लोगों के लिए लिखना और उनके हक में खड़े होना हमेशा से लोकप्रिय लेखिका महाश्वेता देवी की रचनाओं की विशेषता रही हैं। उनकी लेखनी में ऐसा जादू रहा है कि उनकी कई रचनाओं पर फिल्म भी बन चुकी है। महाश्वेता देवी की रचना ‘रुदाली’ और’ हजार चौरासी की मां’ पर फिल्म काफी साल पहले बनाई जा चुकी है। उल्लेखनीय है कि महाश्वेता देवी ने सबसे अधिक बांग्ला भाषा में लेख लिखा है। उनकी कई सारी ऐसी रचनाएं हैं, जिन्हें बांग्ला से हिंदी में रूपांतरण किया जा चुका है। खास तौर पर ‘आदिवासी कथा’, ‘ईट के ऊपर ईंट’, ‘उम्रकैद’, ‘झांसी की रानी’, ‘नटी’, ‘बनिया बहू’, ‘मास्टर साब’ और ऐसी कई रचनाएं शामिल हैं। आइए विस्तार से जानते हैं उनकी कुछ विशेष रचनाओं के बारे में, जो कि काफी लोकप्रिय और प्रेरणादायी रही हैं।
1084 की मां
ज्ञात हो कि महाश्वेता देवी की यह सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली कृतियों में से एक है, जो बंगाल में नक्सली आंदोलन के चरम के दौरान लिखी गई थी। यह उपन्यास एक मां के आघात पर केंद्रित है, जो कि एक सुबह जब जागती है, तो उसे विनाशकारी समाचार मिलता है कि उसका बेटा मुर्दाघर में मृत पड़ा है और उसके नक्सली बनने के निर्णय को समझने के संघर्ष पर यह कहानी केंद्रित है।
स्तन दाता
महाश्वेता देवी की यह रचना लघु कथाओं का एक संग्रह है, जो कि सौंदर्य और मातृत्व के प्रतीक से अधिक है। इसके साथ ही यह एक तरह से देखा जाए, तो शोषणकारी सामाजिक व्यवस्था और प्रतिरोध के हथियार के तौर पर भी इस कहानी को प्रस्तुत किया गया है। देखा जाए, तो स्तन दाता महाश्वेता देवी की सबसे लोकप्रिय लघु कहानी है। यह कहानी एक नई तरह की स्वतंत्रता और नारीवाद का प्रदर्शन करती है, जो उसे उसी पितृसत्ता में भागीदार बनाते हुए दर्शाता है।
झांसी की रानी
महाश्वेता देवी की यह रचना इतिहास के पन्नों से आती है। माना गया है कि यह पुस्तक ऐतिहासिक दस्तावेजों और लोक कथाओं के साथ रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का पुनर्निर्माण करती है। महाश्वेता द्वारा लिखित झांसी की रानी की जीवनी मूल रूप से 1956 में बांग्ला में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद इसका अंग्रेजी अनुवाद किया गया। इस किताब में दिखाया गया है कि कैसे रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ अपने सैनिकों का नेतृत्व किया था।
द्रौपदी
इस कहानी को महाश्वेता देवी की सबसे लोकप्रिय लघु कथाओं में से एक है। महाश्वेता देवी ने आदिवासी महिला की कहानी को प्रस्तुत किया है, जो कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ ग्रामीण प्रतिरोध का हिस्सा है। यह कहानी लैंगिक भेदभाव और हिंसा के साथ राजनीतिक प्रतिरोध और 20 वीं सदी के अंत के भारतीय समाज की स्थिति की पड़ताल करती है।
डस्ट ऑन द रोड
इस किताब में महाश्वेता देवी ने 1970 के दशक के उत्तरार्ध में महाश्वेता देवी ने इस किताब के जरिए एक विश्लेषण लिखा है कि कैसे बिहार और पश्चिम बंगाल के हाशिए पर रहने वाले आदिवासियों और गरीब विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। खास तौर पर डस्ट ऑन द रोड में महाश्वेता के सक्रिय गद्य को संग्रहित किया गया है। उनकी इस किताब में अंग्रेजी अखबारों में छपे हुए उनके कई सारे लेख शामिल किए गए हैं।