 में उनका निधन हो गया।