मुंबई लोकल में घूमते हुए या देर रात लौटते हुए कभी किसी तरह का डर महसूस नहीं किया है, क्योंकि इस बात का इल्म बखूबी होता है कि हमारी सुरक्षा के लिए हरदम पुलिस तैनात हैं, खासतौर से महिला पुलिस तो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए चौकन्ना रहती हैं। क्या आपने कभी सोच कर देखा है कि हर वक्त हमारी सुरक्षा के लिए तैनात रहने वालीं जांबाज महिला पुलिस को हर दिन किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता होगा, आखिर वह कौन सा जूनून है, जो उन्हें रात के अंधेरे से डरने नहीं देता है और हम उनकी निडरता की छांव में बड़े ही इत्मीनान से रात में भी आजाद होकर घूम पाती हैं। एक दिन लोकल ट्रेन में ही सफर करते हुए, एक महिला पुलिस को अपने बेटे से बात करते हुए सुना था कि गणेशोत्सव के दौरान वह तीन दिन तक घर नहीं जा पायी थीं, फिर भी उनके लहजे में कोई शिकायती शब्द नहीं थे, क्योंकि वह अपना फर्ज निभा रही थीं। तो हमने बस यही कोशिश की है कि महिला पुलिस के जीवन की चुनौतियों और खास तौर से नाइट शिफ्ट में वह क्या जोखिम उठाती हैं, उनसे आपको अवगत करा पाएं। तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कुछ महिला पुलिस की जुबानी
बदतमीज लड़कों की भी सिट्टी-पिट्टी गुम रहती है हमारी लाठी देख कर : रीटा रामजस कोरी, पुलिस कॉन्स्टेबल
रीटा बताती हैं कि उनके लिए यह काफी रोमांचित क्षेत्र रहा है। वह अपने बारे में विस्तार से बताती हैं कि मेरा स्वभाव बचपन से ही निडर रहने का ही रहा है। मैं अपने परिवार में भी रात को बेफिक्र होकर निडर होकर किसी को भी जरूरत हो तो चले जाया करती थी कभी भी, तो कभी मैंने रात के अंधरे को रात के जैसा देखा नहीं। फिर मेरे इसी जूनून की वजह से मैं पुलिस लाइन में आयी और मैं मेरे काम की पूजा करती हूं। यहां मैं कई रात के केसेस में भी शामिल हुई हूं, कॉल आता है तो जाती ही हूं, कई बार शराबी पीकर तमाशे करते हैं, तो हम लोग वहां भी जाते हैं। रीटा का कहना है कि कभी भी किसी की इतनी हिम्मत नहीं होती है कि वह हम महिला पुलिस से बदतमीजी करे, वैसे मुंबई शहर में कभी भी डरने की बात नहीं होती है। रीटा वैसे कहती हैं कि हम इतने अलर्ट रहते हैं रात में कि अगर किसी महिला या लड़की का कॉल आ गया कि रिक्शा वाला परेशान कर रहा है, तो हम फौरन पहुंच जाते हैं। लेकिन रीटा को उस वक्त बहुत गुस्सा आता है, जब लोग पुलिस के साथ मजाक करते हैं। वह कहती हैं कि हमें फोन आता है कि मेरे बच्चे की बात है, आपलोग जल्दी आइए। फिर जब हम वहां पहुंचे तो बोलती है कि मेरा बेटा खाना नहीं खा रहा था और वह सिर्फ पुलिस से डरता है, इसलिए आपको कॉल किया, तब हम उनको क्या बोलें, जो हमारे सीरियस काम को मजाक बनाने लगते हैं। वह आगे कहती हैं, मैंने अकेले दो से चार नाकाबंदी भी की है, उसमें गाड़ी भी चेक करनी पड़ती है, इसलिए डर जैसी मुझे कोई बात नहीं लगती है। मैंने शहर से बाहर भी टीम के साथ जरूरत पड़ने पर किडनैप या चोरी का केस सुलझाने जाती हूं। हमारी गाड़ी का भी नाम ही निर्भय, मतलब बिना डर के, फिर मुंबई पुलिस ने 'मोबाइल 5' गाड़ी की सुविधा दी हुई है, जिसमें हम लेडिज पुलिस भी किसी मुसीबत में फंसे तो उन तक मदद पहुंचे। इसमें ड्राइवर भी महिला ही होती हैं। हमारा बस एक ही उद्देश्य है कि हम लोगों के मन से डर हटा सकें।
रीटा वह वाकया कभी नहीं भूलती हैं, जब देर रात उन्हें एक कॉल आया था कि लालबाग ब्रिज पर तीन लड़कों ने शराब पीकर एक्सीडेंट कर लिया था, मेरी गाड़ी वहीं नजदीक में थी, तो मैं भाग कर गयी, तो दो लड़के बुरी तरह से जख्मी थे, तीसरा घबराया -सा बैठा हुआ था, उस दिन मैं एक ही लेडीज स्टाफ थी अपनी टीम में, फिर मैंने ही उनको स्ट्रेचर पर लिटाया, उन्हें हॉस्पिटल ले जाकर इलाज कराया था। वह एक चैलेंजिंग दिन था।
परिवार के साथ पर्व कब मनाया है, याद नहीं है, क्योंकि ड्यूटी पर होती हूं : माया धागे, ट्रैफिक पुलिस व पुलिस कॉन्स्टेबल
माया धागे पिछले 16 साल से पुलिस के क्षेत्र में हैं और उन्हें शुरू से ही ऐसा कुछ करने का जूनून रहा है। वह कहती हैं मैं बचपन से ही स्पोर्ट्स खूब खेला करती थी और सोशल वर्क भी बहुत करती थी, ऐसे में मुझे पुलिस की वर्दी से बेहद प्यार हो गया था, शारीरिक रूप से मैं हमेशा से ही फिट रही, तो मैं कॉन्स्टेबल की परीक्षा पास कर ली और इस काम में आ गयी वह आगे कहती हैं वडाला में जहां मैं थी, वहां काफी झुग्गी-झोपड़ी रहे हैं, ऐसे में आये दिन वहां, चोरी, किसी का घर तोड़ देना, छेड़छाड़ का केस, ड्रग्स लेने वाले बदमाश ऐसे कई केस आते हैं और वे लोग को हैंडल करना काफी कठिन रहता है, लेकिन हमारे लिए हर दिन तो चुनौती रहती है, हम करते ही हैं, स्टाफ कम रहे या ज्यादा, जब ड्यूटी पर बुलाया गया तो जाना ही है, फिर दिन क्या रात क्या। वह आगे कहती हैं कि कई बार मर्डर केस हुए तो, तीन दिनों तक घर जाना नहीं हो पाता है। माया की चार साल पहले ही शादी हुई है, वह कहती हैं कि जब बैचलर थी तो तीन दिन भी नहीं जाती थी, फर्क नहीं पड़ता था, अब परिवार है तो लगता है कि परिवार के साथ भी रहूं, तो अभी परिवार और काम को मैनेज करना भी हर दिन का एक चैलेन्ज हैं, लेकिन मेरे पति सपोर्टिव हैं। माया कहती हैं कि त्योहारों के सीजन में तो उनका काम और अधिक होता है और उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने कब अपने परिवार के साथ आखिरी बार कोई पर्व मनाया हो, क्योंकि वह अपने काम पर तैनात रहती हैं। 25 साल से कम उम्र के होते हैं, हैण्डंल करना होता है, एक केस नहीं होता है, दो तीन केस आते हैं, स्टाफ कम होते हैं, तो काफी करना होता है। अभी शादी हुई है, चार साल पहले किया है, अब घर की जिम्मेदारियां भी हैं। क मर्डर केस हुआ था, वहां मैं सुबह से ही थी, फिर रात के एक बज गए थे। उसके बाद दें में ड्यूटी है, कभी कभी २४ घंटे होता है। कभी कभी नोंक-झोंक काफी होता है, मेरा मोटिव था, मैं स्पोर्ट्स पर्सन रही हूँ, मेरे माइंड में था कि मैं सोशल वर्क के साथ यह सब करूँ, ऑफिसर पर, फिर मैं कॉन्स्टेबल में आ गयी। फेस्टिवल के समय भी काफी कुछ होता है टफ होता है। वीआईपी का बंदोबस्त होता है, ड्यूटी पर वापस आओ। कम हॉलीडे मिलते हैं और अपना त्यौहार तो परिवार के साथ मिलते नहीं हैं। 16 साल हो चुके हैं यह काम करते हुए।
कोशिश यही होती है कि निर्दोष के साथ कोई अन्याय न हो : नीता जितेंद्र घाडगे, पुलिस कॉन्स्टेबल
नीता लगभग 14 साल से पुलिस प्रशासन के क्षेत्र में हैं। वह कहती हैं, उन्हें उनके आस-पड़ोस के लोग काफी कहा करते थे कि पुलिस क्षेत्र में जाने की क्या जरूरत है, कुछ और काम कर ले, लेकिन उन्हें हमेशा से अपनी वर्दी से प्यार रहा है। वह बताती हैं कई बार लड़के नहीं, जब लड़कियां गलत करती हैं, तो उनको सबक सिखाना कठिन हो जाता है, उनको लगता है कि कई बार इमोशनल होकर वह लड़के को गलत केस में फंसा देंगी, तो हमारी ड्यूटी यही होती है कि किसी भी हाल में निर्दोष के साथ कुछ न हो। नीता आगे बताती हैं कि एक लड़की का केस आया था, वह काफी कठिन था, एक लड़की लड़की के प्यार में पड़ी थी और दूसरी लड़की को बुरी तरह से परेशान किया था, उस लड़की का दिमाग सही रास्ते पर लाने में काफी समय लग गया था।
मैंने मिसिंग होने वाली लड़कियों के भी केस सुलझाए हैं, इनके अलावा प्यार के चक्कर वाले मामले भी होते हैं, ड्रिंक करने वाले, ड्रग लेने वाले को भी हम अच्छी तरह से सबक सिखाते हैं। कई बार ऐसा होता है कि कुछ लाचार होते हैं और फिर उनको हमारी जरूरत होती है, तो हम उनको अस्पताल भी ले जाते हैं। नीता कहती हैं कि उनको हमेशा से पुलिस के काम से प्यार था, इसलिए अपने फर्ज को निभाने के लिए हमेशा तैनात रहती हैं। वह कहती हैं कि उनका उद्देश्य बस यही होता है कि लड़कियां और उनके सामने जो भी केस आएं, निर्दोष को छोड़ दिया जाए और जिसने जुर्म किया है, वह सामने आ पाए।