स्कूल के बस्ते से साहित्य लेमनचूस- बचपन के बस्ते में हिंदी की किताब खरगोश-कछुआ की रेस की कहानी से लेकर मछली जल की रानी है, जैसी कई सारी प्रेरणादायक कविताओं और कहानियों के जरिए हमारे मानसिक विकास को धनी करती आयी है, हालांकि बड़े होकर साहित्य का बस्ता अब साहित्य की अलमारी से भर गया है। लेकिन आज भी बचपन की याद में कई सारे ऐसे छोटे अनमोल साहित्य के हीरे हैं, जो कि अपनी चमक से हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा दे सकती हैं। फिर क्यों न, एक बार फिर से साहित्य के बस्ते से पीठ लगाकर जीवन की सीख की शाबाशी ली जाए।
कविता : एक तिनका
कक्षा- सातवीं
कवि- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
मैं घमंड़ों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आंख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आंख भी दुखने लगी।
मूंठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पांवों भागी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब समझ ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
सीख की पाठशाला
कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने यह बताने की कवायद की है कि कभी भी किसी भी व्यक्ति को अहम या मैं के भाव में लिप्त नहीं रहना चाहिए। अपने जीवन की किसी भी उपलब्धि पर घमंड नहीं करना चाहिए। किसी भी प्रकार का घमंड तिनके भर की परेशानी के आगे घुटने टेक सकता है। इसलिए अपने जीवन की उपलब्धि को अनुभव समझें और विनम्रता से अपने जीवन का निर्वाह करें।
कौन हैं कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’?
उत्तर प्रदेश की खड़ी बोली को काव्य-भाषा में स्थापित करने वाले प्रमुख कवियों में अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का नाम भी शामिल है।कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हिरोऔध दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रहे हैं। उनकी लोकप्रिय काव्य रचनाएं हैं-‘बोलचाल’, ‘चोखे चौपदे’, ‘दिव्य दोहावली’ और ‘हरिऔध सतसई’ आदि शामिल हैं।
कविता : साथी हाथ बढ़ाना
कक्षा- छठीं
कवि- साहिर लुधियानवी
साथी हाथ बढ़ाना,
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना
साथी हाथ बढ़ाना।
हम मेहनतवालों ने जब भी,
मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रास्ता, परबत ने सीस झुकाया
फौलादी हैं सीने अपने, फौलादी हैं बांहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें,
साथी हाथ बढ़ाना।
मेहनत अपने लेख की रेखा,मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना
अपना दुख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
अपनी मंजिल सच की मंजिल, अपना रास्ता नेक
साथी हाथ बढ़ाना
सीख की पाठशाला
कवि : साहिर लुधियानवी ने इस कविता के जरिए बताया है कि एकता में ताकत होती है, जिस तरह एक लकड़ी को आसानी से तोड़ा जा सकता है, वहीं एक साथ दस लकड़ी बांध कर तोड़ना मुश्किल है। ठीक इसी तरह मेहनत करने वालों को कभी डरना नहीं चाहिए, दुख को साथी बनाकर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ना चाहिए।
कौन हैं साहिर लुधियानवी?
साहिर लुधियानवी लोकप्रिय कवि और गीतकार रहे हैं। उन्होंने कई लोकप्रिय गीत लिखे हैं। साल 1971 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। कभी-कभी मेरे दिल में उनके लोकप्रिय गीतों में शामिल है।
कविता- नाव बनाओ नाव बनाओ
कक्षा- चौथीं
कवि- हरिकृष्णदास गुप्त
नाव बनाओ, नाव बनाओ।
भैया मेरे, जल्दी आओ।
वह देखो, पानी आया है,
घिर-घिर कर बादल आया है,
सात समुंदर भर लाया है
तुम रस का सागर भर लाओ।
भैया मेरे, जल्दी आओ।
पानी सचमुच खूब पड़ेगा
लंबी-चौड़ी गली भरेगा,
लाकर घर में नदी धरेगा,ऐसे में तुम भी लहराओ।
भैया मेरे जल्दी आओ।
गुल्लक भारी, अपनी खोलो, हल्की मेरी, नहीं टटोलो,
पैसे नए-नए ही रोलो, फिर बाजार लपक तुम लाओ।
भैया मेरे, जल्दी आओ।
ले आओ कागज चमकीला, लाल-हरा या नीला-पीला,
रंग-बिरंगा खूब रंगीला, कैंची, चुटकी, हाथ चलाओ,
भैया मेरे जल्दी आओ।
छप-छप कर कूड़े से अड़ती, बूंदों-लहरों लड़ती- बढ़ती,
सब की आंखों चढ़ती-गढ़ती, नाव तैरो मुझको हर्षाओ।
भैया मेरे जल्दी आओ।
क्या? कहते मेरे क्या बस का, क्योंं? तब फिर यह किसके बस का,
खोट सभी है बस आलस का, आलस छोड़ो सब कर पाओ।
भैया मेरे जल्दी आओ।
सीख की पाठशाला
कवि हरिकृष्णदास गुप्त इस कविता के जरिए भाई और बहन के बीच के भाव को दिखा रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे एक बहन अपने भाई को जीवन के विकट हालातों में कैसे हर्ष के साथ आगे बढ़ते हैं, यह बता रही है। बहन यह भी कह रही है, आलस हमारे जीवन का सबसे बड़ी गलती है, इसे मिटा कर हर मुमकिन को हल किया जा सकता है।
कौन हैं कवि हरिकृष्णदास गुप्त?
हरिकृष्णदास गुप्त का जन्म बिहार में हुआ। उनकी कई प्रमुख लेखन में दोहे के हीरे, रस मलाई शामिल है।
कविता : यह सबसे कठिन समय नहीं
कक्षा-आठवीं
कवि- जया जादवानी
नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं,अभी भी दबा है चिड़िया की चोंच में तिनका
और वह उड़ने की तैयारी में है। अभी भी झरती हुई पत्ती थामने को बैठा हाथ एक,
अभी भी भीड़ है, स्टेशन पर, अभी भी एक रेलगाड़ी जाती है गंतव्य तक,
जहां कोई कर रहा होगा प्रतीक्षा, अभी भी कहता है कोई किसी का,
जल्दी आ जाओ कि अब, सूरज डूबने का वक्त हो गया है,
अभी भी कहा जाता है, उस कथा का आखिरी हिस्सा,
जो बूढ़ी नानी सुना रही सदियों से, दुनिया के तमाम बच्चों को अभी आती है एक बस,
अंतरिक्ष के पार की दुनिया से लाएगी, बचे हुए लोगों की खबर, नहीं यह सबसे कठिन समय नहीं
सीख की पाठशाला
इस कविता के जरिए जया जादवानी बता रही हैं कि कैसे किसी को भी मुश्किल के समय में उम्मीद के तिनके के साथ अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ते रहना चाहिए। हार नहीं माननी चाहिए। यह कविता आज में जीते हुए सतत प्रयास करने की सीख देती है।
कौन हैं जया जादवानी?
जया जादवानी ने कहानी और कविता की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। जया जादवानी को हिंदी साहित्य की युवा पीढ़ी की सशक्त कहानीकार माना जाता है। जया जादवानी की प्रमुख रचनाएं मैं शब्द हूं, उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य आदि शामिल है।
कविता : गुनगुनाते चलो
कक्षा- पांचवीं
कवि- श्रीपाल सिंह क्षेम
पांव में हो थकन, अश्रु-भीगे नयन,राह सूनी, मगर गुनगुनाते चलो।
यह न संभव कि हर पंथ सीधा चले, यह न संभव कि मंजिल सभी को मिले,
वाटिका बीच कलियां लगें अनगिनत, यह न संभव कि हर फूल बनकर खिले।
यदि न सौरभ मिला तो यही कम नहीं, राह मधुमास की तुम बनाते चलो।
विश्व है एक सागर उमड़ता हुआ, हर लहर जो उठी है उछलती रहे,
जिंदगी की कहानी यहां नाव सी, रात-दिन एक पतवार चलती रहे।
सांस भर तुम स्वंय भी चलाते चलो, थक गए , दूसरों को बढ़ाते चलो।
एक सागर किसी के लिए कम यहां, एक कण के लिए अन्य तरसा करें,
सूखते जीवन के सरोवर रहें, सागरों पर महामेघ बरसा करें।
यह दोहरी प्रणाली चलेगी नहीं, इसलिए धार को सम बहाते चलो।
सीख की पाठशाला
कवि श्रीपाल सिंह क्षेम इस कविता के जरिए बता रहे हैं कि कैसे कठिन से कठिन हालातोंं में मुस्कुराते हुए चलते रहना चाहिए। अपना धैर्य और साहस नहीं खोना चाहिए। यह यकीन रखना चाहिए कि बूंद-बूंद से सागर बनता है।
कौन हैं कवि श्रीपाल सिंह क्षेम?
देश के श्रेष्ठ कवि में श्रीपाल सिंह क्षेम की गिनती होती है। मूल रूप से वह गीतकार थे। उनकी कविताओं में संयोग श्रृंगार सबसे अधिक झलकता है। अपनी कविताओं के जरिए उन्होंने मानवीय मूल्यों की स्थापना करने का सार्थक प्रयास किया है।