हिंदुस्तान में जब भी यात्रा साहित्य की बात की जाती है, साहित्यकारों के रूप में सबसे अधिक राहुल सांकृत्यायन का नाम सर्वाधिक लोकप्रिय है। अमूमन महिला साहित्यकारों की चर्चा यात्रा पर लिखे गए उपन्यास, किताबें और यात्रा वृत्तांत नहीं होती है, लेकिन भारत की ऐसी कई महिला साहित्यकार भी हैं, जिन्होंने कमाल के संस्मरण यात्रा पर लिखे हैं। आइए जानते हैं कि अपनी नजर से यात्रा किस रूप में देखी है इन महिला लेखिकाओं ने।
शिवानी
शिवानी भी जानी मानी लेखिका हैं और उन्होंने भी ‘यात्रिक’ नामक अपने उपन्यास में यात्रा वृतांत को दर्शाने की कोशिश की है, इसमें उन्होंने मार्क्सवादी रूस और पश्चिमी विचारधारा के केंद्र इंग्लैण्ड को बैकड्रॉप में रखते हुए अपनी उपन्यास को नयी दिशा दी है।
रमणिका गुप्ता
रमणिका गुप्ता ने ‘लहरों की लय’ में अपनी विदेशी यात्राओं के बारे में लिखा है, जिसमें उन्होंने वर्ष 1975 से 1994 तक के 30 वर्षों के दौरान किये गए यात्रा अनुभवों को अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है। इसमें उन्होंने मेक्सिको, अमेरिका, कनाडा, बर्लिन, बेल्जियम, फ्रांस, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडन और ऐसी कई जगहों के बारे में बताया है। साथ ही इसमें उन्होंने आदिवासी जीवन में स्त्रियों की क्या स्थिति है, उसे भी दर्शाया है। लेखिका ने इन सभी देशों के संगीत, नृत्य, इतिहास, साहित्य, कला और जीवन के बारे में नजदीक से समझने की कोशिश की है।
मृदुला गर्ग
मृदुला गर्ग हिंदी साहित्य का बहुत ही बड़ा नाम रही हैं, उन्होंने अपने यात्रावृत्त ‘कुछ अटके कुछ भटके’ में देश विदेश की यात्राओं का वृतांत दिया है, इसमें उन्होंने सूरीनाम, जापान, सिक्किम, केरल, असम, तमिलनाडु और दिल्ली की यात्राओं के बारे में विस्तार से लिखा है। इस किताब को पढ़ने के बाद आपकी एकदम से चाहत हो जायेगी कि आप यात्राओं पर निकल जाएं। अपनी इस रचना में लेखिका खुद कथाकार, टिप्पणीकार और व्यंगकार तीनों ही भूमिका में नजर आती हैं।
नासिरा शर्मा
नासिरा शर्मा ने ‘जहां फव्वारे लहू रोते हैं’ में ईरान की यात्राओं पर आधारित यात्रा वृतांत लिखी है, ईरान के अलावा इसमें जापान, पेरिस, लंदन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईराक, फिलिस्तीन और ऐसी कई जगहों में की गई यात्राओं के बारे में लिखा है, उन्होंने दर्शाया है कि इन जगहों पर शांति और सुरक्षा को लेकर आम लोगों की क्या जिंदगी है, उन्होंने राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवेश की गहराई का सजीव चित्रण किया है, इस किताब की खूबी यह है कि लेखिका ने शिद्दत से निष्पक्ष होते हुए अपनी बात लिखी है, किस तरह से ईरानी क्रांति के आतंक, अत्याचार और अमानवीय घटनाओं को अभिव्यक्त करना आसान स्थिति नहीं थी। उन्होंने इन यात्राओं को जीवंत रूप से अपनी लेखनी में दर्शाने की कोशिश की है।
अनुराधा बेनीवाल
अनुराधा बेनीवाल युवा लेखिका हैं और उनकी किताब ‘आजादी मेरा ब्रांड’ काफी लोकप्रिय रही, इसमें उन्होंने स्वतंत्र रूप से एक महिला को क्यों एकल यात्राओं पर जाना चाहिए, इसकी वकालत की है। वह अकेली किस तरह से बेफिक्र होकर लंदन, पेरिस, लील, ब्रसल्स, कौक्साइड, बर्लिन में जाती हैं और एकाकी यात्राओं का आनंद उठाती हैं, यह उनकी किताब में देखना रोचक है।