नागार्जुन को एक युग कहा जाता रहा है। साहित्य में उन्हें यही ख्याति मिली है कि उन्होंने कविता और कहानियों के एक युग को साहित्यकार और साहित्य प्रेमियों के समक्ष बखूबी तरीके से पेश किया है। नागार्जुन एक घुमक्कड़ किस्म के व्यक्ति थे। परिवार में आर्थिक अभाव होने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई के प्रति अपना संघर्ष जारी रखा। नागार्जुन ने अपने काव्य में देश-संसार, मानव जाति की भावना, संघर्ष और सादगी को उल्लेखनीय तरीके से दिखाया है। साहित्यकारों का कहना है नागार्जुन के काव्य में देश प्रेम के साथ श्रमिक वर्ग के लिए सहानुभूति और संवेदनशीलता को विशेष स्थान दिया है। आइए जानते हैं विस्तार से।
नागार्जुन के लेखन की विशेषताएं
नागार्जुन का लेखन कई साहित्यकारों के लिए लिखने और पढ़ने की पाठशाला के तौर पर सतत कार्य करता रहा है। उन्होंने हमेशा अपनी रचनाओं में पीड़ित और अत्याचार सहने वाले लोगों के दुख को दिखाया है और इसके साथ ही अपने लेखन के जरिए उनके प्रति सहानुभूति भी दिखाई है। साथ ही उन्होंने अपने लेखन से यह भी हर बार बताया है कि कैसे अनीति और अन्याय का विरोध करना चाहिए। उनका काव्य लेखन इसकी प्रेरणा बनता है कि कैसे हर उस व्यक्ति को अन्याय के खिलाफ आवाजा उठानी चाहिए, जो इसका सामना कर रहा है, साथ ही उन लोगों को भी अन्याय के खिलाफ अपनी आवाजा बुलंद करनी चाहिए, जो अन्याय को होते हुए देखकर चुपचाप खड़े हैं और अपनी भागीदारी मौन के साथ दर्शा रहे हैं, जो कि सरासर गलत है। शायद उनकी इसी सोच के कारण उन्हें तीखा और सीधा आघात करने वाले व्यंगात्मक कवियों में गिना जाता रहा है। नागार्जुन कभी भी अपनी आवाज उठाने में पीछे नहीं हटे हैं, इसमें उनका साथ दिया है, उनके व्यंगात्मक लेखन शैली ने। नागार्जुन की भाषा शैली नाजुक रही है। अपनी बातों को उन्हें जन मानस तक पहुंचाना था, इस वजह से उन्होंने अपनी भाषा और लेखन शैली को कभी भी मुश्किल शब्दों से नहीं नवाजा, बल्कि अपनी भाषा शैली को हमेशा से सरल और स्पष्ट भाषा के मोती रूपी शब्दों से बुना है। शुद्ध खड़ी बोली के साथ उन्होंने एक या दो बार अपनी रचनाओं में अरबी और फारसी के शब्दों का इस्तेमाल किया है। नागार्जुन की प्रमुख काव्य रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं, जैसे ‘आंखें’, ‘तुमने कहा था’, ‘तालाब की मछलियां’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’,‘दीपक’, ‘रतिनाथ की चाची’,‘नयी पौध’, ‘हजार-हजार बांहों वाली’ और आदि रचनाएं प्रख्यात और प्रमुख हैं।
नागार्जुन के लेखन की खूबी
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने हिंदी, मैथली और संस्कृत में काव्य रचनाओं के साथ उपन्यास, कहानी और निबंध में भी अपनी कलम की खूबी का परिचय दिया है और प्रख्यात हुए हैं। इसके अलावा उन्होंने कई सारी पत्रिकाओं का भी संपादन किया है। यह भी जान लें कि अपनी दमदार भाषा शैली और निडर लेखनी के कारण उन्हें कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में बात की जाए, तो ‘बादलों को घिरते देखा’, ‘अकाल और उसके बाद’, ‘बहुत दिनों के बाद’, ‘कालिदास’,’हरिजन-गाथा’, ‘गुलाबी चूड़ियां’, ‘रतिनाथ की चाची’ और ‘बलचन नाम’ से लोकप्रिय उपन्यास भी शामिल हैं। दिलचस्प यह है कि सबसे पहले नागार्जुन ने मैथिली में ‘वैदेंह’ नाम से उपन्यास लिखना शुरू कर दिया। साल 1930 में मैथिली भाषा में उनकी लिखी हुई पहली कविता छपी। देखा जाए तो नागार्जुन ने अपने जीवन में कई सारी यात्राएं की हैं। इसी वजह से उन्होंने अपने अनुभव को अपनी मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ नाम से रचनायें की। यह भी जान लें कि उन्होंने संस्कृत और बांग्ला में भी काव्य में कई सारी रचनाएं की हैं। साल 1982 में उन्होंने आसमान में ‘चंदा तेरे नाम से’ कहानी संग्रह की रचना की। नागार्जुन के लेखन के कारण उनके साहित्य को कई सारे सम्मान से नवाजा गया है। उन्हें उत्तर प्रदेश शासन द्वारा भारत भारती पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन द्वारा मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार और बिहार सरकार द्वारा सम्मानित और हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा शिखर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।
नागार्जुन का साहित्य सागर
नागार्जुन ने साहित्य में बिना रुके हुए लगातार अपनी रचनाओं का सागर संसार में फैलाया है। नागार्जुन ने बाल साहित्य में भी अपनी लेखनी का परिचय दिया है। उन्होंने साल 1948 में ‘कथा मंजरी भाग 1’, ‘कथा मंजरी भाग 2’, मर्यादा पुरुषोत्तम राम और विद्यापति की कहानियां लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने मैथिली में भी रचनाएं लिखी हैं। उन्होंने मैथिली भाषा में कविता संग्रह ‘चित्रा’, ‘पत्रहीन नग्र गाछ’, ‘पका है यह कटहल’, ‘पारो उपन्यास’ और ‘नवतुरिया’ भी मैथिली में रचित उनकी लोकप्रिय रचनाएं हैं।
नागार्जुन की रचनाओं में ग्रामीण जीवन
नागार्जुन ने अपनी रचनाओं में ग्रामीण जीवन को बखूबी बयान किया है। कई जगह पर उन्हें ग्रामीण लोक कवि और रचनाकार की भी उपाधि दी गई है। यह भी जान लें कि नागार्जुन ने भारतीय लोक जीवन की वास्तविकता को अपनी लेखनी में दिखाया है। अगर आप नागर्जुन के साहित्य को पढ़ते हैं तो आप पायेंगे कि उनके सारे पात्र एक बड़ी लड़ाई लड़ते हुए देखे जाते हैं, जो कि एक लंबे संघर्ष के बाद अपना अस्तित्व स्थापित करते हुए दिखाई देते हैं। नागार्जुन ने अपनी साहित्य यात्रा को विशालकाय बनाने के बाद अपनी जीवन यात्रा को 5 नवंबर 1998 को समाप्त कर दिया। अपने जीवन सफर में उन्होंने हमेशा यही दर्शाया कि जितनी सहजता से वह अपनी लेखनी में समाज और दुनिया का चेहरा दिखा देते हैं, उतना ही सरल और उच्च विचार से भरा उनका निजी जीवन भी रहा है। न लेखनी में न निजी जीवन में उन्हें किसी भी प्रकार का दिखावा पसंद रहा है। यही वजह है कि हिंदी उपन्यास साहित्य में नागार्जुन का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। साफ शब्दों में समझा जाए तो, नागार्जुन पीड़ित और शोषित लोगों के लिए मानवता के सजग प्रहरी रहे हैं। नागार्जुन की ऐसी ही एक कविता इस बात का उदाहरण हैं, जिसे हम यहां पर प्रस्तुत कर रहे हैं, इससे आप खुद ही पहचान सकती हैं कि नागार्जुन ने किस तरह ग्रामीण जीवन को अपनी कविता लेखनी में बयान किया है। उनकी यह कविता इस प्रकार है कि…
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास,
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त,
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त
दाने आये घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आंखे कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलायी पांखें कई दिनों के बाद