आजादी शब्द और आजाद महिलाएं इनका सबसे अच्छा उदाहरण आपको हिंदी साहित्य में मिलता है। देश की आजादी से लेकर आजाद महिला की आजाद सोच पर कई महिला लेखकों ने अपनी बात मजबूती से रखी है। खासतौर पर महिलाओं के उत्थान और महिला सशक्तिकरण को अपने लेखनी का जरिए सराहनीय तरीके से प्रस्तुत किया है। आइए विस्तार से जानते हैं, उन महिला लेखकों और उनकी रचनाओं के बारे में , जिनकी लेखनी की पहचान आजादी शब्द से रही है।
आजादी की लड़ाई में महिला लेखनी
आजादी की लड़ाई के दौरान अपनी लेखनी के जरिए कई महिला लेखकों ने अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। देश की आजादी का समर्थन करते हुए अपनी बात को बेबाकी से रखना और निडर होकर देश की आजादी में सहयोग देना, इन सभी महिला लेखकों की पहचान रहा है। यही वजह है कि इन महिला लेखकों के साथ आजादी का नाम जुड़ गया है। ताराबाई शिंदे, रमाबाई राणाडे, सावित्रीबाई फुले और सरोजिनी नायडू ने अपनी लेखनी में आजाद भारत की खूबसूरत तस्वीर को प्रस्तुत किया है। अगर बात करें, तो सरोजिनी नायडू आजाद भारत की कवयित्री होने के साथ और कार्यकर्ता रही हैं। उन्होंने इसके साथ महिला सशक्तिकरण के लिए भी काम किया है और साथ ही आजाद भारत और आजाद महिलाओं के लिए कई सारी किताबें लिखी हैं। ऊषा मेहता का भी नाम आजाद भारत की आजाद लेखनी में शामिल है। जान लें कि ऊषा मेहता भी भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुईं और साथ की अपनी लेखनी के साथ रेडियो के जरिए आंदोलन में लोगों को शामिल होने के लिए प्रेरित किया। भीकाजी कामा भी अपनी आजाद लेखनी के लिए याद की जाती हैं। अपनी लेखनी और लगातार सक्रियता के जरिए उन्होंने ब्रिटिश सोच के खिलाफ अपनी लड़ाई को बुलंद तरीके से जाहिर किया है। कलम को तलवार बनाने का प्रभावकारी कार्य सुभ्रदा कुमारी चौहान ने अपनी लेखनी से किया है। बताया जाता है कि देश की आजादी में सुभ्रदा कुमारी चौहान की भूमिका बड़ी रही है। उन्होंने अपनी कविताओं और लेखनी के जरिए आदाजी के आंदोलन में आगे बढ़कर हिस्सा लिया है। अपने जीवनकाल में उन्होंने तकरीबन 88 कविताएं और 46 कहानियां लिखी हैं। झांसी की रानी, वीरों का कैसा हो वसंत, यह कदंब का पेड़ जैसी कई सारी कविताएं शामिल हैं। अपनी कविता और कहानी के जरिए उन्होंने महिलाओं के अधिकार और सम्मान के लिए भी कई बार आवाज उठाई।
महिला सशक्तिकरण के लिए निडर लेखन
महिलाओं को समाज के बंधन से आजाद करते हुए अपनी लेखनी के जरिए कई महिला लेखकों ने अपनी महिलाओं को खुली हवा में आजाद रहने का सबक दिया है। इसमें सबसे पहले बात करके हैं ,अमृता प्रीतम की। अमृता प्रीतम ने हिंदी और पंजाबी में अपनी लेखनी से पहचान कायम किया है। अपने जीवन में उन्होंने 100 से अधिक किताबें लिखी हैं। खासतौर पर उनकी किताब पिंजर सबसे प्रख्यात है। उन्होंने विभाजन के दौरान दोनों मुल्क की महिलाओं की स्थिति को प्रस्तुत किया था। इस्मत चुगताई यानी कि इस्मत आपा ने भी अपनी लेखनी के जरिए महिलाओं से जुड़े सवालों को नए सिरे उठाया है। उन्होंने जवान लड़कियों की मनोदशा को अपने उपन्यासों के जरिए प्रस्तुत किया है। ताराबाई शिंदे का नाम यहां पर शामिल है। ताराबाई शिंदे नारीवादी थीं। 19वीं शताब्दी के दौरान ही उन्होंने पितृसत्ता और जाति का विरोध किया। खासतौर पर उन्होंने महिलाओं की सामाजिक स्थिति और पितृसत्ता के बारे में लिखा है। अपनी लेखनी के जरिए ताराबाई शिंदे लगातार महिलाओं के अधिकारों और उनके शिक्षा संघर्ष पर बात करती रही हैं।
बोल्ड महिला लेखक और आजादी
मलयालम कवयित्री कमला दास ने अपनी लेखनी के जरिए महिला कामुकता की आजाद सोच को पेश किया। महिला को प्रताड़ित करते रीति-रिवाजों और परंपराओं पर भी अपनी अमिट लेखनी प्रस्तुत की है। मन्नू भंडारी ने भी आजाद महिलाओं को अपनी बोल्ड लेखनी के जरिए दिखाने की अनूठी कवायद की है। खासतौर पर भेदभाव पूर्ण समाज में महिलाओं की यात्रा को अपनी लेखनी में विशेष स्थान दिया है। इसके बाद अगर किसी बोल्ड लेखक को याद किया जाए, तो नाम आता है, मृदुला गर्ग का। हिंदी और अंग्रेजी भाषा के जरिए उन्होंने महिलाओं को उच्च स्तर पर प्रस्तुत किया है। अपनी लेखनी कठगुलाब, मिलजुल आदि के जरिए उन्होंने महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक परिवेश को नई चुनौतियों के जरिए पेश किया है।नर्मदा, असीमा, नीरजा उनके उपन्यास के प्रमुख स्त्री पात्र हैं। तस्लीमा नसरीन भी अपनी दमदार मौजूदगी आजाद महिला लेखनी के जरिए दिखा चुकी हैं। औरत की आजादी को अपने शब्दों के साथ बयान करने के साथ उन्होंने अपनी लेखनी में इसकी सच्चाई को भी उजागर किया है। पुरुष प्रधान समाज की हकीकत को उन्होंने अपनी लेखनी में दिखाया है। उन्होंने अपनी किताब लज्जा के जरिए महिलाओं की समानता के बारे में बात रखी है।
महिला आजादी की लड़ाई
राजेंद्र बाला घोष ने अपनी लेखनी के जरिए उन्होंने नारी-मुक्ति की लड़ाई भी जारी रखी। उनकी लेखनी में महिलाओं के लिए आजादी वाला युग दिखाई देता था, जहां पर महिलाओं के सम्मान, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की सोच से समाज को रूबरू करवाया। उनकी प्रमुख कहानी ‘दुलाई वाली’, ‘भाई-बहन’ और ‘हृदय परीक्षा’ रही है। कृष्णा सोबती की कहानी में हमेशा महिला किरदार सशक्त रहा है। मित्रोमरजनी, ऐ लड़की जिंदगीनामा उनकी लोकप्रिय रचनाएं रही हैं। शिवानी यानी कि गौरा पंत ने हमेशा से ही अपनी लेखनी में प्रभावशाली महिला किरदारों को प्रस्तुत किया है। उन्होंने कई बार लघु और लोकप्रिय उपन्यास लिखे हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं की बात करें, तो ‘मायापुरी’, ‘कैंजा,’अतिथि’ और ‘चौदह फेरे’ उनकी लोकप्रिय रचनाएं हैं। मैत्रेयी पुष्पा ने हमेशा से ही अपनी कलम की ताकत के जरिए महिलाओं को प्रेरणा दी हैं। उन्होंने महिलाओं के मुद्दे पर काफी गहन अध्ययन के साथ काम किया है।
महिलाओं को मुक्ति संदेश
मैत्रेयी पुष्पा की सबसे बड़ी खूबी यह रही है कि नारी जीवन के ईद-गिर्द उनका साहित्य दिखाई देता है। उन्होंने लोक जीवन, लोक संस्कृति, ग्रामीण भाषाएं, रीति रिवाज, लोक मान्यताओं के साथ नारी संघर्ष और नारी से जुड़े हर मुद्दे को हर जीवन को बारीकी से अपनी लेखनी में जगह दी है। उनकी लेखनी में नारी जीवन को जीवित इसलिए भी अधिक देखा जाता है, क्योंकि आर्थिक समस्या के कारण उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है। महादेवी वर्मा का नाम महिलाओं को मुक्ति संदेश देने के लिए जाना जाता है। अपनी लेखनी के जरिए उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को अहमियत दी। साथ ही महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने की भी प्रेरणा दी है। उन्होंने महिलाओं के लिए कई सारी रचनाएं लिखी हैं, खास तौर पर उन्होंने मैत्रेयी, गोपा, सीता और महाभारत प्रमुख तौर पर सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ है। नए दौर की बात करें, तो गीतांजलि श्री का नाम भी इस फेहरिस्त में शामिल है। गीतांजलि श्री के उपन्यासों ने महिलाओं की पसंद की आजादी, और सच्ची नारावीदी होने को बखूबी दर्शाया है। गीतांजलि श्री के प्रमुख उपन्यास की बात की जाए, तो माई, हमारा शहर उस बरस का नाम शामिल है। मृणाल पांडे की लेखनी महिला आजादी के लिए नया सफर शुरू किया है। मृणाल पांडे की साहित्यिक दुनिया में आधुनिक नारी की स्थिति और उनके संघर्ष को बयान किया है। यहां तक कि मृणाल पांडे के निबंधों में भी महिलाओं की स्थिति को अच्छी तरह से दिखाती रहती है।
इन किताबों में बसी है महिला आजादी
वर्ष 1989 में प्रकाशित शशि देशपांडे का उपन्यास ‘दैट लॉन्ग साइलेंस’, एक भारतीय महिला जया के अस्तित्व के सवालों को बताती है। अपनी ज़िंदगी में अचानक आए तूफ़ान के दौरान से कैसे जया खुद की तलाश करती है, यही इसकी कहानी है।वर्ष 1982 में प्रकाशित गीता हरिहरन द्वारा लिखित उपन्यास ‘द थाउजंड फेसेस ऑफ़ नाइट तीन अलग-अलग पीढ़ियों से संबंधित महिलाओं के अस्तित्व पर प्रकाश डालता यह उपन्यास उनकी मानसिक रणनीतियों को दर्शाता है। वर्ष 2005 में प्रकाशित अनिता देसाईं का उपन्यास ‘मिस्ट्रेस’, कला और व्यभिचार में महिलाओं की शक्ति और इच्छा के जटिल संबंधों को दर्शाया गया है। फास्टिंग,फिस्टिंग के जरिए लेखिका अनीता देसाई ने लड़का और लड़की के बीच किए गए भेदभाव को दिखाया है। इस्मत चुगताई की किताब लिहाफ में महिलाओं के साथ होते हुए जेंडर भेदभाव की कहानी सुनाई गई है।