बच्चों के लिए हिंदी नाटक ठीक इसी तरह है, जिस तरह उन्हें नवजात बच्चे को चम्मच से दूध पिलाना। जी हां, बचपन में बताई और सुनाई गई हर एक बात किसी भी बच्चे के लिए सीख के समान होती है। बच्चों के लिए स्कूल की कहानी की किताब भी सीख की तरह काम करती है, इसके साथ ही बच्चों के लिए हिंदी नाटक भी जीवन की कई बड़ी सीख दे जाते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं बच्चों के लिए हिंदी नाटक के बारे में।
बाल कथा साहित्य
बच्चों के लिए हिंदी नाटक का मतलब बाल कथा साहित्य से है। जहां पर बच्चों की उम्र को ध्यान में रखते हुए साहित्य लिखा जाता है। बाल साहित्य में कई सारी प्रेरक कहानी और कविताओं का संग्रह होता है और बच्चों के लिए हिंदी नाटक इसी से जुड़ा होता है। बच्चों के लिए नाटक मंनोरजंन के साथ जीवन की सच्चाईयों से परिचित कराने का मकसद भी होता है। बच्चों को लेकर यह माना जाता है कि वे जैसा पढ़ेंगे और देखेंगे अपने जीवन को उसी की तरह ढालने की कोशिश करेंगे। बच्चों का जीवन पानी के समान होता है, आप उसे जिस भी आकार में ढालना चाहें, वे उस तरह ढल जाते हैं। नाटकों के माध्यम से बच्चों को शिक्षा प्रदान करके उनके चरित्र का निर्माण कर सकते हैं। कई साहित्यकार ऐसे हैं, जो कि बच्चों की स्थिति और भाषा के अनुसार बाल साहित्य का निर्माण करते हैं। बाल नाटक का निर्माण किया जाता है।
नाटक के माध्यम से शिक्षा और संचार का प्रसार
बच्चों के बीच नें नाटक के माध्यम से शिक्षा का संचार और प्रसार किया जा रहा है। साथ ही विद्यालय और कॉलेज में होने वाले नाटक बच्चों को पूरी तरह से शिक्षित करने के साथ उनमें आत्मविश्वास की भी बढ़ोतरी करता है। नाटक के जरिए बच्चों को संपूर्ण शिक्षा मिलती है, उन्हें एक कहानी के जरिए जीवन में आगे बढ़ने की सीख दी जाती है। हिंदी नाटक बच्चों की समस्या का समाधान करने के साथ उनमें नेतृत्व करने का कौशल देता है और साथ उन्हें एक तरह का सहयोग देता है, जो जीवन में उन्हें सही दिशा दिखाने का कार्य करती हैं। हिंदी नाटक हिंदी फिल्मों की तरह बच्चों के दिमाग और मन पर कार्य करती हैं, जहां से कोई न कोई जरूरी संदेश अपने साथ बच्चे लेकर आते हैं। एक सही प्रेरणादायक नाटक बच्चों को बेहतर भविष्य बनाने में भी सहायक होता है। एक प्रेरणादायक नाटक के जरिए बच्चों का मानसिक विकास होता है।
बचपन में नाटक खेलने के फायदे
बच्चों को आपने कई बार घर-घर खेलते या फिर किसी न किसी टीवी और फिल्म के किरदार की नकल करते हुए जरूर देखा होगा। अपने बच्चों में दिखने वाली इसी कौशल का प्रयोग बच्चों के मानसिक विकास को अग्रसर करता है। बचपन में नाटक खेलना बच्चों के विचारों की खोज करने और विभिन्न भूमिकाएं आजमाने का रास्ता बनाता है। किसी भी भाषा के नाटक का हिस्सा बनते समय बच्चे अपनी भाषा पर काम करते हैं। उनकी बोलचाल की भाषा में सफाई आती है, साथ ही भाषा पर उनकी पकड़ भी बनती हैं। नाटक बच्चों की रचनात्मक क्रिया को बढ़ाते हैं, उनके सोचने की शक्ति बढ़ती है। नाटक के जरिए बच्चे नए विचारों से मुलाकात करते हैं, नए विचारों की खोज भी करते हैं। साथ ही किसी भी समस्या का समधाना करने के लिए अपनी रचनात्मक शक्ति का उपयोग करने के लिए सक्षम होते हैं। नाटक में भागीदारी बच्चों को लोगों से जुड़ने का अवसर देती है और अपने विचार रखने का अवसर भी प्रदान करती है। इससे बच्चे विचारों को साझा करने के साथ सहयोग करना भी सीखते हैं। नाटक के जरिए बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखते हैं। किसी भी तरह खुद को किसी भी तरह के विचारों के बंधन में बांधते नहीं है।
बच्चों के लिए लोकप्रिय हिंदी नाटक
बच्चों के लिए लोकप्रिय हिंदी नाटक की प्रेरणा बाल साहित्य से मिलती है। हिंदी में बाल साहित्य का एक बड़ा माध्यम पंचतंत्र की प्रेरणादायक कहानियां रही हैं। महाराणा प्रताप का घोड़ा, रानी लक्ष्मीबाई प्रेरणादायक हिंदी नाटक और हिंदी साहित्य के जरिए मौजूद है। इसके अलावा कई हिंदी के लोकप्रिय लेखक रहे हैं, जैसे सोहनलाल द्विवेदी, रामधारी सिंह दिनकर और द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी आदि प्रमुख नाम रहे हैं। इन सभी के लिखे गए हिंदी बाल साहित्य पर स्कूलों में नाटकों का मंचन किया जाता है। 26 जनवरी और 15 अगस्त के खास मौके पर विशेष तौर पर देशभक्ति विषयों पर आधारित नाटकों का मंचन कई स्कूलों में किया जाता है। पर्यावरण का महत्व समझाने के साथ सेहत पर भी कई तरह के नाटक बच्चों द्वारा बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। लड़कियों की शिक्षा के साथ भेदभाव और एकता पर भी कई तरह के बाल हिंदी नाटक का आयोजन किया जाता है।
बच्चों के लिए हिंदी नाटकों का आयोजन जरूरी
बच्चों के लिए हिंदी नाटकों का आयोजन इसलिए जरूरी है, क्योंकि इसी के जरिए उन्हें उन नई चीजों से अवगत कराया जाएगा, जो कि उनके लिए सबसे जरूरी होती हैं। स्कूलों में भी बच्चों को नाटकों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। खासतौर पर बच्चों को उन नाटकों का हिस्सा बनाया जा रहा है, जो कि उनके लिए प्रेरणादाक रहते हैं। खासतौर पर रामकृष्ण परमहंस, शिवाजी महाराणा प्रताप, महात्मा गांधी, नेहरू, सुभाषचद्र बोस, इंदिरा गांधी और मदर टेरेसा से लेकर पशु, फल और सब्जियों का किरदार भी बच्चे निभाते हुए दिखाई देते हैं। साथ ही यह भी जान लें कि किसी भी तरह के नाट्य सिद्धांत में काफी सहजता से सामने वाले व्यक्ति को अपना लेते हैं और बच्चों के साथ किसी भी नाटक का मंचन करते वक्त उससे आसानी से जोड़ सकता है।
बच्चों के लिए नाटकों का बदला रूप
बच्चों के लिए बदलते वक्त के साथ नाटकों का भी रूप बदला हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बच्चों के लिए खास तौर पर रंगमंच संबंधी कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। बच्चों को नाटक दिखाने के साथ रंगमंच की दुनिया से जोड़ते हुए बच्चों की रचनात्मक प्रतिभा को सामने लाने का प्रयास सतत किया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाल रंगमंच किसी भी मौलिक प्रतिभा को विकसित नहीं करता है, बल्कि समाज के साथ संस्कृति को जोड़ने में भी सहायक भूमिका निभा रहा है। इस वजह से कहीं न कहीं बालकों में सामाजिक सहयोग के साथ आत्मविश्वास और अनुशासन भी जाग्रत हो रहा है। रंगमंच के कई जानकारों का मानना है कि आजादी के पहले हिंदी बाल नाटकों की एक संपन्न परंपरा दिखाई दी है। उस दौरान बच्चों के लिए काफी अच्छे नाटक लिखे जाते थे, लेकिन वक्त के साथ बच्चों के लिए नाटक फिर चाहे वो किसी भी भाषा में क्यों न हो, उसे कम लिखा जाने लगा है। दूसरी तरफ यह भी देखा गया है कि बच्चों के लिए नाटक लिखे जाते हैं, लेकिन उनका मंचन करना कई बार मुश्किल हो जाता है। लिखी हुई सामग्री अपने पाठकों की तलाश कर लेती हैं, लेकिन लिखी हुई सामग्री अपने दर्शकों का इंतजाम बहुत मुश्किल कर पाती है। यही वजह है कि ज्यादातर लेखक नाटक के लेखन से दूर होकर कविता, कहानी और उपन्यास की तरफ अपने कदम को आगे बढ़ा रहे हैं। अगर पुराने दौर को याद किया जाए, तो आजादी से पहले बाल नाटककारों जैसे कि भारतेन्दु, राजा लक्ष्मण सिंह और रामनरेश त्रिपाठी ऐसे कई नामों का उल्लेख किया गया है, वहीं आजादी के कई साल बाद ऐसे बाल नाटक लिखे जाने लगे हैं, जो कि बच्चों को अभिनय का अवसर देती है और मुख्य तौर पर बच्चों की समस्या पर आधारित होती है। आजादी के बाद नाटककारों में केशवचंद्र वर्मा, प्रफुल्लचंद्र ओझा, कमलेश्वर चिरंजीत, हरिकृष्ण देवसरे, रेखा जैन, देववती शर्मा, मंगल सक्सेना, शीला गुजराल और सरस्वती कुमार आदि का नाम शामिल है, वहीं बीते वक्त के साथ बाल रंगमंच बच्चों के लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का खुला मंच बन गया है, जहां बालक अपने मन मुताबिक अभिनय के साथ नाच और गाने की क्रिया भी आजादी के साथ कर सकते हैं।