घरेलू महिलाओं को लेकर यह कहा जाता है कि वह हमेशा से अपनी सेहत को अनदेखा करती हैं। साथ ही वह कई तरह की बीमारियों से भी जूझती रहती हैं। काम के दबाव के कारण वह खुद की सेहत से दूरी बना लेती हैं। इसे लेकर हर साल किसी न किसी तरह का अध्ययन किया जाता रहा है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं घरेलू महिलाओं से जुड़े कुछ जरूरी अध्ययन के बारे में, जिससे सभी महिलाओं को अवगत जरूरी होना चाहिए। आइए जानते हैं विस्तार से।
घर से बाहर नहीं निकलती हैं महिलाएं
द प्रिंट डॉट इन की एक खबर अनुसार साइंस डायरेक्टर की पत्रिका ट्रैवल बिहेवियर एंड सोसायटी अध्ययन को जेंडर गैप इन मोबिलिटी आउटसाइड होम इन अर्बन इंडिया नाम से प्रकाशित किया गया। इस अध्ययन में पाया गया है कि शहर में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि वे दिन में एक दफा अपने घरों से बाहर नहीं निकलती हैं। कई सारी ऐसी महिलाएं हैं, जो घरेलू जिम्मेदारी को घर के अंदर रहकर निभा रही हैं और काम के लिए घर से बाहर कदम नहीं रखती हैं। इस अध्ययन में पाया गया है कि 47 प्रतिशत महिलाओं ने दिन में कम से कम एक बार अपने घर से नहीं निकलने के बारे में बात की है, वहीं पुरुष की गिनती 87 प्रतिशत के करीब है। यही वजह है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष घर पर काफी कम रहते हैं। इस अध्ययन में यह भी परिणाम सामने आया है कि महिलाएं इस वजह से घर से बाहर नहीं निकलती हैं, क्योंकि उनके पास घर से बाहर आने के लिए कोई मजबूत वजह नहीं है।
महिलाओं में कैंसर से मृत्यु की दर बढ़ी
कुछ समय पहले कैंसर से बढ़ते मृत्यु के ग्राफ को समझने के लिए एक अध्ययन किया गया, इसमें यह जानकारी सामने आयी है कि महिलाओं में कैंसर से मृत्यु की दर 0.25 प्रतिशत तक बढ़ी है, वहीं भारत में पुरुषों में कैंसर की मृत्यु दर में 0.19 की प्रतिशत की कमी आयी है। ज्ञात हो कि इस अध्ययन को करने की वजह भारतीय लोगों में कैंसर के खतरे को जानना था। यह चिंताजनक है कि साल 2000 से 2019 के बीच महिलाओं में मृत्यु का जोखिम अधिक पाया गया है, जो कि चौंकाने वाला है।
64 फीसदी महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती है
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि देश में 64 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जो कि सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती है। यह चौंकाने वाला है कि 50 फीसदी महिलाएं केवल कपड़े का प्रयोग करती हैं, वहीं 15 फीसदी महिलाएं देसी नैपकिन का प्रयोग पीरियड्स के समय करती हैं। इस अध्ययन में पाया गया है कि 78 फीसदी महिलाएं केवल पीरियड्स में साफ तरीके का इस्तेमाल करती हैं। यह भी जान लें कि बिहार, मध्य प्रदेश और मेघालय में महिलाएं बचाव के लिए देसी, सैनिटरी के साथ टैम्पोन का इस्तेमाल करती हैं।
महिलाओं में मां बनने की क्षमता घटी
साइंस जर्नल नेचर की अध्ययन अनुसार 35 फीसदी महिलाएं 30 की उम्र तक मां बनी हैं, हालांकि साल 2019-2021 में इस प्रतिशत में कमी आयी है। इससे पहले 40 से 45 साल की उम्र में मां बनना अधिक मुमकिन माना जाता था। अब यह ग्राफ घटकर 30 से 35 की उम्र के बीच आ गया है। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि महिलाओं में फर्टिलिटी उपचार के शुरू और पूरा होने के बीच बच्चे के जन्म में देरी का कारण हो सकता है। यह भी माना गया है कि पहले की तुलना में महिलाएं ज्यादा उम्र में पहली बार मां बनती थीं।
50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं स्वास्थ्य समस्या से जूझ रही हैं
महिलाओं की सेहत को लेकर एक सर्वेक्षण किया गया है। इस अध्ययन में पाया गया है कि 51 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जो कि पीसीओएस, पीरियड्स से जुड़ी बीमारियों के साथ कई अन्य बीमारियों का सामना कर रही हैं। इस अध्ययन में 21 प्रतिशत के करीब महिलाओं ने इसे स्वीकार भी किया है। माना गया है कि महिलाओं पर बढ़ती हुई जिम्मेदारी, महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या और शिक्षा के बढ़ते हुए स्तर को जिम्मेदार माना गया है। बता दें कि यह अध्ययन 3 हजार महिलाओं से किए गए सवाल पर आधारित है।
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